अनयोक्त्यः (अन्य (अलग) युक्तियों वाला)
1. एकपदेन उत्तरं लिखत् –
(एक शब्द में उत्तर लिखिए।)
(क) कस्य शोभा एकेन राजहंसेन भवति? (एक राजहंस से किसकी शोभा होती है?)
उत्तरं – सरसः (सरोवर)
(ख) सरसः तीरे के वसन्ति? (सरोवर के तट पर कौन निवास करते हैं?)
उत्तरं – बकाः (बगुले)
(ग) कः पिपासितः म्रियते? (प्यासा होने पर कौन मर जाता है?)
उत्तरं – चातकः (चातक)
(घ) के रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते? (आम के मंजरों का आश्रय कौन लेते हैं?)
उत्तरं – भृङ्गाः (भँवरे)
(ङ) अम्भोदाः कुत्र सन्ति? (मेघ कहाँ होते हैं?)
उत्तरं – गगने (आकाश में)
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उनराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखें-)
(क) प्रश्नः – सरसः शोभा केन भवति? (सरसः शोभा एकेन राजहंसेन भवति, न तु बकसहस्रेण।)
उत्तरं – सरोवर की शोभा किसके द्वारा होती है? (रोवर की शोभा एक राजहंस से होती है, न कि हजारों बगुलों से।)
(ख) प्रश्नः – चातकः किमर्थं मानी कथ्यते? (चातक को गर्वीला क्यों कहा जाता है?)
उत्तरं – चातकः मानी कथ्यते यतः सः केवलं पुरन्दरात् जलं याचति, पिपासितोऽपि म्रियति च। (चातक को गर्वीला इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह केवल इन्द्र से जल माँगता है और प्यासा होने पर भी मर जाता
(ग) प्रश्नः – मीनः कदा दीनां गतिं प्राप्नोति? (मछली कब दयनीय स्थिति प्राप्त करती है?)
उत्तरं – मीनः यदा सरः सङ्कोचमञ्चति तदा दीनां गतिं प्राप्नोति। (मछली तब दयनीय स्थिति प्राप्त करती है जब सरोवर सिकुड़ने लगता है।)
(घ) प्रश्नः – कानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति? (मेघ किन्हें भरकर रिक्त हो जाता है?)
उत्तरं – जलदः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तः भवति। (मेघ विभिन्न नदियों और नदों को भरकर रिक्त हो जाता है।)
(ङ) प्रश्नः – वृष्टिभिः वसुधां के आर्द्रयन्ति? (वर्षा द्वारा पृथ्वी को कौन नम करते हैं?)
उत्तरं – केचिदम्भोदाः वृष्टिभिः वसुधां आर्द्रयन्ति। (कुछ मेघ वर्षा द्वारा पृथ्वी को नम करते हैं।)
प्रश्न 3. अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) मालाकारः तोयैः तरोः पुष्टिं करोति। (माली जल से वृक्ष की वृद्धि करता है।)
प्रश्न: मालाकारः के: तरोः पुष्टिं करोति? (माली किससे वृक्ष की वृद्धि करता है?)
(ख) भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। (भौंरे आम के कलियों का आश्रय लेते हैं।)
प्रश्न: भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते? (भौंरे किनका आश्रय लेते हैं?)
(ग) पतङ्गाः अम्बरपथम् आपेदिरे। (पतंगे आकाशमार्ग को प्राप्त हुए।)
प्रश्न: के अम्बरपथम् आपेदिरे? (कौन आकाशमार्ग को प्राप्त हुए?)
(घ) जलदः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति। (मेघ अनेक नदियों और नालों को भरकर खाली हो गया है।)
प्रश्न: कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति? (कौन अनेक नदियों और नालों को भरकर खाली हो गया है?)
(ङ) चातकः वने वसति। (चातक पक्षी वन में रहता है।)
प्रश्न: चातकः कुत्र वसति? (चातक कहाँ रहता है?)
4. अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थं स्वीकृतभाषया लिखत –
संस्कृत भावार्थ: हे मालाकार! ग्रीष्मकाले तीव्रसूर्यतापेन संनादति संसारे यदा, तदा त्वं करुणया अल्पजलैः तरोः पुष्टिं करोषि। किं तु वर्षाकाले विश्वस्मिन् धारासारं वर्षति मेघेन तादृशी पुष्टिः किं सम्भवति?
हिन्दी अनुवाद: हे माली! गर्मी के समय में जब तीव्र सूर्य की गर्मी से संसार तप रहा होता है, तब तुम दया करके थोड़े से जल से वृक्ष की पुष्टि करते हो। लेकिन क्या वर्षा ऋतु में मेघ द्वारा विश्व में भारी वर्षा बरसाने से ऐसी पुष्टि संभव है?
भाव: इस श्लोक में माली की थोड़े जल से की गई वृक्ष की देखभाल की प्रशंसा की गई है, जो मेघ की प्रचुर वर्षा से भी अधिक प्रभावशाली है।
(आ) रे रे चातक ………………………. दीनं वचः।
रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम् अम्भोदा बहवो भवन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः। केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा, यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ।
संस्कृत भावार्थ: हे चातक! सावधानचित्तेन मम वचनं शृणु। गगने बहवः मेघाः भवन्ति, किन्तु सर्वं तादृशाः न। केचन मेघाः वर्षया भूमिं सिञ्चन्ति, केचन तु केवलं गर्जन्ति। यं यं मेघं दृष्ट्वा, तस्य तस्य पुरतः दीनं वचनं मा कथ।
हिन्दी अनुवाद: हे चातक! सावधान होकर मेरी बात सुनो। आकाश में बहुत से मेघ होते हैं, लेकिन सभी एक जैसे नहीं होते। कुछ मेघ वर्षा करके धरती को सींचते हैं, जबकि कुछ केवल गरजते हैं। जिस-जिस मेघ को देखो, उसके सामने दीन वचन मत कहो।
भाव: इस श्लोक में चातक को सावधान रहने की सलाह दी गई है कि वह हर मेघ से जल की याचना न करे, क्योंकि सभी मेघ वर्षा करने वाले नहीं होते। यह आत्मसम्मान और विवेक का संदेश देता है।
5. अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत –
नीचे दिए गए दोनों श्लोकों का अन्वय (पदक्रम अनुसार सरल रूप) लिखिए।
(अ) आपेदिरे ……………… कतमां गतिमभ्युपैति।
अन्वय: पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् आपेदिरे, भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते, सरः त्वयि सङ्कोचम् आञ्चति, हन्त! दीनदीनः मीनः नु कतमां गतिम् अभ्युपैति।
हिन्दी अनुवाद:
पतंगे चारों ओर आकाश मार्ग को प्राप्त हो गए, भौंरे आम की कलियों का आश्रय लेते हैं, झील तेरे (मेघ के) कारण संकुचित हो रही है — हाय! बेचारा दीन मछली अब कौन-सी गति को प्राप्त होगी?
