MCQ सुभाषितानि Chapter 5 Sanskrit Class 10 Shemushi संस्कृत Advertisement MCQ’s For All Chapters – Sanskrit Class 10th 1. "योजकस्तत्र दुर्लभः" — इत्युक्ते कः भावः ? ("योग्य व्यक्ति को पहचानने वाला दुर्लभ है" — इसका भाव क्या है?)योजकः सर्वत्र अस्ति (योग्य को जोड़ने वाला हर जगह है)योजकः न आवश्यकः (जोड़ने वाला आवश्यक नहीं)योग्य व्यक्ति को पहचानना कठिन है।सब व्यक्ति योजकाः।Question 1 of 202. "संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता" — इत्यस्य भावः ? ("संपत्ति और विपत्ति में महापुरुष समान रहते हैं" — इसका भाव क्या है?)महात्मा लोभी होता है।महापुरुष सुख-दुख में समान रहते हैं।संपत्तौ दुःखं।विपत्तौ हास्यं।Question 2 of 203. "उदये सविता रक्तः" — इत्युक्ते कः भावः ? ("सूर्य उदय के समय लाल होता है" — इसका क्या भाव है?)सविता पीतः (सूर्य पीला है)सविता न अस्ति (सूर्य नहीं है)सूर्य उदय व अस्त दोनों में समान रंग का होता है।सूर्य न रक्तः।Question 3 of 204. "नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्" — इत्युक्ते कः भावः ? ("कुछ भी निरर्थक नहीं है" — इसका भाव क्या है?)सर्वं व्यर्थम्।सब वस्तुएं उपयोगी हैं।किञ्चित् निरर्थकम् अस्ति।मनुष्यः निरर्थकः।Question 4 of 205. "अश्वश्चेद् धावने वीरः" — इत्यस्य अर्थः कः ? ("घोड़ा दौड़ने में वीर होता है" — इसका क्या अर्थ है?)अश्वः सर्वत्र वीरः।प्रत्येक की अपनी विशेषता होती है।खरः श्रेष्ठः।वीरः न धावति।Question 5 of 206. "भारस्य वहने खरः" — इत्युक्ते कः भावः ? ("भार उठाने में गधा वीर है" — इसका भाव क्या है?)खरः मूर्खः।खरः कार्यकुशलः।खरः बलवान् भारवहन में।खरः अश्वः।Question 6 of 207. "आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः" — इति श्लोकः कस्य विषयम् दर्शयति?("मनुष्य के शरीर में आलस्य बड़ा शत्रु है" — यह किस विषय में बताता है?)परिश्रमस्य महत्त्वम् (परिश्रम का महत्व)आलस्यस्य दोषः (आलस्य का दोष)बुद्धेः वैशिष्ट्यम् (बुद्धि की विशेषता)क्रोधस्य प्रभावः (क्रोध का प्रभाव)Question 7 of 208. "गुणी गुणं वेत्ति" — इति श्लोकः किम् बोधयति?("गुणी व्यक्ति गुण को पहचानता है" — यह क्या सिखाता है?)सज्जनः सज्जनं जानाति (सज्जन व्यक्ति सज्जन को जानता है)मूर्खः सर्वं वेत्ति (मूर्ख सब कुछ जानता है)निर्गुणः गुणं वेत्ति (निर्गुण व्यक्ति गुण जानता है)काकः पिकं जानाति (कौआ कोयल को जानता है)Question 8 of 209. "निमित्तमुद्धिश्य हि यः प्रकुप्यति" — इति श्लोके कः जनः निर्दिष्टः?("जो किसी कारण से क्रोधित होता है" — यह किस व्यक्ति को दर्शाता है?)क्रोधी जनः (क्रोधी व्यक्ति)धैर्यवान् जनः (धैर्यवान व्यक्ति)उद्यमी जनः (मेहनती व्यक्ति)मूर्खः जनः (मूर्ख व्यक्ति)Question 9 of 2010. "ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति" — इत्यस्य अर्थः कः?("जब कारण समाप्त होता है, तब वह शांत हो जाता है" — इसका क्या अर्थ है?)कारणं नास्ति (कोई कारण नहीं है)कारणं गत्वा शान्तिः लभ्यते (कारण हटने पर शांति मिलती है)सः सदैव क्रुद्धः (वह हमेशा क्रोधित रहता है)न कदापि प्रसन्नः (वह कभी प्रसन्न नहीं होता)Question 10 of 2011. "अकारणद्वेषि मनः" — इति कस्य लक्षणम्?("जिसका मन बिना कारण द्वेष करता है" — यह किसका लक्षण है?)सज्जनस्य (सज्जन का)असज्जनस्य (दुष्ट व्यक्ति का)बालकस्य (बालक का)विद्वानस्य (विद्वान का)Question 11 of 2012. "उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते" — इति किम् बोधयति?