सौहार्दं प्रकृतेः शोभा (सद्भाव प्रकृति का सौंदर्य है)
मुख्य विषयवस्तु
- अयं पाठः परस्परं स्नेहसौहार्दपूर्णं व्यवहारं शिक्षति।
- समाजे स्वार्थेन आत्माभिमानेन च जनाः परस्परं तिरस्कुर्वन्ति, परेषां कल्याणं न चिन्तयन्ति।
- पाठस्य उद्देश्यम्: प्रकृतेः पशुपक्षिमाध्यमेन दर्शयति यत् सर्वं परस्परं निर्भरति, सौहार्दपूर्णं व्यवहारं च कल्याणकरं भवति।
- निष्कर्ष: कालानुगुणं सर्वस्य महत्त्वं भवति, अतः परस्परं स्नेहेन मैत्रीपूर्णेन व्यवहारेन भाव्यम्।
हिंदी में :
- यह पाठ परस्पर स्नेह और सौहार्दपूर्ण व्यवहार की शिक्षा देता है।
- समाज में स्वार्थ और आत्माभिमान के कारण लोग एक-दूसरे का तिरस्कार करते हैं और दूसरों के कल्याण की चिंता नहीं करते।
- पाठ का उद्देश्य: प्रकृति और पशु-पक्षियों के माध्यम से यह दर्शाना कि सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर हैं और सौहार्दपूर्ण व्यवहार ही कल्याणकारी है।
- निष्कर्ष: समयानुसार सभी का महत्व होता है, अतः परस्पर स्नेह और मैत्रीपूर्ण व्यवहार आवश्यक है।
कथानक का सार
1. वने नद्याः समीपे सिंहः विश्रामति। वानराः तस्य पुच्छं कर्णं च आकृष्य वृक्षान् आरोहन्ति, येन सिंहः क्रुद्धः भवति, परं किमपि कर्तुं न समर्थति।
2. विभिन्नाः पशुपक्षिणः (सिंहः, वानरः, काकः, पिकः, गजः, बकः, मयूरः, व्याघ्रः, चित्रकः) वनराजपदाय स्वस्य योग्यतां संनादन्ति।
3. सर्वं स्वस्य गुणान् प्रशंसति, परस्य दोषान् प्रकाशति, येन विवादः संनादति।
4. अन्ते प्रकृतिमाता प्रकटति सर्वं संनादति यत् सर्वं परस्परं निर्भरति। सा सौहार्दस्य सहयोगस्य च महत्त्वं बोधति।
5. सर्वं प्राणिनः प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति, सहयोगेन वनरक्षायै दृढसङ्कल्पं गृह्णन्ति।
हिंदी में :
1. जंगल में नदी के किनारे एक शेर आराम कर रहा होता है। बंदर उसकी पूँछ और कान खींचकर पेड़ों पर चढ़ जाते हैं, जिससे शेर गुस्सा होता है, लेकिन कुछ कर नहीं पाता।
2. अलग-अलग पशु-पक्षी (शेर, बंदर, कौआ, कोयल, हाथी, बगुला, मोर, बाघ, चीता) जंगल के राजा बनने के लिए अपनी योग्यता का दावा करते हैं।
3. हर प्राणी अपने गुणों की तारीफ करता है और दूसरों की कमियों को उजागर करता है, जिससे झगड़ा बढ़ता है।
4. अंत में प्रकृतिमाता प्रकट होती हैं और सभी को समझाती हैं कि सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। वे सौहार्द और सहयोग का महत्व बताती हैं।
5. सभी प्राणी प्रकृतिमाता को প্রणाम करते हैं और सहयोग से जंगल की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।
महत्वपूर्ण उद्धरण
“नीचैरनीचैरतिनीचनीचैः सर्वैः उपायैः
फलमेव साध्यम्”
अर्थ: स्वार्थी लोग नीचतम तरीकों से केवल अपना फायदा हासिल करना चाहते हैं।
“यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमाना परैः सदा।
जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः।”
अर्थ: जो राजा डरे हुए और पीड़ित प्राणियों की रक्षा नहीं करता, वह यमराज के समान है।
“प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः, प्रजानां तु प्रियं हितम्।”
अर्थ: राजा का सुख प्रजा के सुख में और उसका हित प्रजा के हित में है। राजा का निजी हित नहीं, बल्कि प्रजा का प्रिय ही हितकारी है।
“अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः।
अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुर्कुरायते।”
अर्थ: गहरे पानी में तैरने वाली रोहित मछली घमंड नहीं करती, लेकिन थोड़े पानी में शफरी मछली उछलती है। अर्थात् छोटे गुणों पर भी घमंड नहीं करना चाहिए।
“प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः।
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते।”
अर्थ: आपसी झगड़े से प्राणियों को नुकसान होता है, और सहयोग से लाभ होता है।
पात्र और उनकी विशेषताएँ
सिंह: स्वयं को वनराज कहता है, पर वानरों द्वारा तुदित होने पर असमर्थ रहता है। वह भक्षक है, रक्षक नहीं।
हिंदी में :
शेर: खुद को जंगल का राजा कहता है, लेकिन बंदरों द्वारा तंग किए जाने पर असमर्थ रहता है। वह खाने वाला है, रक्षक नहीं।
वानर: चपल और साहसी, सिंह और गज को पराजित करने में समर्थ। स्वयं को वनराज योग्य मानता है।
हिंदी में :
बंदर: तेज और नन्हा, शेर और हाथी को हरा सकता है। खुद को जंगल के राजा के लिए योग्य मानता है।
काक: सत्यप्रियता और परिश्रम का प्रतीक। स्वयं को पक्षिसम्राट कहता है, पर उसका कर्कश ध्वनि और काला रंग उपहास का कारण बनता है।
हिंदी में :
कौआ: सच्चाई और मेहनत का प्रतीक। खुद को पक्षियों का राजा कहता है, लेकिन उसकी कर्कश आवाज और काला रंग मजाक का कारण बनता है।
पिक: काक का उपहास करता है, पर स्वयं भी काले रंग के कारण आलोचित होता है। वह काक को परभृत कहता है।
हिंदी में :
कोयल: कौए का मजाक उड़ाती है, लेकिन खुद भी काले रंग के कारण निंदित होती है। वह कौए को परभृत कहती है।
गज: विशालकाय और बलशाली, पर वानरों द्वारा छले जाने पर असमर्थ रहता है।
हिंदी में :
हाथी: विशाल और ताकतवर, लेकिन बंदरों द्वारा ठगे जाने पर असमर्थ रहता है।
बक: ध्यानमग्न और स्थितप्रज्ञ होने का दावा करता है, पर मयूर द्वारा मीन भक्षण के लिए क्रूर कहलाता है।
हिंदी में :
बगुला: ध्यानमग्न और स्थिर बुद्धि होने का दावा करता है, लेकिन मोर द्वारा मछलियाँ खाने के लिए क्रूर कहलाता है।
मयूर: अपने सौंदर्य और नृत्य को प्रकृति की आराधना कहता है। स्वयं को विधाता द्वारा निर्मित पक्षिराज मानता है।
हिंदी में :
मोर: अपने सौंदर्य और नृत्य को प्रकृति की पूजा कहता है। खुद को विधाता द्वारा बनाया गया पक्षियों का राजा मानता है।
व्याघ्र-चित्रक: वनराज पद के लिए दावा करते हैं, पर भक्षक होने के कारण अस्वीकृत होते हैं।
हिंदी में :
बाघ-चीता: जंगल के राजा बनने का दावा करते हैं, लेकिन खाने वाले होने के कारण अस्वीकार किए जाते हैं।
उलूक: आत्मश्लाघाहीन और पदलोलुपता से मुक्त। पक्षियों द्वारा वनराज के लिए चुना जाता है, पर काक द्वारा इसका विरोध होता है।
हिंदी में :
उल्लू: आत्म-प्रशंसा से मुक्त और पद की लालसा से रहित। पक्षियों द्वारा जंगल के राजा के लिए चुना जाता है, लेकिन कौआ इसका विरोध करता है।
प्रकृतिमाता: सभी प्राणियों की जननी, जो सौहार्द और सहयोग की शिक्षा देती है।
हिंदी में :
प्रकृतिमाता: सभी प्राणियों की माँ, जो सौहार्द और सहयोग की सीख देती है।
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