मैं क्यों लिखता हूँ?
अध्याय – मैं क्यों लिखता हूँ? : सारांश
अज्ञेय इस निबंध में लेखक के लेखन की वास्तविक प्रेरणा और उसके पीछे की आंतरिक विवशता को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि “मैं क्यों लिखता हूँ?” यह प्रश्न सरल लगने पर भी अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसका उत्तर लेखक के भीतरी जीवन और संवेदनाओं से जुड़ा होता है। अज्ञेय बताते हैं कि वे लिखते इसलिए हैं ताकि स्वयं जान सकें कि वे क्यों लिखते हैं। लेखन उनके लिए आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने और उसे पहचानने का साधन है।
वे मानते हैं कि हर सच्चा रचनाकार अपने भीतर की बेचैनी और संवेदना को अभिव्यक्त करने के लिए लिखता है। कभी-कभी बाहरी दबाव – जैसे संपादकों का आग्रह, प्रकाशक की अपेक्षा या आर्थिक आवश्यकता – भी लेखन को प्रभावित करते हैं, लेकिन यह बाहरी दबाव भीतरी प्रेरणा को प्रकट करने का एक माध्यम बन जाता है।
अज्ञेय अनुभव और अनुभूति के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं। अनुभव केवल घटना का होता है, जबकि अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात कर लेती है। वे उदाहरण देते हैं कि हिरोशिमा पर अणु बम गिरने की घटना के बारे में उन्होंने बहुत पढ़ा और देखा, यहाँ तक कि स्वयं हिरोशिमा जाकर वहाँ के अस्पताल भी देखे। फिर भी तत्काल वे कविता नहीं लिख सके, क्योंकि गहरी अनुभूति की कमी थी।
बाद में जब उन्होंने एक जले हुए पत्थर पर किसी व्यक्ति की छाया देखी, तो उनके भीतर अचानक गहरी संवेदना जागी। उन्हें लगा कि मानो वे स्वयं उस विस्फोट के भोक्ता बन गए हों। उसी अनुभूति ने उन्हें हिरोशिमा पर कविता लिखने के लिए विवश किया। अज्ञेय के अनुसार वही लेखन सच्चा होता है, जो अनुभूति से जन्म ले।
इस प्रकार यह निबंध हमें बताता है कि लेखन केवल ज्ञान या जानकारी का परिणाम नहीं है, बल्कि यह भीतर की गहरी संवेदना, अनुभूति और विवशता की उपज है। अज्ञेय का मानना है कि सच्चा साहित्यकार अपने लेखन के माध्यम से न केवल स्वयं को मुक्त करता है, बल्कि पाठकों को भी संवेदनशील बनाता है।
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