तताँरा-वामीरो कथा
अध्याय – तताँरा–वामीरो कथा (लीलाधर मंडलोई) : सारांश
लीलाधर मंडलोई मूलतः कवि हैं, जिनकी रचनाओं में लोकजीवन और लोककथाओं का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। प्रस्तुत पाठ “तताँरा–वामीरो कथा” अंदमान-निकोबार द्वीपसमूह की एक लोककथा पर आधारित है, जिसमें प्रेम, परंपरा और त्याग की मार्मिक गाथा प्रस्तुत की गई है।
निकोबारियों का विश्वास है कि बहुत समय पहले लिटिल अंदमान और कार-निकोबार एक ही द्वीप थे। इनके अलग होने के पीछे तताँरा और वामीरो की प्रेमकथा जुड़ी हुई है। तताँरा एक नेकदिल, साहसी और मददगार युवक था, जिसकी तलवार को लोग दैवीय शक्ति से युक्त मानते थे। एक दिन उसकी मुलाकात समुद्र किनारे गीत गा रही सुंदर युवती वामीरो से हुई। पहली नज़र में ही दोनों के हृदय में प्रेम उत्पन्न हो गया।
परंपरा के अनुसार विवाह केवल एक ही गाँव के युवक-युवती के बीच संभव था, जबकि तताँरा पासा गाँव का और वामीरो लपाती गाँव की थी। दोनों के प्रेम का गाँववालों ने विरोध किया। उन्हें समझाने-बुझाने की कोशिशें हुईं, पर वे डटे रहे। जब पशु-पर्व के समय दोनों को साथ देखा गया तो वामीरो की माँ और गाँववालों ने तताँरा को अपमानित किया। अपमान और असहायता से क्रोधित होकर तताँरा ने अपनी तलवार ज़मीन में घोंप दी। तलवार की दैवी शक्ति से धरती फट गई और द्वीप दो हिस्सों में बँट गया। तताँरा और वामीरो एक-दूसरे से हमेशा के लिए अलग हो गए। तताँरा समुद्र में लुप्त हो गया और वामीरो पागलपन में उसे पुकारती रही।
निकोबारी मानते हैं कि यही कारण है कि आज कार-निकोबार और लिटिल अंदमान अलग-अलग द्वीप हैं। इस घटना के बाद वहाँ के लोग दूसरे गाँवों में वैवाहिक संबंध करने लगे।
कुल मिलाकर, यह कथा दिखाती है कि प्रेम और त्याग समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। तताँरा–वामीरो का बलिदान न केवल एक प्रेमकथा है, बल्कि रूढ़ियों और संकीर्णताओं को तोड़कर समाज में नई राह बनाने का प्रतीक भी है।
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