बड़े भाई साहब
अध्याय – बड़े भाई साहब (प्रेमचंद) : सारांश
मुंशी प्रेमचंद हिंदी के महान यथार्थवादी कथाकार थे। उनकी कहानियों में आम आदमी का जीवन, दुख-दर्द और वास्तविकता बहुत सजीव रूप में मिलती है। प्रस्तुत कहानी “बड़े भाई साहब” में लेखक ने दो भाइयों के आपसी रिश्ते, पढ़ाई और जीवन के अनुभवों को बहुत ही रोचक और व्यंग्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
कहानी के नायक बड़े भाई साहब छोटे भाई से पाँच साल बड़े थे, लेकिन पढ़ाई में केवल तीन कक्षाएँ आगे। वे अध्ययनशील और गंभीर स्वभाव के थे। वे मानते थे कि शिक्षा मजबूत नींव की तरह है, जिसे धीरे-धीरे और मेहनत से मजबूत करना चाहिए। वे हमेशा छोटे भाई को पढ़ाई के महत्त्व और मेहनत की सीख देते रहते। उनके उपदेश लंबे और कठोर होते थे, जिससे छोटा भाई कई बार ऊब जाता था।
छोटा भाई चंचल और खेलों का शौकीन था। उसका मन पढ़ाई में कम लगता और वह खेलकूद में अधिक व्यस्त रहता। वह टाइम-टेबिल भी बनाता लेकिन उसका पालन नहीं कर पाता। परिणाम आने पर कई बार वह पास हो जाता और बड़े भाई साहब मेहनत करने के बावजूद फेल हो जाते। इस कारण छोटे भाई को कभी गर्व होता, तो कभी दया भी आती।
बड़े भाई साहब छोटे भाई को घमंड से बचने और जीवन की गहरी समझ का पाठ पढ़ाते। उनका कहना था कि केवल परीक्षा पास करना ही सब कुछ नहीं है, बल्कि असली शिक्षा बुद्धि का विकास और अनुभव से आती है। वे छोटे भाई को घमंड न करने, अनुशासन में रहने और जीवन का सही मार्ग अपनाने की सलाह देते थे।
अंत में एक प्रसंग ऐसा आता है जब छोटा भाई पतंग के पीछे दौड़ते हुए बड़े भाई से टकरा जाता है। उस समय बड़े भाई ने उसे समझाया कि चाहे पढ़ाई में वह उनसे आगे निकल भी जाए, लेकिन उम्र और अनुभव में हमेशा उनसे छोटा ही रहेगा। जीवन की सच्ची शिक्षा केवल किताबों से नहीं, बल्कि अनुभव और व्यवहार से मिलती है।
कुल मिलाकर, यह कहानी बड़े भाई के उपदेशों, छोटे भाई की शरारतों और दोनों भाइयों के स्नेहपूर्ण रिश्ते का मार्मिक चित्रण है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि अनुभव, अनुशासन और बड़ों का मार्गदर्शन भी उतना ही आवश्यक है।
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