विचित्रः साक्षी (विचित्र गवाह” या “अजीब गवाह)
पाठ का परिचय
लेखक: ओम्प्रकाशठक्करः (कथायाः सम्पादित अंशः)।
आधार: बङ्गसाहित्यकार बंकिमचन्द्रचटर्जी द्वारा प्रदत्त न्यायाधीशस्य निर्णयः।
विषय: न्यायाधीशेन सत्यासत्यं निश्चेतुं युक्तिप्रयोगः, यत्र प्रमाणं विनापि न्यायः सम्पादितः।
मुख्यं सन्देश: बुद्धिमता युक्त्या दुष्करं कार्यं लीलया सम्पादति।
हिंदी में :
लेखक: ओमप्रकाश ठक्कर (कहानी का सम्पादित अंश)।
आधार: बंग साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा दिया गया न्यायाधीश का निर्णय।
विषय: न्यायाधीश द्वारा सत्य-असत्य का निर्णय लेने के लिए युक्ति का प्रयोग, जहाँ बिना प्रमाण के भी न्याय सम्पन्न हुआ।
मुख्य संदेश: बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से कठिन कार्य को आसानी से पूरा करता है।
कथासारः
1. निर्धनस्य परिश्रम:
- कश्चन निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य वित्तमुपार्जितवान्।
- तेन वित्तेन स्वपुत्रं महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलः।
- पुत्रः छात्रावासे निवसति अध्यति च।
हिंदी में :
गरीब का परिश्रम:
- एक गरीब व्यक्ति ने कठिन परिश्रम से धन अर्जित किया।
- उस धन से अपने पुत्र को महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में सफल हुआ।
- पुत्र छात्रावास में रहकर पढ़ाई करता था।
2. पितुः यात्रा:
- पुत्रस्य रुग्णतां श्रुत्वा पिता व्याकुलः, तं द्रष्टुं प्रस्थितः।
- अर्थाभावात् बसयानं विहाय पदातिः गच्छति।
हिंदी में :
पिता की यात्रा:
- पुत्र के बीमार होने की खबर सुनकर पिता व्याकुल होकर उसे देखने निकला।
- धन की कमी के कारण बस छोड़कर पैदल ही चला।
3. रात्रिनिवास:
- सायं समये ग्रामे रात्रिनिवासार्थं गृहस्थस्य गृहम् उपागतः।
- करुणापरः गृहस्थः तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।
हिंदी में :
रात्रि विश्राम:
- शाम को एक गाँव में रात्रि विश्राम के लिए एक गृहस्थ के घर गया।
- दयालु गृहस्थ ने उसे आश्रय दिया।
4. चौर्यघटना:
- तस्यां रात्रौ चौरः गृहम् प्रविष्ट्वा मञ्जूषाम् आदाय पलायति।
- अतिथिः (पिता) चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धः, तमन्वधावति।
- चौरः “चौरोऽयम्” इति क्रोशति, ग्रामवासिनः अतिथिमेव चौरं मत्वा भर्त्सयन्ति।
- वस्तुतः चौरः ग्रामस्य आरक्षी (रक्षापुरुषः) आसीत्।
हिंदी में :
चोरी की घटना:
- उसी रात एक चोर घर में घुसा और एक पेटी चुराकर भागा।
- अतिथि (पिता) चोर के पैरों की आवाज से जागा और उसका पीछा किया।
- चोर ने “यह चोर है” कहकर चिल्लाया, गाँववाले अतिथि को ही चोर समझकर डांटे।
- वास्तव में चोर गाँव का रक्षक (पुलिस) था।
5. न्यायालय:
- आरक्षी अतिथिं चौर्याभियोगे कारागृहे प्रक्षिपति, न्यायालयं नयति।
- न्यायाधीशः बंकिमचन्द्रः उभयोः विवरणं श्रुत्वा अतिथिं निर्दोषं, आरक्षिणं दोषिणं मनति, किन्तु प्रमाणं नास्ति।
हिंदी में :
न्यायालय:
- रक्षक ने अतिथि को चोरी के आरोप में जेल में डाला और न्यायालय ले गया।
- न्यायाधीश बंकिमचंद्र ने दोनों का पक्ष सुना, अतिथि को निर्दोष और रक्षक को दोषी माना, परंतु प्रमाण नहीं था।
6. विचित्रः युक्ति:
- न्यायाधीशः उभौ मृतशरीरं (शवं) न्यायालये आनेतुमादिशति।
- शवं वहन्तौ, कृशकायः अतिथिः क्रन्दति, आरक्षी तं संनादति, चौर्यं स्वीकृत्वा स्वदोषं प्रकटति।
- शवः (न्यायाधीशस्य युक्त्या जीवितः मत्वा) आरक्षिणः दोषं प्रकटति।
- न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डं, अतिथिं ससम्मानं मुक्तति।
हिंदी में :
विचित्र युक्ति:
- न्यायाधीश ने दोनों को एक मृत शरीर (शव) लाने का आदेश दिया।
- शव को ले जाते समय, दुबला-पतला अतिथि दर्द से कराहने लगा, रक्षक ने उसका मजाक उड़ाया और चोरी की बात स्वीकार कर ली।
- शव (न्यायाधीश की युक्ति से जीवित माना गया) ने रक्षक के दोष को उजागर किया।
- न्यायाधीश ने रक्षक को कारावास और अतिथि को सम्मानपूर्वक मुक्त किया।
7. नैतिकं सन्देश:
- श्लोक: दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः। नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते॥
- अर्थात् बुद्धिमन्तः युक्त्या कठिनं कार्यं सरलतया सम्पादति।
हिंदी में :
नैतिक संदेश:
- श्लोक: दुष्कर कार्य भी बुद्धिमान व्यक्ति नीति और युक्ति से आसानी से कर लेते हैं।
- अर्थ: बुद्धिमान युक्ति से कठिन कार्य को सरलता से पूरा करते हैं।
मुख्य पात्राः
- निर्धनः जनः (अतिथिः): परिश्रमी, पुत्रस्य रुग्णतां श्रुत्वा यात्रारतः, चौर्याभियोगे निर्दोषः।
- आरक्षी: वास्तविकः चौरः, अतिथिं दोषति।
- न्यायाधीशः (बंकिमचन्द्रः): बुद्धिमान्, युक्त्या सत्यं प्रकटति।
- गृहस्थ: करुणापरः, अतिथये आश्रयं ददाति।
हिंदी में :
मुख्य पात्र
- गरीब व्यक्ति (अतिथि) : परिश्रमी, पुत्र की बीमारी सुनकर यात्रा पर, चोरी के आरोप में निर्दोष।
- रक्षक (पुलिस) : वास्तविक चोर, अतिथि को दोष देता है।
- न्यायाधीश (बंकिमचंद्र): बुद्धिमान, युक्ति से सत्य उजागर करता है।
- गृहस्थ: दयालु, अतिथि को आश्रय देता है।
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