अतिथिदेवो भव
भारतीयसंस्कृतौ अतिथीनां नितरां महत्त्वम् अस्ति। अतिथिदेवो भव इति उपनिषदः वचनम् अस्ति। अस्माकं देशे न केवलं मनुष्याः, अपि तु अन्ये प्राणिनः अपि अतिथिभावेन पूज्यन्ते। अतिथिसेवा पञ्चमहायज्ञेषु अन्तर्भवति। ‘अतिथिदेवो भव’ इति वचनेन अतिथिसेवायाः भावः सर्वेषु जागरितः भवति। तादृशः कश्चन प्रसङ्गः अत्र पाठे दर्शितः।
हिंदी अनुवाद:
भारतीय संस्कृति में अतिथियों का बहुत महत्व है। ‘अतिथि देवो भव’ यह उपनिषद का वचन है। हमारे देश में न केवल मनुष्य, बल्कि अन्य प्राणी भी अतिथि के रूप में पूजे जाते हैं। अतिथि सेवा पाँच महायज्ञों में शामिल है। ‘अतिथि देवो भव’ इस वचन से अतिथि सेवा का भाव सभी में जागृत होता है। ऐसा ही एक प्रसंग इस पाठ में दिखाया गया है।
राधिका एषु दिनेषु कूर्दमाना एव चलति। यतः गृहे नूतनाः
अतिथयः सन्ति। ते च विशिष्टाः सन्ति। माता, पुत्रौ
पुत्र्यौ च मिलित्वा ते तत्र पञ्च सन्ति। अहोरात्रं तस्याः
चिन्ता एकत्र एव। गृहस्य छद्याः उपरि। तत्र एव तस्याः
मनः अस्ति। कुतूहलम् अस्ति के ते इति? ते न अन्ये,
काचित् मार्जारी तस्याः चत्वारः शावकाः च। आम्,
ते एव विशिष्टाः अतिथयः। सा तु तेषां नामानि अपि
चिन्तितवती – तन्वी, मृद्वी, शबलः, भीमः च इति।
हिंदी अनुवाद:
राधिका इन दिनों उछलते हुए ही चलती है। क्योंकि घर में नए अतिथि आए हैं। वे विशेष भी हैं। माता, दो पुत्रों और दो पुत्रियों सहित, वे वहाँ पाँच हैं। दिन-रात उसका ध्यान एक ही स्थान पर है। घर की छत के ऊपर। उसका मन वहीँ है। उत्सुकता है कि वे कौन हैं? वे कोई और नहीं, एक बिल्ली और उसके चार बच्चे हैं। हाँ, वही विशेष अतिथि हैं। उसने उनके नाम भी सोच लिए – तन्वी, मृद्वी, शबल और भीम।
बिल्ली और उसके बच्चों का वर्णन
तन्वी आकृत्या सुन्दरी, मृद्वी स्पर्शेन अतीव कोमला।
शबलः चित्रवर्णः तथा च भीमः किञ्चित् स्थूलः। मार्जारी
कदा गच्छति, कदा आगच्छति एतत् सर्वम् अपि राधिका
जानाति। सा मार्जार्यै क्षीरं ददाति। मार्जारी पिबति। अनन्तरं
सा सधन्यवादं राधिकां पश्यति। किन्तु शावकानां समीपं
राधिका गच्छति चेत् मन्दं मन्दं पृष्ठतः आगच्छति।
राधिकां दृष्ट्वा शावकाः भीताः न भवन्ति। पितामही
राधिकायाः कार्यकलापान् दृष्ट्वा हसति।
हिंदी अनुवाद:
तन्वी काया से सुंदर है, मृद्वी स्पर्श से अत्यंत कोमल है। शबल रंग-बिरंगा है और भीम थोड़ा मोटा है। बिल्ली कब जाती है, कब आती है, यह सब राधिका जानती है। वह बिल्ली को दूध देती है। बिल्ली दूध पीती है। इसके बाद वह धन्यवाद के साथ राधिका को देखती है। लेकिन जब राधिका बिल्ली के बच्चों के पास जाती है, तो बिल्ली धीरे-धीरे पीछे-पीछे आती है। राधिका को देखकर बिल्ली के बच्चे डरते नहीं हैं। दादी राधिका के कार्यों को देखकर हँसती हैं।
दादी का मार्गदर्शन
सा राधिकां वदति राधिके! अतिथयः कदा
आगच्छन्ति इति न जानीमः। किन्तु यदा ते अत्र
आगच्छन्ति तदा तेषाम् एतादृशी सेवा करणीया।
राधिका पितामह्याः कण्ठं परितः मालाम् इव हस्तौ
स्थापयन्ती पृच्छति – अस्तु, करोमि। किन्तु किमर्थम्?
मातामही वदति – ‘अतिथिदेवो भव’ अर्थात् अतिथिः
अस्माकं देवः अस्ति इति चिन्तयतु। तस्य आदरेण सेवां
करोतु। राधिका आदिनं मन्त्रम् इव वारं वारं वदति – अतिथिदेवो
भव। अतिथिदेवो भव। अनन्तरं सा तन्वीं मृद्वीं शबलं भीमं च
वात्सल्येन वदति – जानन्ति किम्? अतिथिदेवो भव।
भवन्तः अपि वदन्तु – ‘अतिथिदेवो भव’।
हिंदी अनुवाद:
वह राधिका से कहती हैं, “राधिका! हमें नहीं पता कि अतिथि कब आते हैं। लेकिन जब वे यहाँ आते हैं, तो उनकी ऐसी सेवा करनी चाहिए।” राधिका अपनी दादी के गले में माला की तरह हाथ डालकर पूछती है, “ठीक है, मैं करती हूँ। लेकिन क्यों?” दादी कहती हैं, “‘अतिथिदेवो भव’ अर्थात् अतिथि हमारे लिए देवता है, ऐसा सोचो। उनकी सम्मान के साथ सेवा करो।” राधिका पूरे दिन मंत्र की तरह बार-बार कहती है – अतिथिदेवो भव। अतिथिदेवो भव। इसके बाद वह तन्वी, मृद्वी, शबल और भीम से स्नेह के साथ कहती है, “जानते हो क्या? अतिथिदेवो भव। तुम भी कहो – ‘अतिथिदेवो भव’।”
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