तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
अध्याय – तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र (प्रहलाद अग्रवाल) : सारांश
प्रहलाद अग्रवाल ने इस पाठ में कवि और गीतकार शैलेंद्र के फ़िल्म निर्माण से जुड़े योगदान को विस्तार से बताया है। शैलेंद्र मूलतः कवि और गीतकार थे, जिन्होंने अनेक लोकप्रिय गीत लिखे, परंतु उन्होंने जब फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फ़िल्म “तीसरी कसम” बनाई, तो यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर सिद्ध हुई।
इस फ़िल्म में राजकपूर ने हीरामन गाड़ीवान की भूमिका निभाई और वहीदा रहमान ने हीराबाई का किरदार। दोनों का अभिनय इतना प्रभावशाली था कि दर्शक पात्रों से गहरे जुड़ गए। यह फ़िल्म केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन की करुणा और संवेदना से भरी एक सजीव कविता बन गई।
शैलेंद्र को फ़िल्म उद्योग की चमक-दमक या धन की चाह नहीं थी। वे आदर्शवादी और भावुक कवि थे। उनका उद्देश्य केवल आत्मसंतोष और सच्ची कला का सृजन करना था। यही कारण था कि उन्होंने “तीसरी कसम” जैसी संवेदनशील फ़िल्म बनाने का जोखिम उठाया। इस फ़िल्म को राष्ट्रपति स्वर्णपदक और कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, किंतु इसके वितरण और प्रदर्शन में कठिनाइयाँ आईं। व्यावसायिक दृष्टि से यह सफल न रही, क्योंकि इसमें करुणा और संवेदना थी, जिसे व्यापारिक फ़िल्मकार नहीं समझ पाए।
राजकपूर और शैलेंद्र की गहरी मित्रता भी इस फ़िल्म में झलकती है। राजकपूर ने बिना पारिश्रमिक लिए पूरी निष्ठा से अभिनय किया। शैलेंद्र के गीत, जैसे – “मेरा जूता है जापानी”, “सजनवा बैरी हो गए हमार”, आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं। उनके गीत सरल, भावनात्मक और जीवन की सच्चाइयों से जुड़े होते थे। वे मानते थे कि कलाकार का कर्तव्य केवल दर्शकों की पसंद को पूरा करना नहीं, बल्कि उनकी रुचि को ऊँचाई पर ले जाना भी है।
इस पाठ में यह स्पष्ट किया गया है कि शैलेंद्र केवल गीतकार नहीं, बल्कि संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने सिनेमा को साहित्य और जीवन की सच्चाइयों से जोड़ने का सफल प्रयास किया। “तीसरी कसम” उनकी संवेदनशीलता और कला-दृष्टि का जीवंत उदाहरण है, जिसे आज भी हिंदी सिनेमा की अमर कृतियों में गिना जाता है।
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