Notes For All Chapters Hindi Kritika Class 10 CBSE
1. लेखक परिचय
- नाम : शिवपूजन सहाय (1893-1963)
- विशेषता : हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार, संपादक और पत्रकार।
- लेखन शैली : आत्मकथात्मक, सहज और भावनाप्रधान।
- रचनाएँ : देवरानी जेठानी, विभूतियों के चरित, उदाहरण आदि।
2. शीर्षक का अर्थ
- माता का आँचल = माँ का स्नेह, ममता और सुरक्षा।
- यह केवल कपड़े का आँचल नहीं बल्कि बच्चे के लिए सुरक्षा कवच और प्रेम का प्रतीक है।
3. कथा-सार (बिंदुवार विस्तार से)
(क) पिता के साथ लगाव
- लेखक का बचपन का नाम तारकेश्वरनाथ, पर पिता प्यार से भोलानाथ कहते।
- पिता पूजा-पाठ में लीन रहते, वे बच्चे को भी अपने साथ बैठाते।
- रामनाम लिखना, आटे की गोलियाँ बनाकर गंगा में डालना – बच्चे के लिए रोमांचक अनुभव।
- पिता खेल-खेल में बच्चे के साथ कुश्ती लड़ते, झुलाते, हँसते और चूमते।
(ख) माँ का प्यार
- माँ बच्चे को बड़े प्यार से खिलाती।
- दही-भात खिलाते समय चिड़ियों (तोता, मैना, कबूतर आदि) के नाम से कौर बनाती।
- सिर में तेल डालना, चोटी गूँथना, सजाना-सँवारना।
- बच्चे को माँ के हाथों से खाना ज्यादा अच्छा लगता।
(ग) बचपन के खेल
- मिट्टी और घरेलू वस्तुओं से नाटक और खेल –
- मिठाई की दुकान लगाना।
- घरौंदा बनाना।
- बरात निकालना।
- खेती-बाड़ी का खेल (कुआँ, खेत, बैल, हल आदि)।
- बच्चे खेलों में तुकबंदी भी करते –
“ऊँच नीच में बई कियारी, जो उपजी सो भई हमारी।”
(घ) गाँव और मेले का जीवन
- बच्चे ददरी मेले की बात सुनकर उत्साहित हो जाते।
- बरात, पालकी, वाद्ययंत्र और रस्मों की नकल करते।
- बाग के आम, आँधी, बारिश, बिजली – सब प्राकृतिक दृश्य खेल का हिस्सा बनते।
(ङ) शरारतें और सज़ा
- मूसन तिवारी को चिढ़ाना, पकड़े जाने पर गुरुजी द्वारा दंड मिलना।
- गाँव के बच्चे हमेशा शरारती पर मासूम।
(च) भय और माँ का आँचल
- एक दिन साँप देखकर सब बच्चे भागे।
- लेखक घायल और डरा हुआ माँ की गोद में शरण लेने पहुँचा।
- माँ ने आँचल से आँसू पोंछे, घाव पर हल्दी लगाई और गोद में छिपाकर सांत्वना दी।
- यहीं लेखक को सबसे गहरा प्रेम और सुरक्षा का अनुभव हुआ।
4. ग्राम्य जीवन की झलक
- तीसरे दशक के गाँव का जीवन –
- पूजा-पाठ और धार्मिक वातावरण।
- खेत-खलिहान, बाग-बगीचे और मेले।
- बच्चों के खेल सादगीपूर्ण और प्राकृतिक वस्तुओं पर आधारित।
- ग्रामीण जीवन सरल, आनंदमय और सामूहिक था।
5. भाव पक्ष
- ममता का भाव : माँ के प्रेम और संरक्षण का चित्रण।
- स्नेह का भाव : पिता का हँसी-खेल से लाड़-दुलार।
- बाल-चंचलता : शरारतें, नाटक, खेल और तुकबंदी।
- ग्राम्य सौंदर्य : गाँव का मेले, खेती, खेल और आम का बाग।
- सुरक्षा का भाव : आँचल में छिपकर मिलने वाली मानसिक शांति।
6. भाषा शैली
- भाषा सहज, सरल और चित्रात्मक।
- बोलचाल के शब्दों का प्रयोग (जैसे – मइयाँ, बाबू जी, मोट, ज्योनार आदि)।
- लोकगीत, तुकबंदी और कहावतों का प्रयोग।
- आत्मकथात्मक शैली, जिसमें व्यक्तिगत अनुभव भी जुड़े हैं।
7. अध्याय की विशेषताएँ
- बचपन की मासूमियत और चंचलता का सजीव चित्रण।
- माता-पिता के वात्सल्य और भूमिका का सुंदर वर्णन।
- गाँव की संस्कृति और परिवेश की झलक।
- खेलों में कल्पनाशीलता और रचनात्मकता का प्रदर्शन।
- विपत्ति के समय माँ के आँचल की सुरक्षा और महत्व का बोध।
8. परीक्षा उपयोगी बिंदु
- मुख्य पात्र : भोलानाथ, बाबू जी, मइयाँ।
- प्रसंग :
- पिता का स्नेह (खेलना, झुलाना, गंगा ले जाना)।
- माँ का वात्सल्य (खिलाना, सजाना, घाव पर हल्दी लगाना)।
- खेल (मिठाई की दुकान, घरौंदा, बरात, खेती)।
- शीर्षक की सार्थकता : संकट के समय माँ का आँचल ही सच्ची शांति और सुरक्षा देता है।
9. सीख
- माँ का आँचल सबसे सुरक्षित स्थान है।
- माता-पिता का स्नेह जीवन में आत्मविश्वास और हिम्मत देता है।
- बाल्यकाल जीवन का स्वर्णिम और सबसे आनंदमय समय होता है।
- सादगी और प्राकृतिक जीवन में भी सुख और आनंद पाया जा सकता है।

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