उत्साह और अट नहीं रही
अध्याय – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ : सारांश
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1899 में बंगाल के महिषादल में हुआ था, उनका मूल निवास उन्नाव (उत्तर प्रदेश) का गढ़ाकोला गाँव था। उनकी शिक्षा नौवीं तक ही हो पाई, परंतु स्वाध्याय से उन्होंने संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेज़ी का गहन अध्ययन किया। वे संगीत और दर्शन के अच्छे जानकार थे। उन पर रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की विचारधारा का गहरा प्रभाव पड़ा। निराला का पारिवारिक जीवन दुखों और संघर्षों से भरा रहा और साहित्यिक जीवन में भी उन्हें निरंतर संघर्ष करना पड़ा। सन् 1961 में उनका निधन हो गया।
निराला हिंदी साहित्य के बहुआयामी रचनाकार थे। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता और नए पत्ते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास, कहानी, निबंध और आलोचना में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उनका सम्पूर्ण साहित्य ‘निराला रचनावली’ के आठ खंडों में प्रकाशित है।
उनकी कविताओं में दार्शनिकता, विद्रोह, क्रांति, प्रेम और प्रकृति का विराट रूप मिलता है। उन्होंने छायावादी काव्यधारा में सबसे पहले मुक्त छंद का प्रयोग किया। उनकी कविता में पीड़ित, शोषित और उपेक्षित जन के प्रति गहरी सहानुभूति और शोषक वर्ग तथा सत्ता के प्रति प्रबल प्रतिकार की भावना झलकती है।
इस अध्याय में उनकी दो कविताएँ “उत्साह” और “अट नहीं रही है” दी गई हैं। उत्साह में कवि बादल को संबोधित कर क्रांति और नवजीवन का आह्वान करते हैं। बादल यहाँ केवल बरसाने वाला नहीं, बल्कि समाज में नई चेतना, नई सृजनात्मकता और परिवर्तन का प्रतीक है। कवि उसे गरजने के लिए कहता है ताकि पीड़ित जनों को राहत मिले और समाज में नई ऊर्जा का संचार हो।
दूसरी कविता अट नहीं रही है में कवि ने फागुन ऋतु की मादकता और सौंदर्य का चित्रण किया है। वसंत ऋतु के आगमन पर प्रकृति का मनोहारी रूप, बौराए आम, रंग-बिरंगे फूल और वातावरण में फैली खुशबू कवि के मन को बाँध लेती है। फागुन का उल्लास उन्हें हर ओर दिखाई देता है और वे कहते हैं कि यह सुंदरता उनकी आँखों से हटती ही नहीं।
कुल मिलाकर, इस अध्याय से निराला का विद्रोही, संवेदनशील और प्रकृति-प्रेमी कवि रूप सामने आता है। उनकी रचनाएँ जीवन की गहराइयों, सामाजिक चेतना और सौंदर्यबोध को सहज और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
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