विचित्रः साक्षी (विचित्र गवाह” या “अजीब गवाह)
अयं पाठः ओम्प्रकाशठक्करविरचितायाः कथायाः सम्पादित अंशः अस्ति। इयं कथा बङ्गसाहित्यकार-बंकिमचन्द्रचटर्जीद्वारा न्यायाधीशरूपेण प्रदत्तनिर्णयोपरि आधारिता अस्ति। न्यायकर्तारः सत्यासत्यनिर्णयार्थं यदा-कदा तादृशीनां युक्तीनां प्रयोगं कुर्वन्ति याभिः प्रमाणं विनापि न्यायः स्यात्। अस्यां कथायामपि न्यायाधीशेन तथैव मार्गः आचरितः।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ ओमप्रकाश ठक्कर द्वारा रचित कथा का संपादित अंश है। यह कथा बंग साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा न्यायाधीश के रूप में दिए गए एक निर्णय पर आधारित है। न्याय करने वाले कभी-कभी ऐसी युक्तियों का प्रयोग करते हैं, जिनके द्वारा बिना प्रमाण के भी न्याय हो जाता है। इस कथा में भी न्यायाधीश ने ऐसा ही मार्ग अपनाया।
कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः। तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्। एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः पुत्रं द्रष्टुं च प्रस्थितः। परमर्थकार्त्स्न्येन पीडितः स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्।
हिंदी अनुवाद
एक निर्धन व्यक्ति ने बहुत परिश्रम करके कुछ धन अर्जित किया। उस धन से वह अपने पुत्र को एक महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में सफल हुआ। उसका पुत्र वहाँ छात्रावास में रहकर अध्ययन में संलग्न हो गया। एक दिन पिता को पुत्र के बीमार होने की खबर मिली, जिससे वह व्याकुल होकर पुत्र से मिलने निकला। लेकिन धन की कमी से पीड़ित होने के कारण वह बस छोड़कर पैदल ही चल पड़ा।
पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्। ‘निशान्धकारे प्रसूते विजने प्रवेशे पदयात्रा न शुभावहा’, एवं विचार्य स पावस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्त्तुं कञ्चिद् गृहस्थमुपागतः। करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।
हिंदी अनुवाद
पैदल चलते हुए वह सायंकाल तक भी अपने गंतव्य से दूर था। ‘रात के अंधेरे में सुनसान रास्ते पर पैदल चलना शुभ नहीं है’, ऐसा विचार कर उसने पास के गाँव में रात्रि विश्राम के लिए एक गृहस्थ के पास शरण माँगी। करुणामय गृहस्थ ने उसे आश्रय प्रदान किया।
विचित्रा दैवगतिः। तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। तत्र निहितामेकां मञ्जूषाम् आदाय पलायितः। चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धोऽतिथिः चौरशङ्कया तमन्वधावत् अगृह्णाच्च परं तदानीमेव किञ्चिद् विचित्रमघटत। चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत “चौरोऽयं चौरोऽयम्” इति। तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन् वराकमतिथिमेव च चौरं मत्वाऽभर्त्सयन्। यद्यपि ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत्। तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिम् चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्।
हिंदी अनुवाद
दैव की गति विचित्र है। उसी रात उस घर में एक चोर घुस आया। उसने वहाँ रखी एक मंजूषा चुराकर भागने की कोशिश की। चोर के कदमों की आवाज से जागा हुआ अतिथि चोर के संदेह में उसका पीछा कर उसे पकड़ लिया, पर तभी कुछ विचित्र हुआ। चोर ने ही जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया, “यह चोर है, यह चोर है।” उसके ऊँचे स्वर से जागे गाँववाले अपने घरों से निकलकर वहाँ आए और उस गरीब अतिथि को ही चोर समझकर डाँटने लगे। हालाँकि गाँव का रक्षक (पुलिस) ही वह चोर था। उसी क्षण रक्षक ने उस अतिथि को चोर घोषित कर कारागार में डाल दिया।
अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्। न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक् पृथक् विवरणं श्रुतवान्। सर्वं वृत्तमवगत्य स तं निर्दोषममन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्। किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं नाशक्नोत्। ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्। अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं पुनः स्थापितवन्तौ। तदैव कश्चित् तत्रत्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत् यत् इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः। तस्य मृतशरीरं राजमार्गं निकषा वर्तते। आदिश्यतां किं करणीयमिति। न्यायाधीशः आरक्षिणम् अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुमादिष्टवान्।
हिंदी अनुवाद
अगले दिन वह रक्षक उस व्यक्ति को चोरी के अभियोग में न्यायालय ले गया। न्यायाधीश बंकिमचंद्र ने दोनों पक्षों से अलग-अलग विवरण सुना। सारा वृत्तांत समझकर उन्होंने अतिथि को निर्दोष और रक्षक को दोषी माना। किंतु प्रमाण के अभाव में वे निर्णय नहीं ले सके। इसलिए उन्होंने दोनों को अगले दिन उपस्थित होने का आदेश दिया। अगले दिन दोनों ने न्यायालय में अपने-अपने पक्ष फिर से रखे। तभी वहाँ का एक कर्मचारी आकर सूचित करता है कि यहाँ से दो कोस की दूरी पर किसी व्यक्ति की हत्या कर दी गई है। उसका मृत शरीर राजमार्ग के पास पड़ा है। बताएँ, क्या करना चाहिए? न्यायाधीश ने रक्षक और अभियुक्त को उस शव को न्यायालय में लाने का आदेश दिया।
आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम्। तत्रोपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देहं स्कन्धेन वहन्तौ न्यायाधिकरणं प्रति प्रस्थितौ। आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः। भारवतः शवस्य स्कन्धेन वहनं तत्कृते दुष्करम् आसीत्। स भारवेदनया क्रन्दति स्म। तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदित आरक्षी तमुवाच रे दुष्ट! तस्मिन् दिने त्वयाऽहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् वारितः। इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे” इति प्रोच्य उच्चैः अहसत्। यथाकथञ्चिद् उभौ शवमानीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ।
हिंदी अनुवाद
आदेश पाकर दोनों चल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने लकड़ी के पटल पर रखे, कपड़े से ढके शव को कंधे पर उठाकर न्यायालय की ओर प्रस्थान किया। रक्षक का शरीर हृष्ट-पुष्ट था, जबकि अभियुक्त अत्यंत दुबला-पतला था। भारी शव को कंधे पर ढोना उसके लिए कठिन था। वह बोझ के दर्द से कराह रहा था। उसकी कराह सुनकर प्रसन्न रक्षक ने कहा, “अरे दुष्ट! उस दिन तूने मुझे चुराई गई मंजूषा लेने से रोका था। अब अपने कृत्य का फल भोग। इस चोरी के अभियोग में तुझे तीन साल की जेल होगी।” ऐसा कहकर वह जोर से हँसा। किसी तरह दोनों शव को लाकर एक चबूतरे पर रखा।
न्यायाधीशेन पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ। आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यमघटत् स शवः प्रावारकमपसार्य न्यायाधीशमभिवाद्य निवेदितवान्- मान्यवर! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तद् वर्णयामि त्वयाऽहं चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणाद् वारितः, अतः निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति।
हिंदी अनुवाद
न्यायाधीश ने दोनों को घटना के बारे में फिर से बोलने का आदेश दिया। रक्षक ने जैसे ही अपना पक्ष प्रस्तुत किया, आश्चर्यजनक घटना हुई। वह शव कपड़ा हटाकर उठा, न्यायाधीश को प्रणाम कर बोला, “मान्यवर! इस रक्षक ने रास्ते में जो कहा, वह मैं बताता हूँ- ‘तूने मुझे चुराई गई मंजूषा लेने से रोका था, अब अपने कृत्य का फल भोग। इस चोरी के अभियोग में तुझे तीन साल की जेल होगी।'”
न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्।
अत एवोच्यते –
दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः।
नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते॥
हिंदी अनुवाद
न्यायाधीश ने रक्षक को कारावास का दंड देकर उस व्यक्ति को सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया।
इसलिए कहा जाता है-
बुद्धिमान व्यक्ति कठिन कार्यों को भी नीति और युक्ति का सहारा लेकर सहजता से कर लेते हैं।
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