What a Bird Thought – Part 2
The poem What a Bird Thought is about a young bird’s changing understanding of the world as it grows. The bird begins its life inside a small, round, and light blue shell. At first, the bird believes that this little shell is the entire world. It is happy in this small space and doesn’t know that there is more to the world outside.
After hatching from the shell, the bird moves to a cozy nest made of straw, where it lives with its mother. Now, the bird thinks the world is made of straw because all it can see is the nest surrounding it. The bird feels safe and warm with its mother and doesn’t feel the need for anything more.
One day, the bird decides to explore and steps out of its nest. As it looks around, it notices the world is much bigger than the nest. It sees the leaves around it and believes that the world is made of leaves. The bird realizes that it has been “blind” in thinking that the world was only the nest or the shell.
As the bird grows older, it flies beyond the tree where it was born. It explores more and more of the world and comes to understand that the world is vast, full of skies, trees, and more things than it could ever imagine. By the end of the poem, the bird admits that it doesn’t fully understand how the world is made, and neither do its neighbors.
This poem reflects the journey of growing up and discovering the world. It shows how our understanding of the world changes as we explore and learn more. Initially, the bird thinks the world is limited to what it can see, but as it grows, it realizes that the world is much larger and more complex than it first thought.
Summary in hindi
कविता What a Bird Thought एक छोटे पक्षी की बदलती समझ के बारे में है, जो समय के साथ अपनी दुनिया को अलग-अलग रूपों में देखता है। शुरुआत में, पक्षी अपने छोटे, गोल, और हल्के नीले अंडे के भीतर होता है। वह सोचता है कि यही उसकी पूरी दुनिया है। वह इस छोटे से स्थान में खुश है और उसे यह नहीं पता होता कि उसके बाहर और भी कुछ है।
अंडे से बाहर निकलने के बाद, पक्षी एक आरामदायक घोंसले में रहता है, जो तिनकों से बना होता है, और वहां उसकी माँ भी होती है। अब, पक्षी यह मानता है कि दुनिया तिनकों से बनी है, क्योंकि उसे केवल घोंसला दिखाई देता है। वह खुद को सुरक्षित और गर्म महसूस करता है और उसे बाहर की दुनिया की कोई चिंता नहीं होती।
एक दिन, पक्षी घोंसले से बाहर निकलने का फैसला करता है और चारों ओर देखता है। वह पत्तों को देखता है और सोचता है कि दुनिया पत्तों से बनी है। पक्षी महसूस करता है कि वह अब तक “अंधा” था, यह सोचकर कि उसकी दुनिया सिर्फ घोंसला या अंडा थी।
जैसे-जैसे पक्षी बड़ा होता है, वह अपने पेड़ से बाहर उड़ता है और दुनिया का और अधिक हिस्सा देखता है। उसे यह समझ में आता है कि दुनिया बहुत बड़ी है, जिसमें आसमान, पेड़, और उससे भी बहुत कुछ है, जिसे वह पहले नहीं जानता था। कविता के अंत में, पक्षी यह स्वीकार करता है कि वह पूरी तरह से नहीं जानता कि दुनिया किससे बनी है, और न ही उसके पड़ोसी यह समझ पाते हैं।
यह कविता इस बात को दर्शाती है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी समझ और दुनिया के प्रति नजरिया बदलता है। शुरुआत में, पक्षी सोचता है कि उसकी दुनिया सीमित है, लेकिन जैसे-जैसे वह अनुभव प्राप्त करता है, उसे पता चलता है कि दुनिया उससे कहीं ज्यादा बड़ी और जटिल है जितना उसने पहले सोचा था।
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