जननी तुल्यवत्सला (माँ सभी संतानों के प्रति समान स्नेह रखती है)
प्रस्तावना
प्रसङ्ग: कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रं कर्षति। एकः वृषभः दुर्बलः हलं वहितुं न शक्नोति, क्षेत्रे पतति। सुरभिः स्वपुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदति। इन्द्रः तस्याः रोदनस्य कारणं पृच्छति।
मुख्यं भावम्: मातुः वात्सल्यम् दुर्बलपुत्रे विशेषतः प्रकटति। कथा सर्वप्राणिषु समदृष्टिम् प्रबोधति।
श्लोकानां महत्त्वम्: मातृवात्सल्यम्, दुर्बलस्य प्रति विशेषकृपां च दर्शति।
हिंदी में :
प्रसंग: एक कृषक बलीवर्दों से खेत जोत रहा है। एक वृषभ दुर्बल होने के कारण हल नहीं खींच पाता और गिर पड़ता है। सुरभि अपने पुत्र की दयनीय स्थिति देखकर रोती है। इंद्र उससे कारण पूछते हैं।
मुख्य भाव: माता का वात्सल्य दुर्बल संतान के प्रति अधिक होता है। कथा समस्त प्राणियों के प्रति समान दृष्टि और करुणा का संदेश देती है।
श्लोकों का महत्व: मातृवात्सल्य और दुर्बल प्राणियों के प्रति विशेष कृपा को दर्शाते हैं।
प्रमुखं घटनाः
1. कृषक और वृषभ:
- कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रं कर्षति। एकः वृषभः दुर्बलः, जवेन गन्तुं न शक्नोति।
- कृषकः तं तोदनेन नुदति। वृषभः हलं वहितुं न शक्नोति, क्षेत्रे पतति।
- क्रुद्धः कृषकः तमुत्थापयितुं यत्नति, किन्तु वृषः नोत्थितः।
हिंदी में :
- एक कृषक दो बलीवर्दों से खेत जोत रहा था। एक वृषभ शरीर से दुर्बल और गति में अक्षम था।
- कृषक उसे प्रहार कर चलाने का प्रयास करता है, पर वृषभ हल खींचने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ता।
- क्रुद्ध कृषक उसे उठाने का कई बार प्रयास करता है, पर वृषभ नहीं उठता।
2. सुरभि का वात्सल्य
- स्वपुत्रं भूमौ पतितं दृष्ट्वा सुरभेः नेत्राभ्याम् अश्रूणि वहन्ति।
- इन्द्रः पृच्छति: “किमेवं रोदिषि?”
श्लोक: विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप! अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि कौशिक! ॥
अन्वय: त्रिदशाधिप! वः कश्चिद् विनिपातः न दृश्यते। अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!
भाव: हे इन्द्र! तुम्हें विपत्तिः न दृश्यति, किन्तु अहं पुत्रं शोचामि, अतः रोदिमि।
सुरभिः स्वपुत्रस्य दैन्यं, कृषकस्य पीडनं च कथति।
हिंदी में :
- अपने पुत्र को भूमि पर पड़ा देख सुरभि की आँखों से अश्रु बहने लगते हैं।
- इंद्र पूछते हैं: “किमेवं रोदिषि?”
श्लोक: विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप! अहं तु पुत्रं शोचामि तेन रोदिमि कौशिक! ॥
अन्वय: त्रिदशाधिप! वः कश्चिद् विनिपातः न दृश्यते। अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!
भाव: हे इंद्र! तुम्हें कोई विपत्ति नहीं दिखती, पर मैं अपने पुत्र के लिए शोक करती हूँ, इसलिए रोती हूँ।
सुरभि कहती है कि वह अपने दुर्बल पुत्र की दयनीय स्थिति और कृषक के प्रहार देखकर रो रही है। वह अन्य वृषभों की तरह भार नहीं उठा सकता।
3. इंद्र का प्रश्न और सुरभि का उत्तर
इन्द्र: सहस्रपुत्रेषु अस्मिन् एव कथं वात्सल्यम्?
