शिशुलालनम् (शिशु का पालन-पोषण)
1. प्रस्तावना:
प्रसङ्ग: रामः सिंहासने समासीनः अस्ति। विदूषकेन संनादति तापसवेषधरौ कुशलवौ प्रविशतः।
मुख्यं भावम्: रामः स्वपुत्रौ लवकुशौ न संनादति, किन्तु तयोः रूपलावण्येन समुदाचारेन च संनादति। पाठे शिशुवात्सल्यम्, विनम्रता, सीतानिर्वासनेन रामस्य आत्मधिक्कारः च संनादति।
श्लोकानां महत्त्वम्: शिशुलालनीयतायाः रामायणगानस्य च महत्त्वं प्रदर्शति।
हिंदी में :
प्रसंग: राम सिंहासन पर विराजमान हैं। विदूषक के साथ तापस वेश में लव-कुश प्रवेश करते हैं।
मुख्य भाव: राम अपने पुत्रों से अपरिचित हैं, पर उनके रूप-लावण्य और समुदाचार से प्रभावित होते हैं। पाठ में वात्सल्य, विनम्रता, और राम का आत्म-धिक्कार (सीता के निर्वासन के कारण) झलकता है।
श्लोकों का महत्व: शिशु-लालनीयता और रामायण-गान की महत्ता को दर्शाते हैं।
2. प्रमुख घटनाएँ:
प्रवेश और अभिवादन:
- लव-कुश राम को प्रणाम करते हैं और कुशल पूछते हैं।
- राम कहते हैं कि उनके दर्शन से कुशल है। वे उन्हें गले लगाते हैं और स्पर्श को हृदयग्राही बताते हैं।
हिंदी में :
- लवकुशौ रामं प्रणमति कुशलं च पृच्छतः।
- रामः तयोः दर्शनेन कुशलमिव वदति। तौ परिष्वजति, स्पर्शं हृदयग्राहिनं कथयति।
सिंहासन प्रसंग:
- रामः लवकुशौ सिंहासनस्यार्धे उपवेशयितुं इच्छति। उभौ राजासनमिदं न युक्तमध्यासितुं इति निवारतः।
- रामः सव्यवधानं चारित्रलोपाय न भवति इति कथयति। तौ अङ्के उपवेशयति।
- श्लोक: भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव। व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्॥
- अन्वय: शिशुजनः वयोऽनुरोधात् गुणमहताम् अपि लालनीयः एव भवति। हिमकरः अपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
- भाव: शिशवः लघुवयसः कारणात् गुणवताम् अपि लालनीयाः एव। यथा चन्द्रः बालभावेन शङ्करस्य मस्तके केतकीपुष्पवत् शोभति।
हिंदी में :
- राम लव-कुश को सिंहासन के आधे भाग पर बैठाना चाहते हैं। दोनों मना करते हैं कि यह राजासन है, बैठना अनुचित है।
- राम कहते हैं कि गोद में बैठने से चारित्र-लोप नहीं होगा। वे दोनों को गोद में बैठाते हैं।
- श्लोक: “भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् गुणमहतामपि लालनीय एव। व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्॥”
- अन्वय: शिशुजनः वयोऽनुरोधात् गुणमहताम् अपि लालनीयः एव भवति। हिमकरः अपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
- भाव: छोटी उम्र के कारण शिशु लालनीय होते हैं, जैसे चंद्रमा बालभाव से शिव के मस्तक पर केतकी-पुष्प की तरह शोभित होता है।
वंश और परिचय पूछताछ:
- रामः पृच्छति: भवतोः वंशस्य कर्त्ता सूर्यचन्द्रयोः कः? लवः: सहस्रदीधितिः (सूर्यः)।
- उभौ यमलौ (यमजौ) भ्रातरौ, नामनी: लवः कुशः च, गुरुः: वाल्मीकिः (उपनयनोपदेशेन)।
- पितुः नाम: लवः न जानाति। कुशः: निरनुक्रोशः (माता क्रुद्धा एवमाह)।
- मातुः नाम: देवी (तपोवनवासिभिः), वधू (वाल्मीकिना)।
हिंदी में :
- राम पूछते हैं: आपके वंश के कर्ता सूर्य या चंद्र? लव: सहस्रदीधितिः (सूर्य)।
- दोनों यमल (जुड़वां) भाई, नाम: लव और कुश, गुरु: वाल्मीकि (उपनयन-उपदेश से)।
- पिता का नाम: लव नहीं जानते। कुश कहते हैं निरनुक्रोशः (माँ क्रोध में ऐसा कहती है)।
