शिशुलालनम् (शिशुओं का लालन-पोषण )
१. एकपदेन उत्तरम्
(एक शब्द में उत्तर लिखिए)
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमतः ? (कुश और लव किसके पास जाकर प्रणाम करते हैं?)
उत्तरम् – रामम्। (श्रीराम के पास)
(ख) तपोवनवासिनः कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति ? (तपोवनवासी कुश की माता को किस नाम से बुलाते हैं?)
उत्तरम् – देवीति / वधूरिति। (देवी अथवा वधू)
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति ? (उम्र के कारण कौन सदा दुलारने योग्य होता है?)
उत्तरम् – शिशुजनः। (बालक)
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लवकुशयोः गुरु : ? (किस सम्बन्ध से वाल्मीकि लव और कुश के गुरु हैं?)
उत्तरम् – उपनयनोपदेशेन। (उपनयन और उपदेश देने के कारण)
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते ? (कहाँ पर लवकुश के पिता का नाम नहीं लिया जाता?)
उत्तरम् – तपोवने। (तपोवन में)
प्रश्न 2. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
👉 राम के लिए कुश और लव के गले लगाने का स्पर्श कैसा था?
उत्तरम्: रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
👉 राम के लिए कुश और लव के गले लगाने का स्पर्श हृदय को छू लेने वाला था।
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
👉 राम लव और कुश को कहाँ बैठाने के लिए कहते हैं?
उत्तरम्: रामः लवकुशौ अङ्कम् सिंहासनम् उपवेशयितुम् कथयति।
👉 राम लव और कुश को अपनी गोद तथा सिंहासन पर बैठाने के लिए कहते हैं।
(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
👉 बालभाव (कम उम्र) के कारण चन्द्रमा कहाँ शोभित होता है?
उत्तरम्: बालभावात् हिमकरः पशुपति-मस्तके विराजते।
👉 बालभाव के कारण चन्द्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित होता है।
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता क: ?
👉 कुश और लव के वंश का संस्थापक कौन है?
उत्तरम्: कुशलवयोः वंशस्य कर्ता सहस्रदीधितिः।
👉 कुश और लव के वंश का संस्थापक सूर्य (सहस्रकिरणों वाला) है।
(ङ) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति?
👉 वाल्मीकि लव और कुश की माता को किस नाम से बुलाते हैं?
उत्तरम्: कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः वधूः नाम्ना आह्वयति।
👉 वाल्मीकि लव और कुश की माता को “वधू” नाम से बुलाते हैं।
3. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत-
(रेखांकित पदों में विभक्ति और उसका कारण उदाहरण के अनुसार बताएँ)
विभक्तिः तत्कारणम्
यथा- राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन । तृतीया ‘अलम्’ योगे
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति ।
(ख) धिङ् माम् एवं भूतम्।
(ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।
(घ) अलम् अतिविस्तरेण ।
ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।
वाक्य | रेखांकित पद | विभक्तिः | तत्कारणम् | हिन्दी अनुवाद |
---|---|---|---|---|
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति। | आसनार्धम् | द्वितीया | कर्म | राम लव और कुश को आधे आसन पर बैठाता है। |
(ख) धिङ् माम् एवम् भूतम्। | माम् | द्वितीया | कर्म | धिक्कार है मुझे इस तरह के। |
(ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्। | सिंहासनम् | द्वितीया | कर्म | गोद में बैठकर सिंहासन पर बैठा जाए। |
(घ) अलम् अतिविस्तरेण। | अतिविस्तरेण | तृतीया | ‘अलम्’ योगे | बहुत विस्तार से काफी है। |
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च। | रामम् | द्वितीया | कर्म | राम के पास जाकर और प्रणाम करके। |
राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन।
विभक्ति: तृतीया
तत्कारणम्: ‘अलम्’ योगे