श्लोक: यदि पुत्रसहस्रं मे वात्सल्यं सर्वत्र सममेव मे। दीने च तनये देव, प्रकृत्याडयाधिका कृपा ॥
अन्वय: मे पुत्रसहस्रं सति, वात्सल्यम् सर्वत्र सममेव। दीने तनये च, देव, प्रकृत्या अभ्यधिका कृपा।
भाव: मम सर्वपुत्रेषु वात्सल्यम् सममेव, किन्तु दीने पुत्रे स्वाभाविकी अभ्यधिका कृपा।
सुरभिः सर्वापत्येषु तुल्यवात्सलाम्, किन्तु दुर्बले विशेषकृपाम् कथति।
हिंदी में :
इंद्र पूछते हैं: सहस्र पुत्रों में केवल इस एक के प्रति इतना वात्सल्य क्यों?
श्लोक: यदि पुत्रसहस्रं मे वात्सल्यं सर्वत्र सममेव मे। दीने च तनये देव, प्रकृत्याडयाधिका कृपा ॥
अन्वय: मे पुत्रसहस्रं सति, वात्सल्यम् सर्वत्र सममेव। दीने तनये च, देव, प्रकृत्या अभ्यधिका कृपा।
भाव: मेरे सहस्र पुत्र हैं, पर सभी के प्रति मेरा वात्सल्य समान है। फिर भी, हे देव, दुर्बल पुत्र पर स्वाभाविक रूप से अधिक कृपा होती है।
सुरभि कहती है कि सभी संतानों के प्रति माता का प्रेम समान होता है, पर दुर्बल संतान पर स्वाभाविक रूप से अधिक करुणा होती है।
4. इंद्र का संनादन और वर्षा:
- सुरभिवचनात् इन्द्रस्य हृदयं द्रवति। सः ताम् सान्त्वयति: “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”
- चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। सर्वत्र जलोपप्लवः।
- कृषकः हर्षेण कर्षणं त्यक्त्वा वृषभौ गृहं नयति।
हिंदी में :
- सुरभि के वचन सुनकर इंद्र का हृदय द्रवित होता है। वे उसे सान्त्वना देते हैं: “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”
- शीघ्र ही चण्डवात और मेघगर्जन के साथ वर्षा होती है, जिससे जलप्लावन हो जाता है।
- कृषक हर्ष से कार्य छोड़कर वृषभों को लेकर घर चला जाता है।
5. नैतिक संदेश
श्लोक: अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला। पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ॥
अन्वय: सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला। दीने पुत्रे तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।
भाव: सर्वसंतानेषु मातुः समानं वात्सल्यम्, किन्तु दीनपुत्रे कृपया द्रवितहृदया भवति।
हिंदी में :
श्लोक: अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला। पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत् ॥
अन्वय: सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला। दीने पुत्रे तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।
भाव: सभी संतानों के प्रति माता का वात्सल्य समान होता है, पर दीन पुत्र पर उसका हृदय कृपा से द्रवित होता है।
मुख्य पात्र:
कृषक: क्षेत्रं कर्षति, दुर्बलं वृषभं पीडयति।
वृषभ: दुर्बलः, भारवहनासमर्थः।
सुरभि: सर्वधेनूनां माता, दुर्बलपुत्रे विशेषवात्सल्या।
इन्द्र: सुरभेः रोदनस्य कारणं पृच्छति, सान्त्वनां ददाति।
हिंदी में :
कृषक: खेत जोतने वाला, दुर्बल वृषभ को प्रहार करता है।
वृषभ: दुर्बल और भार वहन में असमर्थ।
सुरभि: सर्व धेनुओं की माता, अपने दुर्बल पुत्र के प्रति वात्सल्य और करुणा से भरी।
इंद्र: सुरभि के अश्रुओं का कारण पूछते हैं और उसे सान्त्वना देते हैं।
प्रमुख विषय:
मातृवात्सल्यम्: सुरभेः दुर्बलपुत्रे विशेषस्नेहः।
समदृष्टि: सर्वप्राणिषु समानं करुणाभावः।
दुर्बलकृपा: मातुः दुर्बलसंताने स्वाभाविकी कृपा।
प्रकृतिहस्तक्षेप: इन्द्रस्य वर्षया वृषभस्य कष्टनिवारणम्।
हिंदी में :
मातृवात्सल्य: सुरभि का अपने दुर्बल पुत्र के प्रति विशेष प्रेम।
समदृष्टि: सभी प्राणियों के प्रति समान करुणा।
दुर्बलों के प्रति कृपा: माता का दुर्बल संतान के प्रति स्वाभाविक प्रेम।
प्रकृति का हस्तक्षेप: इंद्र की वर्षा से वृषभ की पीड़ा का अंत
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