कारतूस
अध्याय – कारतूस (हबीब तनवीर) : सारांश
हबीब तनवीर (1923–2009) भारत के प्रसिद्ध नाटककार, निर्देशक और अभिनेता थे। उन्होंने लोकनाट्य को आधुनिक रंगमंच से जोड़कर नया स्वरूप दिया। उनके नाटकों में यथार्थ, ऐतिहासिकता और लोकजीवन की गहरी झलक मिलती है। प्रस्तुत एकांकी “कारतूस” सन् 1799 की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें अवध के बहादुर स्वतंत्रता सेनानी वज़ीर अली की वीरता और अंग्रेज़ों के प्रति उनके प्रतिरोध को दर्शाया गया है।
कहानी गोरखपुर के जंगल में कर्नल कालिंज के खेमे से शुरू होती है। अंग्रेज़ अधिकारी वज़ीर अली से परेशान हैं, क्योंकि वह अपनी चतुराई और बहादुरी से उन्हें वर्षों से छकाता आ रहा है। वज़ीर अली केवल पाँच महीने अवध के शासक रहे, लेकिन उस समय में उन्होंने अंग्रेज़ों के प्रभाव को दरबार से लगभग समाप्त कर दिया। अंग्रेज़ उन्हें पकड़ने के लिए पूरी फ़ौज लगा देते हैं, पर वे हर बार बच निकलते हैं।
वज़ीर अली का संघर्ष केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय था। वे अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान से बाहर खदेड़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अफ़गानिस्तान के बादशाह से सहयोग लेने और नेपाल पहुँचकर अपनी शक्ति बढ़ाने की योजना बनाई थी। अंग्रेज़ों के लिए वे रॉबिनहुड जैसे प्रतीत होते थे – बहादुर, निडर और जनता के पक्षधर।
इस एकांकी का चरम उस समय आता है जब एक सवार कर्नल के खेमे में पहुँचता है और कारतूस माँगता है। कर्नल उसे पहचान नहीं पाता और कारतूस दे देता है। तभी सवार अपनी पहचान उजागर करता है कि वह स्वयं वज़ीर अली है और कहता है कि – “आपने मुझे कारतूस दिए, इसलिए आपकी जान बख्शता हूँ।” यह प्रसंग वज़ीर अली की बुद्धिमत्ता, साहस और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
कुल मिलाकर, यह एकांकी वज़ीर अली के अदम्य साहस और स्वतंत्रता की भावना को चित्रित करता है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा योद्धा वही है जो शत्रु की आँखों में आँखें डालकर उसका सामना करे और अपने देश की स्वतंत्रता के लिए हर जोखिम उठाने को तैयार रहे।
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