सुभाषितानि (मधुर वाणी)
संस्कृत सारांशः
पञ्चमः पाठः विविधसंस्कृतग्रन्थेभ्यः सङ्कलितानां दशसुभाषितानां संनादः अस्ति, यः अर्थगाम्भीर्ययुक्तया पद्यमय्या रचनया संस्कृतसाहित्ये सार्वभौमिकं सत्यं प्रेरणात्मकं च प्रकाशति। अस्मिन् पाठे परिश्रमस्य महत्त्वं, क्रोधस्य दुष्प्रभावः, सामाजिकसङ्गतेः मूल्यं, विश्वस्य सर्वंस्य उपयोगिता, बुद्धेः वैशिष्ट्यं च विविधविषयाः संनादिताः। प्रथमं, आलस्यं मनुष्यस्य शरीरस्थं महान् रिपुः इति कथति, यत् सर्वं कार्यं नाशति, उद्यमस्तु बन्धुवत् कार्यसिद्धिं ददाति, येन मनुष्यः नावसीदति। द्वितीयं, गुणी एव गुणं, बली बलं जानाति, न तु निर्गुणः वा निर्बलः, यथा पिकः वसन्तस्य सौन्दर्यं, करी सिंहस्य बलं जानाति, न तु वायसः मूषकः वा। तृतीयं, यः निमित्तेन क्रुद्धः, सः कारणापगमे प्रसीदति, किन्तु अकारणद्वेषी मनुष्यः कथं सन्तुष्यति? चतुर्थं, पशवः बोधिताः उदीरितमर्थं गृह्णन्ति, यथा हयाः नागाः च वहन्ति, परं पण्डितः अनुक्तमपि बुद्ध्या ऊहति, यतः बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलप्रदाः। पञ्चमं, क्रोधः देहस्थः वह्निवत् शरीरं दहति, यथा काष्ठगतः वह्निः सर्वं नाशति। षष्ठं, समानशीलाः मृगाः, गावः, तुरङ्गाः, मूर्खाः, सुधियः च स्वजातीयैः सख्यं कुर्युः। सप्तमं, फलच्छायायुक्तः महावृक्षः सेवनीयः, यद्यपि फलं न स्यात्, तथापि छाया न निषिध्यति। अष्टमं, विश्वे न किञ्चिद् अमन्त्रमक्षरं, अनौषधं मूलं, अयोग्यः पुरुषः चास्ति, केवलं योजकः दुर्लभः। नवमं, महतां सम्पत्तौ विपत्तौ च एकरूपता, यथा सविता उदये रक्तः, अस्तमये च रक्तः। दशमं, संसारे किञ्चित् निरर्थकं नास्ति, यथा अश्वः धावने, खरः वहने च वीरः। एतेन पाठेन जीवनस्य विविधपक्षाः नीतिपरकं प्रेरणात्मकं च संनादति।
हिन्दी अनुवाद
पाँचवाँ पाठ विभिन्न संस्कृत ग्रंथों से संकलित दस सुभाषितों का संग्रह है, जो गहन अर्थों से युक्त काव्यात्मक रचना के माध्यम से संस्कृत साहित्य में सार्वभौमिक सत्य को प्रेरणात्मक ढंग से प्रकट करता है। इस पाठ में परिश्रम का महत्त्व, क्रोध का दुष्प्रभाव, सामाजिक संबंधों का मूल्य, विश्व की प्रत्येक वस्तु की उपयोगिता और बुद्धि की विशिष्टता जैसे विविध विषयों को व्यक्त किया गया है। पहला सुभाषित कहता है कि आलस्य मनुष्य का शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है, जो सभी कार्यों को नष्ट करता है, जबकि परिश्रम मित्र की तरह कार्यसिद्धि देता है, जिससे मनुष्य कभी दुखी नहीं होता। दूसरा, केवल गुणी व्यक्ति ही गुण और बलवान बल को पहचानता है, न कि निर्गुण या निर्बल, जैसे कोयल वसंत के सौंदर्य और हाथी सिंह के बल को जानता है, न कि कौआ या चूहा। तीसरा, जो कारण से क्रोधित होता है, वह कारण हटने पर शांत हो जाता है, लेकिन बिना कारण द्वेष करने वाला मनुष्य कैसे संतुष्ट होगा? चौथा, पशु बोले गए अर्थ को समझते हैं, जैसे घोड़े और हाथी बोझ ढोते हैं, किन्तु विद्वान अनकहा भी बुद्धि से समझ लेता है, क्योंकि बुद्धि संकेतों को समझने का फल देती है। पाँचवाँ, क्रोध शरीर में अग्नि की तरह जलता है और उसे नष्ट करता है, जैसे लकड़ी में छिपी आग सब कुछ जला देती है। छठा, समान स्वभाव वाले हिरण, गाय, घोड़े, मूर्ख और बुद्धिमान अपने समान लोगों के साथ मित्रता करते हैं। सातवाँ, फल और छाया देने वाला बड़ा वृक्ष सेवनीय है, भले ही फल न मिले, छाया तो मिलती ही है। आठवाँ, विश्व में कोई भी अक्षर, औषधि या व्यक्ति अनुपयोगी नहीं, केवल योजक दुर्लभ है। नौवाँ, महान लोग समृद्धि और विपत्ति में एकसमान रहते हैं, जैसे सूर्य उदय और अस्त में लाल रहता है। दसवाँ, संसार में कुछ भी निरर्थक नहीं, जैसे घोड़ा दौड़ने में और गधा बोझ ढोने में निपुण है। इस पाठ के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को नीतिपरक और प्रेरणात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
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