माता का आँचल
अध्याय – माता का अँचल : सारांश
प्रस्तुत अंश शिवपूजन सहाय के उपन्यास ‘देवरानी जेठानी’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने अपने बचपन की मार्मिक स्मृतियों को आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है।
कथा का मुख्य पात्र छोटा बालक भोलानाथ (तारकेश्वरनाथ) है, जो अपने पिता के साथ अधिक समय बिताता है। पिता उसे बहुत प्यार करते हैं – कभी पूजा कराते, गंगा किनारे ले जाते, झूला झुलाते और खेल-खेल में कुश्ती भी लड़ते। माँ उसे अपने हाथों से खिलाती और चिड़ियों के नाम पर दही-भात के कौर बनाकर मज़ेदार ढंग से भोजन कराती।
भोलानाथ का बचपन खेल-कूद और नटखटपन से भरा था। वह अपने साथियों के साथ तरह-तरह के खेल खेलता – मिठाई की दुकान सजाना, घरौंदा बनाना, बरात का जुलूस निकालना, खेती करना और नाटक रचना। उनके खेलों में गाँव की लोक-संस्कृति की झलक साफ दिखाई देती है। खेलते समय वे गीत और तुकबंदी भी गाते थे, जिससे खेल और रोचक बन जाते थे।
एक प्रसंग में आँधी-तूफान के बाद बच्चे बाग में आम चुनने गए और रास्ते में बूढ़े मूसन तिवारी को चिढ़ाकर भागे। तिवारी ने शिकायत गुरु जी से कर दी, जिसके बाद भोलानाथ को सज़ा मिली। वह रोता-रोता पिता के कंधे से भी उतरकर माँ की गोद में जा छिपा। माँ ने आँचल में छिपाकर उसे सहलाया, घावों पर हल्दी लगाई और दुलार से उसका भय मिटाया।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि भले ही भोलानाथ पिता के अधिक करीब था, लेकिन संकट की घड़ी में उसे माँ का आँचल ही सबसे सुरक्षित लगा। माँ का आँचल उसके लिए प्रेम, सुरक्षा और शांति का प्रतीक था।
इस प्रकार इस पाठ में माता-पिता के वात्सल्य, बचपन की निश्छल दुनिया और उस समय की ग्रामीण संस्कृति का जीवंत चित्रण मिलता है। यह अध्याय हमें बताता है कि माता-पिता का स्नेह और बचपन की मासूमियत जीवन की सबसे बड़ी पूँजी होती है।
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