सूक्तयः (सुंदर वचन)
संस्कृत सारांशः
अष्टमः पाठः “सूक्तयः” तमिलभाषायाः प्रसिद्धग्रन्थात् “तिरुक्कुरल्” उद्धृतः अस्ति, यः तमिलभाषायाः वेदः इति संनादति। प्रथमशताब्द्यां तिरुवल्लुवरेण रचितः अयं ग्रन्थः धर्म-अर्थ-काम-विषयकं जीवनदर्शनं त्रिषु भागेषु विभजति। “तिरु” शब्दः श्रीवाचकः, अतः “तिरुक्कुरल्” इति शब्दः श्रीयुक्तवाणीं सूचति। अस्मिन् ग्रन्थे मानवजीवानां कृते उपदेशात्मकं सत्यं सरलैः सरसैः च पद्यैः संनादति। श्लोकाः जीवनमूल्यानां गहनं दर्शनं प्रस्तौति—पिता पुत्राय बाल्ये विद्याधनं ददाति, यत् सर्वोत्तमं धनं मन्यते; चित्ते वाचि च अवक्रता समत्वं संनादति; धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषवचनं विमूढधीः अपक्वं फलं भुङ्क्ति; विद्वांसः एव चक्षुष्मन्तः, अन्येषां चक्षूंषि केवलं नाममात्रं; येन तत्त्वार्थनिर्णयः शक्यते, स विवेकः; वाक्पटु-धैर्यवान् मन्त्री सभायाम् अपराजितः; आत्मश्रेयःकामनायां परेभ्यः अहितं न कुर्यात्; आचारः प्रथमो धर्मः इति। अभ्यासप्रश्नाः श्लोकानाम् अर्थबोधनं, समासविग्रहं, समानार्थक-विलोमशब्दानां च ज्ञानं संवर्धति, यथा एकपदेन उत्तरं, प्रश्ननिर्माणं, श्लोकानाम् अन्वयः, तद्भावात्मकसूक्तयः, समासविग्रहाः च। एते सर्वं मानवजीवने नैतिकमूल्यानां, विवेकस्य, आचारस्य च महत्त्वं दर्शति।
हिंदी अनुवाद
अध्याय 8 “सूक्तियाँ” तमिल भाषा के विख्यात ग्रंथ “तिरुक्कुरल्” से लिया गया है, जिसे तमिल वेद के रूप में जाना जाता है। प्रथम शताब्दी में तिरुवल्लुवर द्वारा रचित यह ग्रंथ धर्म, अर्थ और काम के दर्शन को तीन भागों में प्रस्तुत करता है। “तिरु” शब्द श्री को सूचित करता है, अतः “तिरुक्कुरल्” का अर्थ है श्री से युक्त वाणी। इस ग्रंथ में मानव जीवन के लिए उपयोगी सत्य सरल और रसपूर्ण छंदों में व्यक्त किए गए हैं। श्लोक जीवन के मूल्यों का गहन दर्शन प्रस्तुत करते हैं—पिता अपने पुत्र को बाल्यकाल में विद्याधन देता है, जो सर्वोत्तम धन है; मन और वचन में समानता ही समत्व है; धर्ममयी वाणी का त्याग कर कठोर वचन बोलने वाला मूर्ख अपक्व फल खाता है; विद्वान ही सच्चे चक्षुष्मान हैं, अन्य के नेत्र केवल नाममात्र हैं; विवेक वह है जिससे सत्य का निर्णय हो; वाक्पटु और धैर्यवान मंत्री सभा में अपराजित रहता है; आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाला दूसरों का अहित न करे; आचार ही प्रथम धर्म है। अभ्यास प्रश्न श्लोकों के अर्थ को समझने, समास-विग्रह, समानार्थी और विलोम शब्दों के ज्ञान को बढ़ाते हैं, जैसे एक शब्द में उत्तर, प्रश्न निर्माण, श्लोकों का अन्वय, तद्भावात्मक सूक्तियाँ, और समास-विग्रह। ये सभी मानव जीवन में नैतिक मूल्यों, विवेक और आचार के महत्व को दर्शाते हैं।
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