जननी तुल्यवत्सला (माँ सभी संतानों के प्रति समान स्नेह रखती है)
प्रस्तुतः पाठः महर्षिवेदव्यासविरचितस्य ऐतिहासिकग्रन्थस्य महाभारतस्य “वनपर्व” इत्यतः
गृहीतः। इयं कथा सर्वेषु प्राणिषु समदृष्टिभावनां प्रबोधयति। अस्या: अभीप्सितः अर्थोऽस्ति यत्
समाजे विद्यमानान् दुर्बलान् प्राणिनः प्रत्यपि मातुः वात्सल्यं प्रकर्षेणैव भवति।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ऐतिहासिक ग्रंथ महाभारत के वनपर्व से लिया गया है। यह कथा सभी प्राणियों में समान दृष्टि की भावना को जागृत करती है। इसका अभीष्ट अर्थ है कि समाज में विद्यमान दुर्बल प्राणियों के प्रति भी माता का वात्सल्य विशेष रूप से प्रकट होता है।
कश्चित् कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः : शरीरेण दुर्बलः
जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत् । अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुदन् अवर्तत । सः ऋषभः
हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवलः
तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषःनोत्थितः ।
हिंदी अनुवाद
एक किसान दो बैलों के साथ खेत जोत रहा था। उनमें से एक बैल शारीरिक रूप से दुर्बल और तेजी से चलने में असमर्थ था। इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को कोंचकर हाँक रहा था। वह बैल हल खींचने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ा। क्रुद्ध किसान ने उसे उठाने के लिए कई बार प्रयास किया, परंतु बैल नहीं उठा।
भूमौ पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः
सुरभे: नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां
दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत् – ” अयि शुभे। किमेवं
रोदिषि ? उच्यताम् ” इति । सा च
हिंदी अनुवाद
अपने पुत्र को जमीन पर गिरा देखकर सभी गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू बहने लगे। सुरभि की इस अवस्था को देखकर देवराज इंद्र ने पूछा, “हे शुभे! तुम इस तरह क्यों रो रही हो? बताओ।”
सुरभि ने कहा,
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप ! ।
अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि कौशिक ! ॥
हिंदी अनुवाद
“त्रिदशाधिप (राजा), तुम्हारे सामने कोई भी गिरा हुआ नहीं दिखाई देता।”
(अर्थात: किसी का भी नुकसान या हानि तुम्हें दिखाई नहीं दे रही है।)
“किन्तु मैं अपने पुत्र के लिए शोक करता हूँ और उसके कारण रोता हूँ, कौशिक।”
‘भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि । सः दीन इति जानन्नपि कृषक : तं बहुधा
पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति । इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति । एतत् भवान् पश्यति
न?” इति प्रत्यवोचत्।
हिंदी अनुवाद
अपने पुत्र को जमीन पर गिरा देखकर सभी गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू बहने लगे। सुरभि की इस अवस्था को देखकर देवराज इंद्र ने पूछा, “हे शुभे! तुम इस तरह क्यों रो रही हो? बताओ।” सुरभि ने कहा,
‘भद्रे ! नूनम् । सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् –
यदि पुत्रसहस्रं मे वात्सल्यं सर्वत्र सममेव मे ।
दीने च तनये देव, प्रकृत्याडयाधिका कृपा
हिंदी अनुवाद
“हे भद्रे! निश्चय ही। तुम्हारे सहस्रों पुत्रों के होते हुए भी इस एक के प्रति इतना वात्सल्य क्यों?” इंद्र के इस प्रश्न पर सुरभि ने उत्तर दिया—
“मेरे सहस्रों पुत्र हैं, और मेरा वात्सल्य सभी के लिए समान है।
परंतु, हे देव, दुर्बल पुत्र के प्रति स्वाभाविक रूप से अधिक कृपा होती है।”
” बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम् । तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव । तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव’ इति । सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्- ” गच्छ वत्से ! सर्वं भद्रं जायेत । “
हिंदी अनुवाद
“यह सत्य है कि मेरे बहुत से संतान हैं। फिर भी मैं इस पुत्र के प्रति विशेष रूप से दुख अनुभव करती हूँ, क्योंकि यह दूसरों से दुर्बल है। सभी संतानों के प्रति माता का वात्सल्य समान होता है, परंतु दुर्बल पुत्र के प्रति माता की कृपा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है।” सुरभि के वचन सुनकर इंद्र का हृदय भी पिघल गया। उन्होंने उसे सांत्वना देते हुए कहा, “जाओ, वत्से! सब कुछ शुभ होगा।”
अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्ष:
समजायत। लोकानां पश्यताम् एव सर्वत्र जलोपप्लवः
सञ्जातः। कृषक: हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।
हिंदी अनुवाद
शीघ्र ही प्रचंड हवा और मेघों की गर्जना के साथ वर्षा शुरू हो गई। लोगों के देखते-देखते चारों ओर जलप्लावन हो गया। किसान अत्यधिक हर्ष के साथ खेती छोड़कर दोनों बैलों को लेकर घर चला गया।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला ।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ॥
हिंदी अनुवाद
सभी संतानों के प्रति माता का वात्सल्य समान होता है।
परंतु दीन पुत्र के प्रति वह माता कृपा से द्रवित हृदय वाली होती है।
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