हिन्दी अनुवाद: राजा! बहुत विनम्रता से काफी है।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “अतिदाक्षिण्येन” में तृतीया विभक्ति है क्योंकि यह “अलम्” शब्द के साथ प्रयुक्त है, जो तृतीया विभक्ति के योग में कारण या साधन को दर्शाता है।
(क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।
विभक्ति: द्वितीया
तत्कारणम्: कर्म
हिन्दी अनुवाद: राम लव और कुश को आधे आसन पर बैठाता है।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “आसनार्धम्” में द्वितीया विभक्ति है क्योंकि यह क्रिया “उपवेशयति” (बैठाना) का कर्म (object) है। संस्कृत में क्रिया का कर्म सामान्यतः द्वितीया विभक्ति में होता है, क्योंकि यह उस स्थान को दर्शाता है जहाँ लव और कुश को बैठाया जा रहा है।
संस्कृत व्याख्या: “आसनार्धम्” इति पदे द्वितीया विभक्तिः प्रयुक्ता अस्ति यतः एतत् “उपवेशयति” इति क्रियायाः कर्मरूपेण संनादति। कर्मणः द्वितीया विभक्तिः संस्कृते सामान्यतः प्रयुज्यते।
(ख) धिङ् माम् एवम् भूतम्।
विभक्ति: द्वितीया
तत्कारणम्: कर्म
हिन्दी अनुवाद: धिक्कार है मुझे इस तरह के।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “माम्” में द्वितीया विभक्ति है क्योंकि यह “धिक्” (निन्दा करना) का कर्म है। “धिक्” एक निन्दात्मक शब्द है, जो निन्दा के उद्देश्य को दर्शाता है, और संस्कृत में निन्दा का उद्देश्य द्वितीया विभक्ति में होता है। यहाँ “माम्” उस व्यक्ति को इंगित करता है जिसकी निन्दा की जा रही है।
संस्कृत व्याख्या: “माम्” इति पदे द्वितीया विभक्तिः यतः “धिक्” इति निन्दात्मकशब्दस्य कर्मरूपेण प्रयुक्तम्। निन्दायाः उद्देश्यं द्वितीया विभक्तौ भवति।
(ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।
विभक्ति: द्वितीया
तत्कारणम्: कर्म
हिन्दी अनुवाद: गोद में बैठकर सिंहासन पर बैठा जाए।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “सिंहासनम्” में द्वितीया विभक्ति है क्योंकि यह क्रिया “अध्यास्यताम्” (बैठा जाए) का कर्म है। संस्कृत में क्रिया का कर्म (जैसे यहाँ सिंहासन, जहाँ बैठने की बात है) द्वितीया विभक्ति में होता है।
संस्कृत व्याख्या: “सिंहासनम्” इति पदे द्वितीया विभक्तिः यतः एतत् “अध्यास्यताम्” इति क्रियायाः कर्मरूपेण संनादति। कर्मणः द्वितीया विभक्तिः नियमानुसारं प्रयुज्यते।
(घ) अलम् अतिविस्तरेण।
विभक्ति: तृतीया
तत्कारणम्: ‘अलम्’ योगे
हिन्दी अनुवाद: बहुत विस्तार से काफी है।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “अतिविस्तरेण” में तृतीया विभक्ति है क्योंकि यह “अलम्” शब्द के साथ प्रयुक्त है। संस्कृत में “अलम्” के साथ तृतीया विभक्ति का प्रयोग कारण, साधन या पर्याप्तता दर्शाने के लिए होता है। यहाँ “अतिविस्तरेण” बहुत विस्तार के कारण को दर्शाता है।
संस्कृत व्याख्या: “अतिविस्तरेण” इति पदे तृतीया विभक्तिः यतः “अलम्” इति शब्देन संनादति। “अलम्” योगे तृतीया विभक्तिः कारणं वा साधनं वा दर्शति।
(ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।
विभक्ति: द्वितीया
तत्कारणम्: कर्म
हिन्दी अनुवाद: राम के पास जाकर और प्रणाम करके।
हिन्दी व्याख्या: यहाँ “रामम्” में द्वितीया विभक्ति है क्योंकि यह क्रिया “उपसृत्य” (पास जाना) और “प्रणम्य” (प्रणाम करना) का कर्म है। संस्कृत में क्रिया का उद्देश्य या कर्म द्वितीया विभक्ति में होता है। यहाँ “रामम्” उस व्यक्ति को दर्शाता है जिसके पास जाया गया और जिसे प्रणाम किया गया।
संस्कृत व्याख्या: “रामम्” इति पदे द्वितीया विभक्तिः यतः एतत् “उपसृत्य” च “प्रणम्य” च इति क्रिययोः कर्मरूपेण प्रयुक्तम्। कर्मणः द्वितीया विभक्तिः नियमानुसारं भवति।
4. यथानिर्देशम् उत्तरत-
(निर्देश के अनुसार उत्तर दें)
(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम् ?
उत्तरम् – अहम्।
👉 हिन्दी: इस वाक्य में कर्ता कौन है?
