बुद्धिर्बलवती सदा (बुद्धि हमेशा बलवान होती है)
पाठस्य प्रमुखं बिन्दवः
- उत्स: “शुकसप्ततिः” इति कथाग्रन्थात् सम्पादितः।
- कथावस्तु: बुद्धिमती नाम्नी महिला स्वलघुपुत्राभ्यां सह पितृगृहं गच्छन्ती जंगलमार्गे व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिकौशलेन तं भयभीतं कृत्वा स्वं पुत्रौ च रक्षति। पुनः शृगालेन प्रोत्साहितं व्याघ्रं प्रत्युत्पन्नमत्या पराजितति।
- नैतिकं सन्देश: बुद्धिः सर्वदा सर्वकार्येषु बलवती। बुद्ध्या महतो भयात् मुक्तिः सम्भवति।
हिंदी में :
- उत्स: “शुकसप्तति” नामक कथा ग्रन्थ से संपादित।
- कथावस्तु: बुद्धिमती नाम की स्त्री अपने दो छोटे पुत्रों के साथ पिता के घर जाते समय जंगल के मार्ग में बाघ को देखकर अपनी बुद्धि-कुशलता से उसे भयभीत कर स्वयं और अपने पुत्रों की रक्षा करती है। फिर शृगाल द्वारा प्रोत्साहित बाघ को अपनी त्वरित बुद्धि से पराजित करती है।
- नैतिक संदेश: बुद्धि सदा सभी कार्यों में बलवती होती है। बुद्धि से बड़े से बड़े भय से मुक्ति संभव है।
परिचय :
स्थानं: देउलाख्यः ग्रामः।
हिंदी में :
स्थान: देउला नामक ग्राम।
पात्रं:
राजसिंह: राजपुत्रः, बुद्धिमत्याः पतिः।
बुद्धिमती: बुद्धिमती, धैर्यवती, प्रत्युत्पन्नमतिः महिला।
पुत्रद्वयं: बुद्धिमत्याः पुत्रौ, कथायां निष्क्रियं।
व्याघ्र: प्रबलः, किन्तु बुद्धिमतीया बुद्धौ भयाकुलः।
शृगाल: धूर्तः, व्याघ्रस्य उपहासकः, बुद्धिमतीया पराजितः।
हिंदी में :
राजसिंह: राजपुत्र, बुद्धिमती का पति।
बुद्धिमती: बुद्धिमान, धैर्यवान, त्वरित बुद्धि वाली स्त्री।
पुत्रद्वय: बुद्धिमती के दो पुत्र, कथा में निष्क्रिय।
बाघ (व्याघ्र): शक्तिशाली, किन्तु बुद्धिमती की बुद्धि से भयभीत।
शृगाल: कपटी, बाघ का उपहास करने वाला, बुद्धिमती द्वारा पराजित।
प्रथमं घटनाक्रम:
1. बुद्धिमती गहनकानने व्याघ्रं दृष्ट्वा धैर्यं प्रदर्शति।
2. पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य उक्तवती: “कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
3. व्याघ्रः “व्याघ्रमारी” इति मत्वा भयेन पलायति।
4. सन्देश: “निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी। अन्योऽपि बुद्धिमाल्लोके मुच्यते महतो भयात्।”
हिंदी में :
1. बुद्धिमती घने जंगल में बाघ को देखकर धैर्य प्रदर्शित करती है।
2. अपने पुत्रों को थप्पड़ मारकर कहती है: “एक-एक करके बाघ खाने के लिए झगड़ा क्यों करते हो? इसे बाँटकर खाओ, दूसरा बाद में मिलेगा।”
3. बाघ यह सोचकर कि यह “बाघमारी” है, भयभीत होकर भाग जाता है।
4. संदेश: “अपनी बुद्धि से वह स्त्री बाघ के भय से मुक्त हुई। बुद्धिमान व्यक्ति संसार में बड़े भय से भी मुक्त हो सकता है।”
द्वितीयं घटनाक्रम:
1. शृगालः व्याघ्रस्य भयं दृष्ट्वा उपहासति: “भवान् कुतः भयात् पलायितः?”
2. व्याघ्रः प्रत्युत्तरति यत् बुद्धिमती पुत्रौ प्रहृत्य तं खादितुं कलहति।
3. शृगालः व्याघ्रं प्रोत्साहति, स्वं गले बद्ध्वा सह गच्छति।
4. बुद्धिमती दूरात् व्याघ्रं शृगालेन सह आगच्छन्तं दृष्ट्वा चिन्तति।
5. प्रत्युत्पन्नमत्या शृगालं तर्जति: “रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा। विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।”
6. व्याघ्रः शृगालेन सह पुनः भयेन पलायति।
हिंदी में :
1. शृगाल बाघ के भय को देखकर उसका उपहास करता है: “तुम किस भय से भागे?”
2. बाघ उत्तर देता है कि बुद्धिमती अपने पुत्रों को मारकर उसे खाने के लिए झगड़ रही थी।
3. शृगाल बाघ को प्रोत्साहित करता है और स्वयं को गले में बाँधकर उसके साथ जाता है।
4. बुद्धिमती दूर से बाघ को शृगाल के साथ आते देख चिन्तित होती है।
5. त्वरित बुद्धि से वह शृगाल को डाँटती है: “रे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ देने का वादा किया था। अब विश्वास तोड़कर केवल एक लाया, यह क्या?”
6. बाघ शृगाल सहित फिर भयभीत होकर भाग जाता है।
Leave a Reply