विश्लेषण: इस श्लोक में सरोवर के सूखने से मछली की दयनीय स्थिति का वर्णन है, जब अन्य जीव अपने स्थान पा रहे हैं।
(आ) आश्वास्य ………………. सैव तवोत्तमा श्रीः।।
अन्वय: हे जलद! तमनोष्णतां समं पर्वतकुलम् आश्वास्य, उद्दादौ विधुराणि काननानि च नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च, यत् रिक्तः असि, तव सा एव उत्तमा श्रीः (आस्ति)।
हिन्दी अनुवाद:
हे मेघ! तूने धूप से तपे हुए पर्वतों को शीतल कर दिया, सूखे हुए वनों और अनेक नदियों को भर दिया — और अब जब तू खाली हो गया है, तो तेरी यही रिक्तता (दानशीलता के बाद की अवस्था) ही तेरी सर्वोत्तम शोभा है।
विश्लेषण: इस श्लोक में मेघ की निःस्वार्थ सेवा की प्रशंसा की गई है, जो सबको लाभ पहुँचाकर स्वयं रिक्त हो जाता है।
6. उदाहरणमनुसृत्य सन्धिं / सन्धिविच्छेदं वा कुरुत –
(उदाहरण का अनुसरण करते हुए संधि या संधि-विच्छेद कीजिए।)
(i) यथा – अन्य + उक्तयः = अन्योक्तयः
(क) निपीता + अम्बूनि = निपीतान्यम्बूनि
हिन्दी अनुवाद: पिया हुआ + जल = पिया हुआ जल
(ख) कृत + उपकारः = कृतोपकारः
हिन्दी अनुवाद: किया हुआ + उपकार = किया हुआ उपकार
(ग) तपन + उष्णतप्तम् = तपनोष्णतप्तम्
हिन्दी अनुवाद: सूर्य + गर्मी से तप्त = सूर्य की गर्मी से तप्त
(घ) तव + उत्तमा = तवोत्तमा
हिन्दी अनुवाद: तुम्हारा + उत्तम = तुम्हारी उत्तम
(ङ) न + एतादृशाः = नैतादृशाः
हिन्दी अनुवाद: नहीं + ऐसे = ऐसे नहीं
(ii) यथा – पिपासितः + अपि = पिपासितोऽपि
(क) कः + अपि = कोऽपि
हिन्दी अनुवाद: कोई + भी = कोई भी
(ख) रिक्तः + असि = रिक्तोऽसि
हिन्दी अनुवाद: रिक्त + है = रिक्त है
(ग) मीनः + अयम् = मीनोऽयम्
हिन्दी अनुवाद: मछली + यह = यह मछली
(घ) सर्वे + अपि = सर्वेऽपि
हिन्दी अनुवाद: सभी + भी = सभी भी
(iii) यथा – सरसः + भवेत् = सरसो भवेत्
(क) खगः + मानी = खगोमानी
हिंदी: पक्षी + योग्य = पक्षी योग्य
(ख) मीन: + नु = मीनो नु
हिंदी: मछली + क्या = मछली क्या
(ग) पिपासितः + वा = पिपासितोऽपि
हिंदी: प्यासा + भी = प्यासा भी
(घ) पुरतः + मा = पुरतो मा
हिंदी: आगे + मत = आगे मत
(iv) यथा – मुनिः + अपि = मुनिरपि
(क) तोयैः + अल्पैः = तोयैरल्पैः
हिंदी: जल से + कम से = जल और कम
(ख) अल्पैः + अपि = अल्पैरपि
हिंदी: कम से + भी = कम से भी
(ग) तरोः + अपि = तरोरपि
हिंदी: वृक्ष से + भी = वृक्ष भी
(घ) वृष्टिभिः + आर्द्रयन्ति = वृष्टिभिरार्द्रयन्ति
हिंदी: बारिशों से + नम करते हैं = बारिशों से नम करते हैं
प्रश्न 6. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदै : समस्तपदानि रचयत –
दिए गए उदाहरणों का अनुसरण करते हुए, नीचे दिए गए विग्रह शब्दों (अलग-अलग रूपों में टूटे हुए शब्दों) से सभी शब्द बनाइए –
विग्रहपदानि – समस्त पदानि
(क) राजा च असौ हंसः = _____________
(ख) भीमः च असौ भानुः = __________________
(ग) अम्बरम् एव पन्थाः = ________________
(घ) उनमा च इयम् श्रीः = ________________
(च) सावधानं च तत् मनः, तेन = _________________
| क्रम | विग्रहपदानि | समस्त पदानि | हिंदी अनुवाद |
|---|---|---|---|
| यथा – | पीतं च तत् पङ्कजम | पङ्कजम | कमल का फूल |
| (क) | राजा च असौ हंसः | राजहंसः | राजा-हंस |
| (ख) | भीमः च असौ भानुः | भीम भानः | भीम-भानु |
| (ग) | अम्बरम् एव पन्थाः | अम्बर प्रथम् | आकाश प्रथम |
| (घ) | उनमा च इयम् श्रीः | उत्तमेश्री | उत्तम-श्री |
| (च) | सावधानं च तत् मनः, तेन | सावधानमनसा | सावधान मन से |

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