जननी तुल्यवत्सला (माँ सभी संतानों के प्रति समान स्नेह रखती है)
संस्कृत सारांशः
प्रस्तुतः पाठः महर्षिवेदव्यासविरचितस्य “महाभारतस्य” वनपर्वतः सङ्गृहीतः, यः सर्वं प्राणिनां प्रति समदृष्टिभावनां प्रबोधति, विशेषतः दुर्बलप्राणिषु मातृवात्सल्यस्य प्राधान्यं प्रकटति। कथायाम् एकः कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन् आसीत्। तयोः एकः वृषभः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुं च अशक्तः आसीत्। अतः कृषकः क्रुद्धः सन् तं तोदनेन नुदति, येन सः हलं वहति स्म। किन्तु कृच्छ्रेण हलं वहन् स वृषभः क्षेत्रे भूमौ पपात। क्रोधेन संनादितः कृषकः तमुत्थापयितुं बहुवारं यत्नमकरोत्, परं वृषभः नोत्थितः।
एतां दीनावस्थां स्वपुत्रस्य दृष्ट्वा सर्वधेनूनां माता सुरभिः नेत्राभ्यां अश्रूणि मुञ्चति। तस्याः रोदनं दृष्ट्वा सुराधिपः इन्द्रः ताम् अपृच्छत्—“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्।” सुरभिः प्रत्युत्तरति—“भो वासव! मम पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं शोचामि। सः दीनः इति जानन्नपि कृषकः तं तोदनेन पीडयति। सः कृच्छ्रेण धुरं वहति, यथा इतरः वृषभः न शक्नोति।” इन्द्रः कौतूहलेन पृच्छति—“सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्सु तव अस्मिन् एव एतादृशं वात्सल्यम् कथम्?” सुरभिः संनादति—“यद्यपि मम पुत्रसहस्रं, सर्वत्र वात्सल्यं सममेव, तथापि दुर्बले सुते मातुः कृपा प्रकृत्या अभ्यधिका। सर्वं मम अपत्यानि प्रियं, परं दीनस्य सुते विशेषं स्नेहं अनुभवामि।”
इदं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्य इन्द्रस्य हृदयं द्रवति। सः तां सान्त्वयति—“गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।” तदनन्तरं चण्डवातेन मेघरवैः सह प्रवर्षः समजायत्, येन सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। लोकानां दृष्टिपथे एव वर्षेण संनादितः कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणं त्यक्त्वा वृषभौ गृहं नीत्वा गतः। अयं पाठः उपदेशति यत् माता सर्वापत्येषु तुल्यवत्सला, परं दुर्बले पुत्रे कृपार्द्रहृदया भवति, यया सर्वं प्राणिनां प्रति करुणा प्रकटति।
हिन्दी अनुवाद
यह पाठ महर्षि वेदव्यास रचित “महाभारत” के वनपर्व से लिया गया है, जो सभी प्राणियों के प्रति समान दृष्टि की भावना को जागृत करता है, विशेष रूप से कमजोर प्राणियों के प्रति माता के स्नेह की महत्ता को उजागर करता है। कहानी में एक किसान दो बैलों के साथ खेत जोत रहा था। उनमें से एक बैल शरीर से कमजोर और तेजी से चलने में असमर्थ था। इसलिए क्रोधित किसान उसे डंडे से हांकता रहा ताकि वह हल खींचे। लेकिन कठिनाई से हल खींचते हुए वह बैल खेत में जमीन पर गिर पड़ा। गुस्से से भरा किसान उसे बार-बार उठाने की कोशिश करता है, लेकिन बैल नहीं उठता।
अपने पुत्र की इस दयनीय स्थिति को देखकर सभी गायों की माता सुरभि आँसुओं से भरी आँखों के साथ रोने लगती है। उसके रोने को देखकर देवराज इन्द्र पूछते हैं—“हे शुभे! तुम इस तरह क्यों रो रही हो? बताओ।” सुरभि उत्तर देती है—“हे वासव! मैं अपने पुत्र की दीन स्थिति देखकर शोक कर रही हूँ। किसान जानते हुए भी कि वह कमजोर है, उसे डंडे से पीड़ित करता है। वह कठिनाई से बोझ ढो रहा है, जैसा दूसरा बैल नहीं कर सकता।” इन्द्र उत्सुकतावश पूछते हैं—“तुम्हारे हजारों पुत्रों के रहते इस एक के प्रति इतना विशेष स्नेह क्यों?” सुरभि जवाब देती है—“यद्यपि मेरे हजारों पुत्र हैं, और सभी के प्रति मेरा स्नेह समान है, फिर भी कमजोर पुत्र के प्रति माता की करुणा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है। सभी संतानें मुझे प्रिय हैं, लेकिन दीन पुत्र के प्रति विशेष स्नेह महसूस करती हूँ।”
यह सुनकर इन्द्र अत्यधिक आश्चर्यचकित होते हैं और उनका हृदय पिघल जाता है। वह उसे सान्त्वना देते हैं—“जाओ वत्से! सब कुछ शुभ होगा।” इसके बाद शीघ्र ही तेज हवा और मेघों की गर्जना के साथ भारी वर्षा शुरू हो जाती है, जिससे चारों ओर जलप्लावन हो जाता है। लोगों के देखते-देखते वर्षा से प्रभावित होकर किसान प्रसन्नता के साथ जोतना छोड़कर दोनों बैलों को घर ले जाता है। यह पाठ सिखाता है कि माता सभी संतानों के प्रति समान स्नेह रखती है, लेकिन कमजोर पुत्र के प्रति उसका हृदय विशेष रूप से करुणा से भरा होता है, जिससे सभी प्राणियों के प्रति दया की भावना प्रकट होती है।
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