भूकंपविभीषिका (भूकंप का आतंक)
संस्कृत सारांशः
नवमः पाठः “भूकम्पविभीषिका” प्रकृतिजन्यापदां मध्ये भूकम्पस्य भयावहं स्वरूपं विशदं निरूपति। प्रकृतौ जायमाना आपदः यथा झझावातः, जलोपप्लवः, अतिवृष्टिः, अनावृष्टिः, शिलास्खलनम्, भूविदारणम्, ज्वालामुखस्फोटः इत्यादयः मानवजीवनं संनादति, सुखमयं जीवनं दुःखमयं च सम्पादति। प्रस्तुते पाठे भूकम्पस्य विभीषिकायाः विषये गहनं चिन्तनं कृतम्, यत् आपत्काले विपन्नतां परित्यज्य साहसेन यत्नेन च संरक्षणं सम्भवति।
विशेषतः एकोत्तरद्विसहस्रतमे ख्रीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये) गणतन्त्रदिवसपर्वणि यदा समग्रं भारतं नृत्यगीतवादित्रोल्लासे मग्नमासीत्, तदा गुजरातस्य कच्छक्षेत्रे भूकम्पेन महती विभीषिका समुद्भूता। भूकम्पस्य केन्द्रं भुजनगरं खण्डखण्डं मृत्तिकाक्रीडनकमिव जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि धराशायीनि, विद्युद्दीपस्तम्भाः उत्खाताः, गृहसोपानमार्गाः विशीर्णाः, भूमिश्च फालद्वये विभक्ता। भूमिगर्भात् निस्सरन्तीभिः जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यं समुपस्थितम्। सहस्रशः प्राणिनः क्षणेन मृताः, ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः अन्ये करुणं क्रन्दन्ति स्म। केचन शिशवः ईश्वरकृपया द्वित्रदिनानि जीवनं धारितवन्तः।
पञ्चोत्तरद्विसहस्रतमे ख्रीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये) कश्मीरप्रान्ते पाकिस्तानदेशे च महाकम्पनं लक्षपरिमितान् जनान् अकालमृत्युना संनादति। वैज्ञानिकानां मते, पृथिव्याः गर्भे विद्यमानानां पाषाणशिलानां संघर्षणेन संस्खलनं कम्पनं च जायते, येन धरातलं महाविनाशं प्राप्नोति। ज्वालामुखविस्फोटेनापि भूकम्पः सम्भवति, यदा गर्भाग्निः खनिजमृत्तिकाशिलादिकं क्वथति, तदा लावारसः दुर्वारगत्या धरां पर्वतं वा विदारति, धूमभस्मावृतं गगनं च जायते। लावारसः सेल्सियशतापमात्रायाः अष्टशताङ्केन संनादति, येन ग्रामनगरं वा क्षणेन संनादति।
भूकम्पस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः नास्ति, यतः प्रकृतिसमक्षं मानवः वामनकल्पः। तथापि, वैज्ञानिकाः सुझावन्ति यत् बहुभूमिकभवनानां निर्माणं, नदीजलस्य एकत्र पुञ्जीकरणं च वर्जनीयम्, येन असन्तुलनवशात् भूकम्पः सम्भवति। शान्तानि पञ्चतत्त्वानि—क्षितिः, जलं, पावकः, समीरः, गगनं च—भूतलस्य योगक्षेमाय कल्पन्ते, परं प्रकुपितानि महाविनाशं जनयन्ति। अतः साहसं, जागरूकता, च यत्नेन भूकम्पस्य प्रभावः न्यूनीकरणीयः।
हिंदी अनुवाद
नवम पाठ “भूकम्पविभीषिका” प्राकृतिक आपदाओं में भूकम्प के भयावह स्वरूप का विस्तृत वर्णन करता है। प्राकृतिक आपदाएँ जैसे तूफान, बाढ़, अतिवृष्टि, सूखा, भूस्खलन, भू-विदारण, ज्वालामुखी विस्फोट आदि मानव जीवन को संकटग्रस्त कर देते हैं और सुखमय जीवन को दुखमय बना देते हैं। इस पाठ में भूकम्प की भयावहता पर गहन चिन्तन किया गया है, जिसमें आपदा के समय घबराहट छोड़कर साहस और प्रयास से संरक्षण की सम्भावना बताई गई है।
विशेष रूप से सन् 2001 में गणतन्त्र दिवस के अवसर पर, जब सम्पूर्ण भारत नृत्य, गीत और वाद्य के उत्साह में डूबा था, तब गुजरात के कच्छ क्षेत्र में भूकम्प ने भयंकर विभीषिका उत्पन्न की। भूकम्प का केन्द्र भुज शहर मिट्टी के खिलौने की तरह टुकड़े-टुकड़े हो गया। बहुमंजिला भवन धराशायी हो गए, बिजली के खम्भे उखड़ गए, घरों की सीढ़ियाँ और रास्ते टूट गए, और भूमि दो भागों में विभक्त हो गई। पृथ्वी के गर्भ से निकलने वाली जलधाराओं ने बाढ़ का दृश्य उपस्थित किया। हजारों लोग क्षणभर में मृत्यु को प्राप्त हुए, और ध्वस्त भवनों में फँसे अन्य लोग करुण क्रन्दन करते रहे। कुछ शिशु ईश्वरीय कृपा से दो-तीन दिन तक जीवित रहे।
सन् 2005 में कश्मीर और पाकिस्तान क्षेत्र में भी भयंकर भूकम्प ने लाखों लोगों को असमय मृत्यु दी। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी के गर्भ में शिलाओं के आपसी संघर्ष से स्खलन और कम्पन उत्पन्न होता है, जिससे धरातल पर महाविनाश होता है। ज्वालामुखी विस्फोट भी भूकम्प का कारण बनता है, जब पृथ्वी के गर्भ का अग्नि खनिज, मिट्टी और शिलाओं को पिघलाता है, तब लावा दुर्दम गति से पृथ्वी या पर्वत को चीरकर बाहर निकलता है, और धूम व भस्म से आकाश ढक जाता है। यह लावा 800 डिग्री सेल्सियस ताप पर ग्रामों और नगरों को क्षणभर में नष्ट कर देता है।
भूकम्प को शान्त करने का कोई स्थायी उपाय नहीं है, क्योंकि प्रकृति के सामने मानव बौना है। फिर भी, वैज्ञानिक सुझाव देते हैं कि बहुमंजिला भवनों का निर्माण और नदी जल का एकत्र संचय टाला जाए, क्योंकि इससे असन्तुलन के कारण भूकम्प हो सकता है। शान्त पंचतत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—पृथ्वी के कल्याण के लिए उपयोगी हैं, परन्तु क्रुद्ध होने पर महाविनाश उत्पन्न करते हैं। अतः साहस, जागरूकता और प्रयास से भूकम्प के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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