("स्पष्ट कहा गया अर्थ पशु भी समझते हैं" — यह क्या बताता है?)स्पष्ट वचन सर्वैः ज्ञायते (स्पष्ट वचन सब समझते हैं)पशवः न जानन्ति (पशु नहीं जानते)केवल मनुष्यः जानाति (केवल मनुष्य जानता है)शब्दः निरर्थकः (शब्द निरर्थक हैं)Question 12 of 2013. "क्रोधः देहविनाशनाय" — इत्यस्य भावः कः?("क्रोध शरीर के नाश के लिए होता है" — इसका भाव क्या है?)क्रोधः सुखदायकः (क्रोध सुख देने वाला है)क्रोधः शरीरनाशकः (क्रोध शरीर को नष्ट करता है)क्रोधः बलवर्धकः (क्रोध बल बढ़ाता है)क्रोधः हितकरः (क्रोध लाभदायक है)Question 13 of 2014. "यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः" — इत्यस्य तात्पर्यं किम्?("लकड़ी में स्थित अग्नि लकड़ी को जलाती है" — इसका तात्पर्य क्या है?)अग्निः शुभः अस्ति (अग्नि शुभ है)क्रोधः आन्तरिकः शत्रुः अस्ति (क्रोध अंदर का शत्रु है)वह्निः न दहति (अग्नि नहीं जलाती)काष्ठं अमरम् (लकड़ी अमर है)Question 14 of 2015. "मूर्खाश्च मूर्खैः सुधियः सुधीभिः" — इत्यस्य भावः कः?("मूर्ख मूर्खों के साथ और बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ रहते हैं" — इसका भाव क्या है?)असमानजनाः सख्यं कुर्वन्ति (असमान लोग मित्र बनते हैं)समानशिलाः एव सख्यं कुर्वन्ति (समान स्वभाव वाले ही मित्र बनते हैं)मूर्खः पण्डितेन मित्रं करोति (मूर्ख विद्वान से मित्रता करता है)सुधीः सर्वैः मित्रं करोति (बुद्धिमान सबका मित्र होता है)Question 15 of 2016. "समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्" — इत्युक्ते कः भावः?("समान स्वभाव और आदत वाले ही मित्र बनते हैं" — इसका भाव क्या है?)समानता स्नेहस्य मूलम् अस्ति (समानता ही स्नेह का मूल है)विपरीताः सख्यं कुर्वन्ति (विपरीत लोग मित्र बनते हैं)सख्यं अनर्थकं (मित्रता व्यर्थ है)शीलं न आवश्यकम् (स्वभाव आवश्यक नहीं है)Question 16 of 2017. "अमन्त्रमक्षरं नास्ति" — इत्युक्तं किमर्थं?("कोई भी अक्षर ऐसा नहीं जो मंत्र न हो" — यह क्यों कहा गया है?)शब्देषु शक्ति अस्ति (हर शब्द में शक्ति है)मन्त्रः व्यर्थः (मंत्र व्यर्थ हैं)अक्षरं निरर्थकम् (अक्षर निरर्थक है)संस्कृतं कठिनम् (संस्कृत कठिन है)Question 17 of 2018. "योजकस्तत्र दुर्लभः" — इत्यस्य तात्पर्यं किम्?("योग्य व्यक्ति को जोड़ने वाला दुर्लभ है" — इसका भाव क्या है?)योग्य व्यक्तियों को पहचानना कठिन है।सर्वे योजकाः (सब जोड़ने वाले हैं)योजकः अनावश्यकः (जोड़ने वाला आवश्यक नहीं है)सर्वे अयोग्याः (सब अयोग्य हैं)Question 18 of 2019. "उदये सविता रक्तः रक्तश्चास्तमये तथा" — इत्यस्य भावः कः?("सूर्य उदय और अस्त दोनों में समान लाल रहता है" — इसका भाव क्या है?)सविता द्विविधः (सूर्य दो रूपों वाला है)महान् जनः सुखदुःखयोः समानः (महान व्यक्ति सुख-दुख में समान रहता है)सूर्यः परिवर्तनशीलः (सूर्य बदलता रहता है)सविता न रक्तः (सूर्य लाल नहीं है)Question 19 of 2020. "विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्" — इत्यस्य तात्पर्यं किम्?("इस विचित्र संसार में कुछ भी निरर्थक नहीं है" — इसका भाव क्या है?)सर्वं किञ्चित् प्रयोजनयुक्तम् (सब वस्तुएं किसी न किसी रूप में उपयोगी हैं)संसार व्यर्थः (संसार व्यर्थ है)मनुष्यः निरर्थकः (मनुष्य व्यर्थ है)केवल जीव उपयोगीः (केवल जीव उपयोगी हैं)Question 20 of 20 Loading...
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