साना-साना हाथ जोड़ि
अध्याय – साना-साना हाथ जोड़ि : सारांश
इस पाठ में लेखिका मधु कांकरिया ने सिक्किम यात्रा का आत्मीय और भावनात्मक वृत्तांत प्रस्तुत किया है। गंगटोक से यूमथांग और कटाओ तक के सफ़र में उन्होंने प्रकृति की अलौकिक सुंदरता, वहाँ के जनजीवन और कठिन परिस्थितियों का सजीव चित्रण किया है।
लेखिका गंगटोक शहर की जगमगाती रात से अभिभूत होती हैं। बौद्ध धर्म के प्रतीक श्वेत पताकाएँ, प्रेयर व्हील और दलाई लामा की तस्वीरें वहाँ के लोगों की आस्था का परिचायक हैं। यात्रा के दौरान वे हिमालय की विराटता, झरनों की कलकल ध्वनि, तिस्ता नदी की चंचल लहरें, फूलों से सजी घाटियाँ और बादलों से ढके शिखरों का मनोहारी चित्र खींचती हैं।
“सेवन सिस्टर्स वाटरफॉल” देखकर वे जीवन की अनंतता और निर्मलता का अनुभव करती हैं। परंतु इस सौंदर्य के बीच उन्हें कठोर श्रम करती पहाड़ी औरतें दिखाई देती हैं, जो बच्चे को पीठ पर बाँधकर पत्थर तोड़ती हैं। यह दृश्य उन्हें झकझोर देता है और आम जनता के संघर्षमय जीवन की याद दिलाता है।
कटाओ की यात्रा के दौरान वे बर्फ़ से ढके पर्वतों और गिरती बर्फ़ की मनोहारी छटा देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हैं। वे अनुभव करती हैं कि प्रकृति ही सच्चा आनंद और जीवन का आधार है। इसी यात्रा में उन्हें यह भी एहसास होता है कि हिमालय केवल कविता नहीं, बल्कि दर्शन है – जहाँ पेड़, पौधे, नदियाँ, पशु और मनुष्य सब एक लय में जीते हैं।
यात्रा के अंत में जब वे सीमा पर तैनात सैनिकों को देखती हैं तो उनके त्याग और कठिनाइयों से प्रभावित होकर गहरी भावुकता महसूस करती हैं। उन्हें एहसास होता है कि हमारी सुरक्षित ज़िंदगी इन्हीं सैनिकों की कड़ी तपस्या और बलिदान पर टिकी है।
कुल मिलाकर, यह यात्रा-वृत्तांत प्राकृतिक सौंदर्य, जनजीवन की कठिनाइयों, संस्कृति की झलक और जीवन दर्शन का सुंदर संगम है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर ही सच्चा सुख और शांति पाई जा सकती है।
Leave a Reply