- माता का नाम: देवी (तपोवनवासियों द्वारा), वधू (वाल्मीकि द्वारा)।
राम का आत्म-धिक्कार:
- विदूषकस्य पृच्छनेन माता क्रुद्धा तौ “निरनुक्रोशस्य पुत्रौ” इति कथति। रामः स्वगतं स्वयं धिक्कारति यत् सीता मम अपराधेन अपत्यम् एवमधिक्षिपति।
- रामः मातुः नाम वेदितुं इच्छति, किन्तु संनादति। विदूषकः पृच्छति।
हिंदी में :
- विदूषक के पूछने पर पता चलता है कि माँ क्रोध में बच्चों को “निरनुक्रोश के पुत्र” कहती है। राम स्वगत में खुद को धिक्कारते हैं कि सीता उनके अपराध के कारण बच्चों को डाँटती है।
- राम माता का नाम जानना चाहते हैं, पर संकोच करते हैं। विदूषक पूछता है।
रामायण-गान और समापन:
नेपथ्यतः रामायणगानस्य समयः संनादति। रामः श्लोकमाह:
श्लोक: भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर् गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्। कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः॥
अन्वय: भवन्तौ गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि वसुमतीम् प्रथमम् अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
भाव: लवकुशौ गायकौ, वाल्मीकिः पुराणकविः, एषः प्रथमं वाणीसन्दर्भः। विष्णोः श्लाघ्या कथा श्रोतारं पुनाति रमति च।
हिंदी में :
नेपथ्य से रामायण-गान का समय होने की सूचना। राम श्लोक कहते हैं:
श्लोक: “भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर् गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्। कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः॥”
अन्वय: भवन्तौ गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि वसुमतीम् प्रथमम् अवतीर्णः गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
भाव: लव-कुश गायक हैं, वाल्मीकि पुराण कवि हैं, यह प्रथम वाणी-संदर्भ है। विष्णु की कथा श्रोताओं को पवित्र और आनंदित करती है।
राम सौमित्रि को बुलाने और सभासदों को इकट्ठा करने का आदेश देते हैं। सभी निष्क्रांत।
3. मुख्य पात्र:
राम: अयोध्याया राजा, लवकुशयोः पिता, यः तौ न संनादति। वात्सल्येन आत्मधिक्कारेन च संनादति।
लवकुशौ: रामस्य यमलपुत्रौ, तापसवेषधरौ, विनम्रौ समुदाचारिणौ। वाल्मीकेः शिष्यौ।
विदूषक: रामस्य सखा, संवादं लघु कुरुति, पृच्छायां सहायति।
नेपथ्यं: रामायणगानस्य समयं संनादति।
हिंदी में :
राम: अयोध्या के राजा, लव-कुश के पिता, जो उन्हें पहचानते नहीं। वात्सल्य और आत्म-धिक्कार से भावुक।
लव-कुश: राम के यमल पुत्र, तापस वेश में, विनम्र और समुदाचारी। वाल्मीकि के शिष्य।
विदूषक: राम का सखा, संवाद को हल्का और पूछताछ में सहायक।
नेपथ्य: रामायण-गान की सूचना देता है।
4. प्रमुख विषय:
शिशुवात्सल्यम्: रामस्य लवकुशयोः प्रति स्नेहः, तयोः लालनीयता।
विनम्रता: लवकुशयोः राजासने न उपवेशनस्य आग्रहः।
रामस्य आत्मधिक्कार: सीताया निर्वासनेन तस्य पीडा।
रामायणस्य महत्त्वम्: वाल्मीकिकृतकाव्यस्य गानस्य च प्रशंसा।
हिंदी में :
शिशु-वात्सल्य: राम का लव-कुश के प्रति स्नेह और उनकी लालनीयता।
विनम्रता: लव-कुश का राजासन पर न बैठने का आग्रह।
राम का आत्म-धिक्कार: सीता के निर्वासन के कारण उनकी पीड़ा।
रामायण की महत्ता: वाल्मीकि-रचित काव्य और गान की प्रशंसा।
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