अनयोक्त्यः (अन्य (अलग) युक्तियों वाला)
प्रस्तुतः पाठः अन्योक्तिविषये वर्तते। अन्योक्तिः नाम अप्रत्यक्षरूपेण व्याजेन वा कस्यापि दोषस्य निन्दायाः कथनम्, गुणस्य प्रशंसा वा। सङ्केतमाध्यमेन व्यज्यमानाः प्रशंसादयः झटिति चिरञ्च बुद्धौ अवतिष्ठन्ते। अत्रापि सप्तानाम् अन्योक्तीनां सङ्ग्रहो वर्तते। याभिः राजहंस-कोकिल-मेघ-मालाकार-तडाग-सरोवर-चातकादीनां माध्यमेन सत्कर्म प्रति गमनाय प्रेरणा प्राप्यते।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ अन्योक्ति के विषय में है। अन्योक्ति अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप से या व्याज (प्रतीक) के द्वारा किसी दोष की निंदा या गुण की प्रशंसा करना। संकेत के माध्यम से व्यक्त की गई प्रशंसा आदि तुरंत और लंबे समय तक बुद्धि में स्थिर रहती हैं। यहाँ सात अन्योक्तियों का संग्रह है, जिनके द्वारा राजहंस, कोकिल, मेघ, माली, तालाब, सरोवर, चातक आदि के माध्यम से सत्कर्म की ओर प्रेरणा प्राप्त होती है।
एकेन राजहंसेन या शोभा सरसो भवेत्
न सा बकसहस्रेण परितस्तीरवासिना ॥1॥
हिंदी अनुवाद
एक राजहंस से सरोवर को जो शोभा प्राप्त होती है,
वह तट पर रहने वाले हजारों बगुलों से नहीं मिलती।
भुक्ता मृणालपटली भवता निपीतान्यम्बूनि यत्र नलिनानि निषेवितानि।
रे राजहंस! वद तस्य सरोवरस्य, कृत्येन केन भवितासि कृतोपकारः ॥2॥
हिंदी अनुवाद
तूने कमल के तंतु खाए, वहाँ का जल पिया, जहाँ कमल खिले हैं।
हे राजहंस! बता, उस सरोवर का तू कौन सा उपकार करेगा?
तोयैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघे,
मालाकार! व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः।
सा किं शक्या जनयितुमिह प्रावृषेण्येन वारां,
धारासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन ॥3॥
हिंदी अनुवाद
गर्मी के भयंकर सूर्य में, हे माली! करुणा से थोड़े जल से
जो तूने इस वृक्ष की पुष्टि की, क्या वह वर्षा के मेघ द्वारा
विश्व में धारासार बरसाने वाले जल से उत्पन्न की जा सकती है?
आपेदिरेऽम्बरपथं परितः पतङ्गाः,
भृङ्गा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
सङ्कोचमञ्चति सरस्त्वयि दीनदीनो,
मीनो नु हन्त कतमां गतिमभ्युपैतु ॥4॥
हिंदी अनुवाद
पक्षी आकाश मार्ग में उड़ गए, भँवरे आम के मंजरों पर जा बसे।
हे सरोवर! तुझमें संकुचन हो रहा है, दीन-हीन मछली
अब हाय! कौन सी गति को प्राप्त होगी?
एक एव खगो मानी वने वसति चातकः।
पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम् ॥5॥
हिंदी अनुवाद
वन में एकमात्र गर्वीला पक्षी चातक रहता है।
वह प्यासा होकर मर जाता है या इंद्र से याचना करता है।
आश्वास्य पर्वतकुलं तपनोष्णतप्त –
मुद्दामदावविधुराणि च काननानि।
नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद! सैव तवोत्तमा श्रीः ॥6॥
हिंदी अनुवाद
सूर्य की गर्मी से तप्त पर्वतों को शीतल कर,
दावानल से पीड़ित वनों को सान्त्वना दे,
नाना नदियों और नदों को भरकर,
हे मेघ! तू रिक्त हो गया, यही तेरी सर्वोत्तम श्री है।
रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयता-
मम्भोदा बहवो भवन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा,
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥7॥
हिंदी अनुवाद
हे चातक! सावधान मन से सुन, मित्र! क्षणभर सुनो,
आकाश में बहुत से मेघ हैं, पर सभी ऐसे नहीं होते।
कुछ वर्षा से धरती को सींचते हैं, कुछ व्यर्थ गरजते हैं,
जिसे भी देखो, उसके सामने दीन वचन मत बोलो।
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