भूकंपविभीषिका (भूकंप का आतंक)
प्रस्तुतः पाठः अस्माकं वातावरणे सम्भाव्यमानप्रकोपेषु अन्यतमां भूकम्पस्य विभीषिकां द्योतयति। प्रकृतौ जायमानाः आपदः भयावहप्रलयं समुत्पाद्य मानवजीवनं संत्रासयन्ति, ताभिः प्राणिनां सुखमयं जीवनं दुःखमयं सञ्जायते। एतासु प्रमुखाः छन् – झझावातः, भूकम्पनम्, जलोपप्लवः, अतिवृष्टिः, अनावृष्टिः, शिलास्खलनम्, भूविदारणम्, ज्वालामुखस्फोटः इत्यादयः। अत्र पाठे भूकम्पविषये चिन्तनं विहितं यत् आपत्काले विपन्नतां त्यक्त्वा साहसेन यत्नं कुर्मः चेत् दारुणविभीषिकातः संरक्षिता भवामः।
हिंदी अनुवाद
यह पाठ हमारे पर्यावरण में संभावित प्रकोपों में से एक, भूकम्प की भयावहता को दर्शाता है। प्रकृति में उत्पन्न होने वाली आपदाएँ भयंकर विनाश उत्पन्न करके मानव जीवन को भयग्रस्त करती हैं, जिससे प्राणियों का सुखमय जीवन दुखमय हो जाता है। इनमें प्रमुख हैं – तूफान, भूकम्प, बाढ़, अतिवृष्टि, सूखा, भूस्खलन, भू-विदारण, ज्वालामुखी विस्फोट आदि। इस पाठ में भूकम्प के विषय में चिंतन किया गया है कि विपत्ति के समय हताशा छोड़कर साहस के साथ प्रयास करें तो हम भयानक विभीषिका से सुरक्षित हो सकते हैं।
एकोत्तरद्विसहस्रतमेख्रीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्रदिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्रं नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुणविभीषिका समस्तमपि गुर्जर क्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्र भूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपानमार्गाः।
हिंदी अनुवाद
2001 ईस्वी में गणतंत्र दिवस के पर्व पर जब समस्त भारत नृत्य, गीत और वाद्ययंत्रों के उत्साह में डूबा था, तभी अचानक गुजरात राज्य व्याकुल, उलट-पुलट, करुण क्रंदन और विपत्तिग्रस्त हो गया। भूकम्प की भयानक विभीषिका ने संपूर्ण गुजरात क्षेत्र, विशेष रूप से कच्छ जनपद को खंडहरों में बदल दिया। भूकम्प का केंद्र भुज नगर मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया। बहुमंजिली इमारतें क्षणभर में धराशायी हो गईं। बिजली के खंभे उखड़ गए। घरों की सीढ़ियाँ और रास्ते चूर-चूर हो गए।
फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिगर्भादुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।
हिंदी अनुवाद
जमीन दो हिस्सों में फट गई। पृथ्वी के गर्भ से ऊपर निकलती अनियंत्रित जलधाराओं ने महाबाढ़ का दृश्य प्रस्तुत किया। हजारों प्राणी क्षणभर में मृत्यु को प्राप्त हो गए। ध्वस्त इमारतों में फँसे हजारों अन्य लोग सहायता के लिए करुण पुकार करते रहे। हाय दैव! भूख से सूखे कंठ वाले, मृतप्राय कुछ बच्चे ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिन तक जीवित रह सके।
इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छ-भूकम्पस्य। पञ्चोत्तर-द्विसहस्त्रतमे ख्रीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीर-प्रान्ते पाकिस्तान-देशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालं कवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते इति विषये वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाण-शिलाः यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धरायाः उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।
हिंदी अनुवाद
यही थी कच्छ भूकम्प की भयावह विभीषिका। 2005 ईस्वी में भी कश्मीर प्रांत और पाकिस्तान में पृथ्वी का महान कंपन हुआ। जिसके कारण लाखों लोग असमय मृत्यु को प्राप्त हुए। वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी क्यों कंपन करती है- पृथ्वी के गर्भ में मौजूद विशाल पाषाण शिलाएँ जब घर्षण के कारण टूटती हैं, तब भयंकर भूस्खलन और उससे उत्पन्न कंपन होता है। यही भयावह कंपन पृथ्वी की सतह तक पहुँचकर महाकंपन उत्पन्न करता है, जिससे भयानक विनाश का दृश्य उत्पन्न होता है।
ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायत इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारगत्या धरां पर्वतं वा विदार्य बहिर्निष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति।
हिंदी अनुवाद
भूकम्प विशेषज्ञ बताते हैं कि ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी के गर्भ में मौजूद अग्नि जब खनिज, मिट्टी और शिलाओं के संचय को पिघलाती है, तब वह सब लावा बनकर अनियंत्रित गति से पृथ्वी या पर्वत को चीरकर बाहर निकलता है। तब आकाश धूम और राख से ढक जाता है। 800 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला यह लावारस जब नदी की गति से बहता है, तब पास के गाँव या नगर क्षणभर में उसके उदर में समा जाते हैं।
निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुद्भिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति। यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृतिसमक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव, तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्धं निर्माय बृहन्मात्रं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
हिंदी अनुवाद
विवश प्राणी मारे जाते हैं। ज्वालामुखियों से निकलने वाले ये पर्वत भी भयंकर भूकम्प उत्पन्न करते हैं। यद्यपि भूकम्प को दैवीय प्रकोप कहा जाता है, इसके उपशमन का कोई स्थायी उपाय दिखाई नहीं देता। प्रकृति के सामने विज्ञान पर गर्व करने वाला मानव आज भी बौना ही है। फिर भी, भूकम्प रहस्य के जानकार कहते हैं कि बहुमंजिली इमारतों का निर्माण नहीं करना चाहिए। तटबंध बनाकर नदी का जल भी एक स्थान पर अधिक मात्रा में एकत्र नहीं करना चाहिए, अन्यथा असंतुलन के कारण भूकम्प हो सकता है। वास्तव में, शांत पंचतत्त्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश- ही पृथ्वी के कल्याण और सुरक्षा के लिए उपयोगी हैं। अशांत होने पर यही तत्त्व महाविनाश लाते हैं।
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