– मैं।
(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’ – अस्मात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थक पदं चित्वा लिखत।
उत्तरम् – कुपिता।
👉 हिन्दी: ‘हर्षिता’ (प्रसन्न) का विपरीत शब्द?
– कुपिता (क्रोधित)।
(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान्!’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् – रामाय।
👉 हिन्दी: यहाँ “भवान्” शब्द किसके लिए प्रयुक्त है?
– श्रीराम के लिए।
(घ) ‘तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्यताम् सिंहासनम्’ – अत्र क्रियापदं किम् ?
उत्तरम् – अध्यास्यताम्।
👉हिन्दी: इस वाक्य में क्रियापद कौन सा है?
– अध्यास्यताम् (बैठा जाए)।
(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्’ – अत्र ‘आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् – वयसः।
👉 हिन्दी: ‘आयु’ के अर्थ में कौन सा पद आया है?
– वयसः।
5. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति-
(नीचे दिए गए वाक्य कौन किससे कहता है)
(क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय। (बाधा के साथ बैठने से चरित्र का नाश नहीं होता |)
क: रामः (राम)
कम्: कुशलवौ (कुश और लव से)
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था? (‘क्या वह क्रोधित होकर ऐसा कहती है या सामान्य अवस्था में?)
क: विदूषकः (विदूषक)
कम्: कुशम् (कुश से)
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्। (मैं उसके नाम को जानता हूँ |)
क: कुशः (कुश)
कम्: रामम् (राम से)
(घ) तस्या द्वे नाम्नी। (उसके दो नाम हैं।)
क: लवः (लव)
कम्: विदूषकम् (विदूषक से)
(ङ) वयस्य! अपूर्व खलु नामधेयम्। (मित्र! यह नाम तो अनोखा है।’)
क: रामः (राम)
कम्: विदूषकम् (विदूषक से)
6. मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत-
(मंजूषा से दो पर्यायवाची शब्द चुनकर लिखें)
शिवः शिष्टाचारः शशिः चन्द्रशेखरः सुतः इदानीम्
अधुना पुत्रः सूर्यः सदाचारः निशाकरः भानुः
(क) हिमकरः – शशिः, निशाकरः
(ख) सम्प्रति – इदानीम्, अधुना
(ग) समुदाचारः – शिष्टाचारः, सदाचारः
(घ) पशुपतिः – शिवः, चन्द्रशेखरः
(ङ) तनयः – सुतः, पुत्रः
(च) सहस्रदीधितिः – भानुः, सूर्यः
👉 हिन्दी:
हिमकर = चन्द्रमा
सम्प्रति = अभी
समुदाचार = सदाचार
पशुपति = शिव
तनय = पुत्र
सहस्रदीधिति = सूर्य
(अ) विशेषण – विशेष्यपदानि योजयत-
(विशेषण और विशेष्य को जोड़ें)
(1) उदात्तरम्य: (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः (ख) स्पर्श:
(3) समरूप: (ग) कुशलवयोः
(4) हृदयग्राही (घ) प्रवास:
(5) कुमारयोः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
उत्तरम्
क्रम | विशेषणपदानि | विशेष्यपदानि | हिन्दी अर्थ (विशेषण – विशेष्य) |
---|---|---|---|
यथा | श्लाघ्या | कथा | प्रशंसनीय – कथा |
(1) | उदात्तरम्यः | (क) समुदाचारः | उदात्त और रमणीय – शिष्टाचार |
(2) | अतिदीर्घः | (ख) प्रवासः | बहुत लम्बा – प्रवास |
(3) | समरूपः | (ग) कुटुम्बवृत्तान्तः | समान – पारिवारिक वृत्तान्त |
(4) | हृदयग्राही | (घ) स्पर्शः | हृदय को छूने वाला – स्पर्श |
(5) | कुमारयोः | (ङ) कुशलवयोः | कुमारों का – कुश और लव |
7. (क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत-
(नीचे दिए गए पदों में संधि करें)
(क) द्वयोः + अपि
उत्तर: द्वयोरपि
(ख) द्वौ + अपि
उत्तर: द्वावपि
(ग) कः + अत्र
उत्तर: कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम्
उत्तर: अनभिज्ञोऽहम्
(ङ) इति + आत्मानम्
उत्तर: इत्यात्मानम्
(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत-
(नीचे दिए गए पदों का विच्छेद करें)
(क) अहमप्येतयोः
उत्तर: अहम् + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात्
उत्तर: वयसः + अनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ
उत्तर: समान + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत्
उत्तर: खलु + एतत्
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