Short Questions Answer
प्रश्न 1: रवींद्र केलेकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में।
प्रश्न 2: रवींद्र केलेकर छात्र जीवन से किस आंदोलन में शामिल हुए?
उत्तर: गोवा मुक्ति आंदोलन में।
प्रश्न 3: रवींद्र केलेकर किस विचारधारा के चिंतक थे?
उत्तर: गांधीवादी।
प्रश्न 4: रवींद्र केलेकर की कोंकणी में कितनी पुस्तकें प्रकाशित हैं?
उत्तर: पच्चीस।
प्रश्न 5: रवींद्र केलेकर की हिंदी में प्रमुख कृति का नाम क्या है?
उत्तर: पतझर में टूटी पत्तियाँ।
प्रश्न 6: गिन्नी के सोने में क्या मिलाया होता है?
उत्तर: थोड़ा-सा ताँबा।
प्रश्न 7: शुद्ध आदर्श किसके जैसे होते हैं?
उत्तर: शुद्ध सोने के जैसे।
प्रश्न 8: टी-सेरेमनी किस देश की विधि है?
उत्तर: जापान की।
प्रश्न 9: चाजीन ने चायदानी पर क्या बजाया?
उत्तर: जयजयवंती राग।
प्रश्न 10: रवींद्र केलेकर का निधन कब हुआ?
उत्तर: 2010 में।
Long Questions Answer
प्रश्न 1: रवींद्र केलेकर के जीवन और उनके साहित्यिक योगदान के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर: रवींद्र केलेकर का जन्म 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था। छात्र जीवन से ही वे गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। वे गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात थे। उनके लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। उनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में चिंतन की मौलिकता और मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा है। वे कोंकणी और मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार थे। उनकी कोंकणी में पच्चीस, मराठी में तीन, हिंदी और गुजराती में भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हैं। उन्होंने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद किया। गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- कोंकणी में उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे; मराठी में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला; हिंदी में पतझर में टूटी पत्तियाँ।
प्रश्न 2: ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में लेखक ने क्या तुलना की है?
उत्तर: ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में लेखक ने शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना की तुलना की है। शुद्ध सोना अलग है और गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया होता है, इसलिए वह ज्यादा चमकता और मजबूत होता है। औरतें इसी सोने के गहने बनवाती हैं। इसी तरह शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने जैसे होते हैं। कुछ लोग उनमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा मिला देते हैं और चलाकर दिखाते हैं। तब उन्हें ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा जाता है। लेकिन व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तो आदर्श पीछे हटते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ आगे आती है। सोना पीछे रहकर ताँबा आगे आता है।
प्रश्न 3: ‘झेन की देन’ प्रसंग में टी-सेरेमनी का वर्णन कीजिए।
उत्तर: ‘झेन की देन’ प्रसंग में जापानी टी-सेरेमनी का वर्णन है। जापान में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं। लेखक के मित्र ने आमंत्रित किया। शाम को लेखक वहाँ पहुँचा। बाहर बेढब सा मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा था। लेखक ने हाथ-मुँह धोए। दफ़्ती की दीवार खिसकाकर अंदर गए। वहाँ पर्णकुटी में चाजीन ने स्वागत किया। लेखक जापानी ढंग से घुटने मोड़कर बैठे। चाजीन ने चायदानी पर जयजयवंती राग बजाया। चाय खदबदाई। चाजीन ने प्यालों में चाय भरी और लेखक को दी। लेखक ने गरिमापूर्ण ढंग से चाय पी।
प्रश्न 4: ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में व्यावहारिक आदर्शवाद की क्या व्याख्या है?
उत्तर: ‘गिन्नी का सोना’ प्रसंग में व्यावहारिक आदर्शवाद की व्याख्या है कि शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने जैसे होते हैं। कुछ लोग उनमें व्यावहारिकता का थोड़ा-सा ताँबा मिला देते हैं। तब वे मजबूत और चमकदार हो जाते हैं। इन्हें ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहते हैं। लेकिन जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तो आदर्श पीछे हटते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ आगे आती है। कुछ लोग कहते हैं गांधीजी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे लेकिन लेखक कहते हैं कि गांधीजी ने आदर्शों में व्यावहारिकता नहीं मिलाई, बल्कि व्यावहारिकता में आदर्श मिलाए।
प्रश्न 5: ‘झेन की देन’ प्रसंग में लेखक को चाय पीने में क्या उलझन हुई?
उत्तर: ‘झेन की देन’ प्रसंग में लेखक को चाय पीने में उलझन हुई क्योंकि चाय का स्वाद कड़वा था। लेखक ने सोचा कि यह मिथ्या सुख है। चाय पीने का नाम लेकर वे क्या सुख चाहते हैं? लेखक को लगा कि चाय पीने की विधि में कोई मिथ्या या भ्रम है। लेकिन मित्र ने कहा कि चाय पीने का नाम लेकर वे क्या सुख चाहते हैं?
प्रश्न 6: पाठ ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: पाठ ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ का मुख्य उद्देश्य थोड़े में बहुत कहना है। यह सरल लिखन है जो ज्यादा कठिन है। यह प्रसंग पढ़ने वालों से थोड़ा कहा बहुत समझना की माँग करते हैं। ये महज पढ़ने-गुनने की नहीं, जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं। पहला प्रसंग गिन्नी का सोना उन लोगों से परिचित कराता है जो जगत को जीने योग्य बनाते हैं। दूसरा प्रसंग झेन की देन ध्यान की पद्धति की याद दिलाता है जो व्यस्त दिनचर्या में चैन देती है।
प्रश्न 7: पाठ में दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए।
उत्तर: (क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी। (ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी। (ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।
प्रश्न 8: पाठ में दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए।
उत्तर: (क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं। (ख) बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था। (ग) जब चाय तैयार हुई तब उसने वह प्यालों में भरी।
प्रश्न 9: पाठ में दिए गए शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर: व्यावहारिक = अव्यावहारिक। आदर्शवादी = अनादर्शवादी। शुद्ध = अशुद्ध।
प्रश्न 10: पाठ में दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर: (1) प्रश्न का उत्तर दो। (2) उत्तर दिशा में जाओ। कर: (1) कर में मेहनत करो। (2) कर चुकाओ। अंक: (1) परीक्षा में अंक अच्छे आए। (2) अंक में सो जाओ। नग: (1) नग में पर्वत है। (2) नग में गहने हैं।
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