शुचिपर्यावरणम् (स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण)
संस्कृत सारांशः
प्रथमः पाठः “शुचिपर्यावरणम्” आधुनिकसंस्कृतकवेः हरिदत्तशर्मणः “लसल्लतिका” इति रचनासङ्ग्रहात् सङ्कलितः अस्ति। अयं पाठः महानगरेषु यन्त्रचक्रेण प्रवर्धितप्रदूषणस्य गम्भीरं विषयं समुद्घाटति। कविः चिन्तितमनाः कथयति यत् महानगरीयजीवने कालायसचक्रं सततं संनादति, येन शरीरं मनः च शोषति। यानानां धूमेन वायुमण्डलं मलिनं भवति, जलं च कुत्सितवस्तुमिश्रितं समलं च भवति। एतद् दुर्वहं जीवनं प्रकृतेः शरणमेव एकमात्रं समाधानं भवति।
कविः महानगरात् सुदूरं नदी-निर्झर-वृक्षसमूह-लताकुञ्जैः संनादितं वनप्रदेशं प्रति गमनाय अभिलषति। सः हरिततरूणां ललितलतानां कुसुमावलीनां च रमणीयां मालां, पक्षिकुलस्य कलरवं च संनादति, यया जीवनं सुखमयं भवति। यानानां पङ्क्तयः, ध्वानमाला, धूमः च जीवनं कठिनं कुर्वन्ति, परं प्रकृतौ एकान्ते क्षणमपि सञ्चरणं मनःप्रसादकं भवति।
अन्ते, कविः पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्मानां संरक्षणं, प्रकृतेः शुद्धीकरणं च कामति। सः मानवस्य जीवन्तं जीवनं, न तु जीवन्मरणं, इच्छति। अयं पाठः प्रकृतिसंनादितं जीवनं, पर्यावरणस्य संरक्षणं च प्रेरति, यत् सर्वं शुचिपर्यावरणेन संनादति।
हिन्दी अनुवाद
प्रथम पाठ “शुचिपर्यावरणम्” आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा की रचना “लसल्लतिका” से संकलित है। यह पाठ महानगरों में यांत्रिक चक्रों के कारण बढ़ते प्रदूषण की गंभीर समस्या को उजागर करता है। कवि चिंतित मन से कहता है कि महानगरीय जीवन में निरंतर चलने वाला लौहचक्र (मशीनों का चक्र) शरीर और मन को सुखा देता है। वाहनों के धुएँ से वायुमण्डल दूषित हो जाता है, और जल कुत्सित पदार्थों से मिश्रित होकर अशुद्ध हो जाता है। यह असहनीय जीवन प्रकृति की शरण में जाने को ही एकमात्र समाधान मानता है।
कवि महानगरों से दूर, नदियों, झरनों, वृक्षसमूहों और लताओं से सुशोभित वन-प्रदेश में जाने की इच्छा व्यक्त करता है। वह हरे-भरे वृक्षों, सुंदर लताओं और फूलों की मालाओं की रमणीयता का वर्णन करता है, साथ ही पक्षियों के मधुर कूजन को सुनकर जीवन को सुखमय बनाने की बात कहता है। वाहनों की अंतहीन कतारें, शोर और धुआँ जीवन को कठिन बनाते हैं, लेकिन प्रकृति में एकांत में थोड़ा समय बिताना मन को प्रसन्न करता है।
अंत में, कवि पाषाणी सभ्यता में लताओं, वृक्षों और झाड़ियों के संरक्षण तथा प्रकृति के शुद्धिकरण की कामना करता है। वह मानव के लिए जीवंत जीवन की इच्छा करता है, न कि जीवित मृत्यु की। यह पाठ प्रकृति से संनादित जीवन और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है, जो स्वच्छ पर्यावरण से ही संभव है।
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