सूक्तयः (सुंदर वचन)
अयं पाठः मूलतः तमिलभाषायाः “तिरुक्कुरल्” नामकग्रन्थात् गृहीतः अस्ति। अयं ग्रन्थः तमिलभाषायाः वेदः इति कथ्यते। अस्य प्रणेता तिरुवल्लुवरः वर्तते। प्रथमशताब्दी अस्य कालः स्वीकृतः अस्ति। धर्मार्थ-कामप्रतिपादकोऽयं ग्रन्थः त्रिषु भागेषु विभक्तोऽस्ति। तिरुशब्दः श्रीवाचकः अस्ति, अतः तिरुक्कुरलशब्दस्य अभिप्रायो भवति – श्रिया युक्ता वाणी। अस्मिन् ग्रन्थे मानवानां कृते जीवनोपयोगि सत्यं सरसबोधगम्यपद्यैः प्रतिपादितम् अस्ति।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ मूल रूप से तमिल भाषा के ग्रंथ “तिरुक्कुरल्” से लिया गया है। इस ग्रंथ को तमिल भाषा का वेद कहा जाता है। इसके रचयिता तिरुवल्लुवर हैं। इसकी रचना प्रथम शताब्दी में मानी जाती है। धर्म, अर्थ और काम को प्रतिपादित करने वाला यह ग्रंथ तीन भागों में विभक्त है। तिरु शब्द श्री का वाचक है, अतः तिरुक्कुरल का अर्थ है – श्री से युक्त वाणी। इस ग्रंथ में मानव जीवन के लिए उपयोगी सत्य सरल और बोधगम्य पद्यों में प्रतिपादित किए गए हैं।
पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता ॥1॥
हिंदी अनुवाद
पिता अपने पुत्र को बचपन में विद्या का महान धन देता है।
यह कहना कि “पिता ने कौन सा तप किया?” उसकी कृतज्ञता है।
अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः ॥2॥
हिंदी अनुवाद
यदि मन में जैसी सच्चाई हो, वही वाणी में हो।
महात्मा इसे ही वास्तव में समत्व कहते हैं।
त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः ॥3॥
हिंदी अनुवाद
जो धर्मयुक्त वाणी को त्यागकर कठोर वचन बोलता है,
वह मूर्ख बुद्धि वाला पके फल को छोड़कर कच्चा फल खाता है।
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते ॥4॥
हिंदी अनुवाद
इस संसार में केवल विद्वान ही सच्चे नेत्रवाले कहे जाते हैं।
दूसरों के चेहरों पर जो हैं, वे केवल नेत्र के नाम वाले माने जाते हैं।
यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः ॥5॥
हिंदी अनुवाद
जो कोई कुछ कहे, उसके सत्य और अर्थ का निर्णय करने में
जो समर्थ हो, उसे ही विवेक कहा जाता है।
वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते ॥6॥
हिंदी अनुवाद
वाक्पटु और धैर्यवान मंत्री सभा में भी भयरहित रहता है।
वह किसी भी प्रकार से दूसरों द्वारा पराजित नहीं होता।
य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च ॥7॥
हिंदी अनुवाद
जो अपने कल्याण और अनेक सुखों की इच्छा रखता है,
वह दूसरों के लिए कभी भी अहितकारी कर्म नहीं करता।
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः ॥8॥
हिंदी अनुवाद
आचार ही प्रथम धर्म है, ऐसा विद्वानों का कथन है।
इसलिए सदाचार की रक्षा प्राणों से भी अधिक करनी चाहिए।
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