अनयोक्त्यः (अन्य (अलग) युक्तियों वाला)
संस्कृत सारांशः
दशमः पाठः “अन्योक्तयः” अन्योक्तिकाव्यस्य स्वरूपं विशदं निरूपति। अन्योक्तिः नाम काव्यस्य सः रूपः यत्र अप्रत्यक्षरूपेण सङ्केतमाध्यमेन कस्यचिद् दोषस्य निन्दा, गुणस्य प्रशंसा वा कथ्यते। एतादृशः काव्यरूपः बुद्धौ शीघ्रं चिरं च स्मरणीयः भवति, यतः सङ्केतेन व्यक्तं भावं मनः सुगमं गृह्णाति। प्रस्तुते पाठे सप्त अन्योक्तयः सङ्गृहीताः, यासु राजहंसः, कोकिलः, मेघः, मालाकारः, तडागः, सरोवरः, चातकः च माध्यमेन सत्कर्मणां, कृतज्ञतायाः, धैर्यस्य च प्रेरणा दीयते।
प्रथमश्लोके राजहंसस्य एकस्यैव सरसः शोभां बकसहस्रेणापि असम्भाव्यां वर्णति। द्वितीयश्लोके राजहंसः सरोवरस्य कृतं कृतज्ञतायां प्रश्नति, यत् तेन भुक्तं मृणालं, पीतं जलं च, तस्य कृतोपकारः कः भवति। तृतीयश्लोके मालाकारस्य अल्पतोयेन तरोः पुष्टिकारिणः कृते प्रशंसा, यद् मेघस्य धारासारैरपि तादृशी पुष्टिः न सम्भवति। चतुर्थश्लोके सरोवरस्य सङ्कोचात् मीनस्य दीनगतिं वर्णति। पञ्चमश्लोके चातकः मानी कथितः, यत् सः पिपासितोऽपि केवलं मेघात् जलं याचति। षष्ठश्लोके मेघः नदीन् पूरयित्वा रिक्तः भवति, तथापि तस्य श्रीः उत्तमा। सप्तमश्लोके चातकं सावधानं कथति यत् सर्वं मेघं न याचेत्, यतः केचन मेघाः वृष्ट्या वसुधां आर्द्रयन्ति, केचन तु वृथा गर्जन्ति। एताभिः अन्योक्तिभिः सत्कर्म, कृतज्ञता, धैर्यं, विवेकः च प्रेर्यते।
हिंदी अनुवाद
दशम पाठ “अन्योक्तयः” अन्योक्ति काव्य के स्वरूप का विस्तृत वर्णन करता है। अन्योक्ति वह काव्य रूप है जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से संकेतों के माध्यम से किसी दोष की निन्दा या गुण की प्रशंसा की जाती है। यह काव्य रूप मन में शीघ्र और स्थायी प्रभाव छोड़ता है, क्योंकि संकेतों द्वारा व्यक्त भाव मन द्वारा आसानी से ग्रहण किया जाता है। इस पाठ में सात अन्योक्तियाँ संकलित हैं, जो राजहंस, कोकिल, मेघ, मालाकार, तालाब, सरोवर और चातक के माध्यम से सत्कर्म, कृतज्ञता और धैर्य की प्रेरणा देती हैं।
पहले श्लोक में एक राजहंस द्वारा सरोवर की शोभा को बक के सहस्रों से भी अतुलनीय बताया गया है। दूसरे श्लोक में राजहंस से सरोवर के प्रति कृतज्ञता पर प्रश्न किया गया है कि उसने जो कमलनाल खाया और जल पिया, उसका उपकार कैसे चुकाएगा। तीसरे श्लोक में मालाकार की प्रशंसा है, जो थोड़े जल से वृक्ष की पुष्टि करता है, जो मेघ की प्रचुर वर्षा से भी सम्भव नहीं। चौथे श्लोक में सरोवर के सूखने से मछली की दयनीय स्थिति का वर्णन है। पाँचवें श्लोक में चातक को गर्वीला कहा गया, क्योंकि वह प्यासा होने पर भी केवल मेघ से जल माँगता है। छठे श्लोक में मेघ नदियों को भरकर रिक्त हो जाता है, फिर भी उसकी श्री सर्वोत्तम है। सातवें श्लोक में चातक को सावधान किया गया कि वह हर मेघ से जल न माँगे, क्योंकि कुछ मेघ वृष्टि से धरती को सींचते हैं, जबकि कुछ व्यर्थ गरजते हैं। इन अन्योक्तियों के द्वारा सत्कर्म, कृतज्ञता, धैर्य और विवेक की प्रेरणा दी जाती है।
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