सुभाषितानि (मधुर वाणी)
प्रस्तुतः पाठः विविधग्रन्थात् सङ्कलितानां दशसुभाषितानां सङ्ग्रहो वर्तते। संस्कृतसाहित्ये सार्वभौमिकं सत्यं प्रकाशयितुम् अर्थगाम्भीर्ययुता पद्यमयी प्रेरणात्मिका रचना सुभाषितमिति कथ्यते। अयं पाठांशः परिश्रमस्य महत्त्वम्, क्रोधस्य दुष्प्रभावः, सामाजिकमहत्त्वम्, सर्वेषां वस्तूनाम् उपादेयता, बुद्धेः वैशिष्ट्यम् इत्यादीन् विषयान् प्रकाशयति।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ विभिन्न ग्रंथों से संकलित दस सुभाषितों का संग्रह है। संस्कृत साहित्य में सार्वभौमिक सत्य को प्रकट करने के लिए अर्थगंभीर, काव्यमयी और प्रेरणादायी रचना को सुभाषित कहा जाता है। यह पाठ परिश्रम के महत्व, क्रोध के दुष्प्रभाव, सामाजिक महत्व, सभी वस्तुओं की उपयोगिता, और बुद्धि की विशिष्टता जैसे विषयों को प्रकाशित करता है।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥1॥
हिंदी अनुवाद
आलस्य मनुष्यों का शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है।
परिश्रम के समान कोई मित्र नहीं, जिसे अपनाकर मनुष्य कभी असफल नहीं होता।
गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥2॥
हिंदी अनुवाद
गुणी व्यक्ति ही गुण को समझता है, गुणहीन नहीं।
बलवान ही बल को जानता है, निर्बल नहीं।
कोयल वसंत के गुण को समझती है, कौआ नहीं।
हाथी सिंह के बल को जानता है, चूहा नहीं।
निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,
कथं जनस्तं परितोषयिष्यति ॥3॥
हिंदी अनुवाद
जो व्यक्ति किसी कारण से क्रोधित होता है,
वह उस कारण के हटने पर निश्चित रूप से शांत हो जाता है।
परंतु जिसका मन बिना कारण द्वेष करता है,
उसे लोग कैसे संतुष्ट कर पाएंगे?
उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते,
हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
अनुक्तमप्यूह पण्डितो जनः,
परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ॥4॥
हिंदी अनुवाद
कहा गया अर्थ पशु भी समझ लेते हैं,
घोड़े और हाथी सिखाए जाने पर बोझ ढोते हैं।
परंतु पंडित व्यक्ति बिना कहे भी संकेत समझ लेता है,
क्योंकि बुद्धि दूसरों के संकेतों को समझने का फल देती है।
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम् ॥5॥
हिंदी अनुवाद
क्रोध मनुष्यों का प्रथम शत्रु है,
जो शरीर में रहकर शरीर का विनाश करता है।
जैसे लकड़ी में छिपी अग्नि होती है,
वही अग्नि शरीर को जलाती है।
मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति,
गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः।
मूर्खाश्च मूर्खै: सुधियः सुधीभिः,
समान-शील-व्यसनेषु सख्यम् ॥6॥
हिंदी अनुवाद
हिरण हिरणों के साथ चलते हैं,
गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ।
मूर्ख मूर्खों के साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ,
समान स्वभाव और रुचियों में मित्रता होती है।
सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते ॥7॥
हिंदी अनुवाद
उस महान वृक्ष की सेवा करनी चाहिए जो फल और छाया दोनों देता हो।
यदि भाग्यवश फल न मिले, तो छाया को कौन रोक सकता है?
अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥8॥
हिंदी अनुवाद
कोई अक्षर ऐसा नहीं जो मंत्र न बन सके, कोई जड़ ऐसी नहीं जो औषधि न हो।
कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं, परंतु उसे योग्य बनाने वाला दुर्लभ है।
संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा ॥9॥
हिंदी अनुवाद
संपत्ति और विपत्ति में महान लोगों का स्वभाव एकसमान रहता है।
जैसे सूर्य उदय और अस्त होने पर दोनों समय लाल होता है।
विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ॥10॥
हिंदी अनुवाद
इस विचित्र संसार में कुछ भी निरर्थक नहीं है।
घोड़ा यदि दौड़ने में वीर है, तो गधा बोझ ढोने में।
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