डायरी का एक पन्ना
अध्याय – डायरी का एक पन्ना (सीताराम सेकसरिया) : सारांश
सीताराम सेकसरिया (1892–1982) स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता और समाजसेवी थे। उन्होंने विद्यालयी शिक्षा नहीं पाई, लेकिन स्वाध्याय से ज्ञान अर्जित किया। वे अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी-शिक्षण संस्थाओं से जुड़े रहे तथा महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी थे।
प्रस्तुत पाठ उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का विवरण है। यह दिन ऐतिहासिक था क्योंकि पूरे देश में दूसरी बार स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था। कलकत्ता शहर में इस अवसर पर जगह-जगह राष्ट्रीय झंडे फहराए गए और मकानों को सजाया गया। वातावरण में ऐसा उत्साह था मानो स्वतंत्रता सचमुच मिल गई हो।
ब्रिटिश सरकार ने सभा और जुलूस निकालने पर रोक लगा रखी थी। पुलिस ने पूरे शहर, पार्कों और मैदानों को घेर लिया था। फिर भी लोग डरे नहीं। विद्यार्थी संघ, कांग्रेस कमेटी और स्त्रियों के समूहों ने झंडा फहराने और जुलूस निकालने का साहस किया। श्रद्धानंद पार्क और तारा सुंदरी पार्क में झंडा फहराने के प्रयास पर पुलिस ने कार्यकर्ताओं को पकड़ा और मारपीट की। मारवाड़ी बालिका विद्यालय की छात्राओं और सेविका संघ की महिलाओं ने भी जोश से भाग लिया और कई गिरफ्तार हुईं।
दोपहर बाद सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में विशाल जुलूस निकला। पुलिस ने इसे रोकने की पूरी कोशिश की, परंतु भीड़ इतनी बड़ी थी कि रोका न जा सका। मैदान में पहुँचते ही पुलिस ने लाठियाँ बरसानी शुरू कर दीं। कई लोग घायल हुए, खून बहने लगा, फिर भी भीड़ “वंदे मातरम्” के नारों से गूँजती रही। स्त्रियाँ भी मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहराती रहीं और प्रतिज्ञा पढ़ती रहीं।
इस संघर्ष में लगभग 200 लोग घायल हुए और 100 से अधिक स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया। फिर भी जनता का उत्साह नहीं टूटा। लोगों को लगा कि बंगाल और कलकत्ता, जिन्हें आंदोलन में पीछे माना जाता था, अब पूरे जोश से स्वतंत्रता संग्राम में आगे बढ़ गए हैं।
कुल मिलाकर, यह डायरी का पन्ना हमें स्वतंत्रता संग्राम की उस अदम्य जिजीविषा से परिचित कराता है, जिसमें स्त्रियाँ और पुरुष, बूढ़े और युवा – सभी अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार थे। यह दिन वास्तव में अपूर्व था, जिसने भारत की आज़ादी की नींव को और मजबूत किया।
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