अनयोक्त्यः (अन्य (अलग) युक्तियों वाला)
पाठस्य परिचयः
विषय: अन्योक्तिः – अप्रत्यक्षरूपेण व्याजेन वा दोषनिन्दा अथवा गुणप्रशंसा।
विशेषता: सङ्केतमाध्यमेन प्रशंसादयः बुद्धौ चिरं स्थायति।
प्रस्तुति: सप्त अन्योक्तयः – राजहंस, कोकिल, मेघ, मालाकार, तडाग, सरोवर, चातकादीनां माध्यमेन सत्कर्मप्रेरणा।
उद्देश्य: प्रतीकात्मककथनैः नैतिकं सन्देशं दातुं।
हिंदी में :
पाठ का परिचय
विषय: अन्योक्ति – परोक्ष रूप से दोष की निन्दा या गुण की प्रशंसा।
विशेषता: संकेत द्वारा प्रशंसा आदि मन में लंबे समय तक रहती है।
प्रस्तुति: सात अन्योक्तियाँ – राजहंस, कोकिल, मेघ, माली, तालाब, सरोवर, चातक आदि के माध्यम से सत्कर्म की प्रेरणा।
उद्देश्य: प्रतीकात्मक कथनों द्वारा नैतिक संदेश देना।
सूक्तीनां सारः (सूक्तियों का सार)
श्लोकः 1
- एकः राजहंसः सरसः शोभां करोति, न तु बकसहस्रम्।
- अर्थ: एक गुणी व्यक्तिः समूहस्य शोभां वर्धति, न तु अगुणिनां सङ्ख्या।
हिंदी में :
- एक राजहंस सरोवर की शोभा बढ़ाता है, न कि हजारों बगुले।
- अर्थ: एक गुणी व्यक्ति समूह की शोभा बढ़ाता है, न कि अगुणियों की संख्या।
श्लोकः 2
- राजहंसः सरोवरस्य कृतं कथं कृतोपकारः भवति?
- अर्थ: यः लाभति, स कृतज्ञः स्यात्, यथा राजहंसः सरोवरात् लाभति।
हिंदी में :
- राजहंस सरोवर के उपकार का बदला कैसे देगा?
- अर्थ: जो लाभ लेता है, उसे कृतज्ञ होना चाहिए, जैसे राजहंस सरोवर से लाभ लेता है।
श्लोकः 3
- मालाकारः अल्पतोयेन तरोः पुष्टिं करोति, न तु मेघः धारासारैः।
- अर्थ: सत्कर्म अल्पेनापि प्रभावति, न तु बृहद्व्ययेन।
हिंदी में :
- माली थोड़े जल से वृक्ष की पुष्टि करता है, मेघ बृहद् वर्षा से नहीं।
- अर्थ: सत्कर्म छोटे प्रयास से प्रभावी होता है, बड़े व्यय से नहीं।
श्लोकः 4
- सरसि सङ्कोचति मीनः दीनः कां गतिं प्राप्नोति?
- अर्थ: संकटे दीनः कष्टं प्राप्नोति, यथा मीनः जलाभावे।
हिंदी में :
- सरोवर के सिकुड़ने पर मछली दीन होकर कहाँ जाए?
- अर्थ: संकट में दीन व्यक्ति कष्ट पाता है, जैसे जलाभाव में मछली।
श्लोकः 5
- चातकः पिपासितोऽपि पुरन्दरं याचति, न अन्यम्।
- अर्थ: गर्वी सत्पुरुषः कष्टेऽपि स्वाभिमानं न त्यजति।
हिंदी में :
- चातक प्यासा होकर भी केवल इन्द्र से याचना करता है।
- अर्थ: गर्वी सत्पुरुष कष्ट में भी स्वाभिमान नहीं छोड़ता।
श्लोकः 6
- मेघः पर्वतं, काननं, नदीन् पूरयित्वा रिक्तः, तथापि तस्य श्रीः।
- अर्थ: परोपकारी स्वयं रिक्तोऽपि प्रशंसनीयः।
हिंदी में :
- मेघ पर्वत, वन, नदियों को भरकर रिक्त होता है, फिर भी उसकी श्री है।
- अर्थ: परोपकारी स्वयं रिक्त होकर भी प्रशंसनीय है।
श्लोकः 7
- चातकः सावधानः स्यात्, सर्वं मेघं न याचति, केचिद् वृथा गर्जन्ति।
- अर्थ: विवेकी सत्पात्रं चिनोति, न सर्वं विश्वसति।
हिंदी में :
- चातक सावधान हो, सभी मेघों से याचना न कर, कुछ व्यर्थ गरजते हैं।
- अर्थ: विवेकी सत्पात्र चुनता है, सभी पर भरोसा नहीं करता।
मुख्यं विषयम्
- अन्योक्तयः प्रतीकात्मकं नैतिकं सन्देशं ददति।
- सत्कर्म, कृतज्ञता, विवेकः, परोपकारः, अभिमानः च जीवनस्य मूलं।
हिंदी में :
- अन्योक्तियाँ प्रतीकात्मक रूप से नैतिक संदेश देती हैं।
- सत्कर्म, कृतज्ञता, विवेक, परोपकार, और अभिमान जीवन के मूल हैं।
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