Short Questions Answer
प्रश्न 1: रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: 6 मई 1861 को बंगाल में।
प्रश्न 2: रवींद्रनाथ ठाकुर को कौन-सा बड़ा पुरस्कार मिला?
उत्तर: नोबेल पुरस्कार।
प्रश्न 3: रवींद्रनाथ ठाकुर की शिक्षा कहाँ हुई?
उत्तर: घर पर।
प्रश्न 4: रवींद्रनाथ ठाकुर ने किस संस्था की स्थापना की?
उत्तर: शांति निकेतन।
प्रश्न 5: रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रमुख काव्य कृति का नाम क्या है?
उत्तर: गीतांजलि।
प्रश्न 6: कविता ‘आत्मत्राण’ का अनुवाद किसने किया?
उत्तर: हजारीप्रसाद द्विवेदी।
प्रश्न 7: कविता में कवि किससे प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर: प्रभु (करुणामय) से।
प्रश्न 8: कवि विपदा में क्या नहीं चाहता?
उत्तर: भय।
प्रश्न 9: कविता में कवि दुख को क्या करने की प्रार्थना करता है?
उत्तर: जय करने की।
प्रश्न 10: कविता में ‘नत शिर’ का अर्थ क्या है?
उत्तर: सिर झुकाकर।
Long Questions Answer
प्रश्न 1: रवींद्रनाथ ठाकुर के जीवन और उनके साहित्यिक योगदान के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर: रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 6 मई 1861 को बंगाल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा घर पर हुई और उन्होंने स्वाध्याय से कई विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। वे बैरिस्ट्री पढ़ने विदेश गए, लेकिन बिना परीक्षा दिए लौट आए। उनकी रचनाओं में लोक संस्कृति और प्रकृति प्रेम झलकता है। उन्होंने लगभग एक हजार कविताएँ और दो हज़ार गीत लिखे। उनकी कृति ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी अन्य कृतियाँ हैं—नैवैद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र, सांध्यगीत, गोरा, घरे बाइरे और काबुलीवाला। उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की और रवींद्र संगीत की धारा शुरू की।
प्रश्न 2: कविता ‘आत्मत्राण’ में कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर: कविता ‘आत्मत्राण’ में कवि प्रभु (करुणामय) से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसे विपदाओं और दुखों से बचाने के बजाय उनसे लड़ने की शक्ति दे। वह चाहता है कि विपदा में उसे भय न हो, दुख को वह जय कर सके, और अपने बल और पराक्रम से वह कठिनाइयों का सामना कर सके। वह प्रभु से यह भी प्रार्थना करता है कि वह सुख और दुख दोनों में प्रभु पर विश्वास बनाए रखे और कभी संदेह न करे।
प्रश्न 3: ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ पंक्ति के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इस पंक्ति में कवि कहता है कि वह प्रभु से विपदाओं से बचाने की प्रार्थना नहीं करता। वह चाहता है कि प्रभु उसे विपदाओं में डरने से बचाए और उसे उनसे लड़ने की शक्ति दे। कवि स्वयं अपने बल से कठिनाइयों का सामना करना चाहता है, न कि प्रभु से उन्हें हटाने की माँग करना। यह आत्मनिर्भरता और साहस की भावना को दर्शाता है।
प्रश्न 4: कविता में कवि सहायक न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर: कवि प्रार्थना करता है कि अगर उसे कोई सहायक न मिले, तो उसका बल और पराक्रम कमजोर न पड़े। वह चाहता है कि वह अपने पौरुष और आत्मबल से कठिन परिस्थितियों का सामना कर सके। यह उसकी आत्मनिर्भरता और दृढ़ता की इच्छा को दिखाता है, जहाँ वह बाहरी मदद के बिना भी मजबूत रहना चाहता है।
प्रश्न 5: कविता में कवि अंत में क्या अनुनय करता है?
उत्तर: कवि अंत में प्रभु से अनुनय करता है कि वह उसे दुख और कठिनाइयों को सहन करने की शक्ति दे, ताकि वह निर्भय होकर अपने जीवन के बोझ को उठा सके। वह यह भी प्रार्थना करता है कि दुख की रात में, जब सारा संसार उसे धोखा दे, तब भी वह प्रभु पर संदेह न करे और उसका विश्वास बना रहे।
प्रश्न 6: ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: ‘आत्मत्राण’ शीर्षक कविता की मूल भावना को पूरी तरह दर्शाता है। ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा की रक्षा या आत्मबल से बचाव। कविता में कवि प्रभु से विपदाओं से बचाने की बजाय आत्मबल, साहस और दुख को जय करने की शक्ति माँगता है। वह चाहता है कि वह स्वयं अपने बल से जीवन की चुनौतियों का सामना करे। इस तरह, यह शीर्षक कवि की आत्मनिर्भरता और आंतरिक शक्ति की प्रार्थना को व्यक्त करता है।
प्रश्न 7: कविता में कवि की प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से कैसे अलग है?
उत्तर: कवि की प्रार्थना अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है क्योंकि वह प्रभु से दुख और विपदाओं को हटाने की माँग नहीं करता। इसके बजाय, वह उनसे लड़ने की शक्ति, साहस और आत्मबल माँगता है। वह चाहता है कि वह स्वयं अपने पराक्रम से कठिनाइयों को पार करे और प्रभु पर विश्वास बनाए रखे। यह प्रार्थना आत्मनिर्भरता और दृढ़ता पर जोर देती है, जो सामान्य प्रार्थनाओं से भिन्न है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित अंश का भाव स्पष्ट कीजिए:
नत शिर होकर सुख के दिन में, तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
उत्तर: इन पंक्तियों में कवि कहता है कि सुख के दिनों में वह प्रभु के सामने नतमस्तक होकर हर पल उनका आभार मानेगा और उन्हें याद करेगा। वह चाहता है कि सुख में वह प्रभु को न भूले और हमेशा उनकी उपस्थिति को महसूस करे। यह कवि की प्रभु के प्रति कृतज्ञता और भक्ति को दर्शाता है।
प्रश्न 9: निम्नलिखित अंश का भाव स्पष्ट कीजिए:
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही, तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
उत्तर: इन पंक्तियों में कवि कहता है कि अगर उसे संसार में हानि उठानी पड़े या लाभ से वंचित रहना पड़े, तो भी वह अपने मन में हार या नाश का भाव नहीं लाएगा। वह चाहता है कि वह हर स्थिति में दृढ़ रहे और हानि को भी स्वीकार करते हुए मन से कमजोर न पड़े। यह उसकी मानसिक शक्ति और सकारात्मकता को दर्शाता है।
प्रश्न 10: निम्नलिखित अंश का भाव स्पष्ट कीजिए:
तरने की हो शक्ति अनामय, मेरा भार अगर लघु करके न दो।
उत्तर: इन पंक्तियों में कवि प्रभु से प्रार्थना करता है कि वह उसे जीवन की कठिनाइयों को पार करने की स्वस्थ और रोगमुक्त शक्ति दे। वह यह नहीं चाहता कि प्रभु उसके जीवन के बोझ को कम करें, बल्कि वह उस बोझ को निर्भय होकर सहन करने की ताकत माँगता है। यह कवि की आत्मनिर्भरता और साहस की भावना को व्यक्त करता है।
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