संगच्छध्वं संवदध्वम्
संस्कृत में सारांश
अस्य प्रथमस्य पाठस्य नाम “संगच्छध्वं संवदध्वम्” अस्ति। प्राचीन-भारतीय-ज्ञान-परम्परायां वेदः साक्षात् ब्रह्ममुखनिःसृता पवित्रतमा दैवी वाक् इति मान्यते। चत्वारः वेदाः सन्ति – ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्ववेदः चेति, ये विश्वस्य प्राचीनतम-साहित्य-रूपेण विद्वद्भिः प्रशंसिताः। अस्य पाठे ऋग्वेदस्य दशममण्डलस्य एकनवतितमसूक्तात् “संज्ञान-सूक्तम्” नामकं मन्त्रत्रयं समाहितं अस्ति। मन्त्राः – “संगच्छध्वं संवदध्वं”, “समानो मन्त्रः”, “समानी व आकूतिः” चेति। एते मन्त्राः ऐक्यं, समन्वयं, सौहार्दं च प्रोत्साहयन्ति। पदच्छेदः, अन्वयः, भावार्थः च स्पष्टं प्रदर्शिताः। भावार्थे मनुष्यान् परस्परं मिलित्वा, एकस्वरेण वदितुम्, मनोभेदं परित्यज्य, स्व-कर्तव्यं सुचारुं कर्तुम् उपदिशति। ऋग्वेदे दश सहस्राणि, पञ्चशतानि, द्विपञ्चाशत् (१०,५५२) मन्त्राः सन्ति, मण्डल-आष्टक-क्रमेण विभक्ताः। अभ्यासे वाक्येषु सत्यता, रिक्तस्थानपूरणं, शब्दयोजनं, लट्-लकारात् लोट्-लकारपरिवर्तनं च कृतं। परियोजनायां मित्रैः चर्चा, पञ्चसूक्तानां नामनिर्देशनं, एकतास्थापनाय उपायानां आलोचनं च सम्मिलितम्।
हिंदी सारांश
इस प्रथम पाठ का नाम “संगच्छध्वं संवदध्वम्” है। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में वेद को सीधे ब्रह्मा के मुख से निकली पवित्र और दैवी वाणी माना जाता है। चार वेद हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, जो विद्वानों द्वारा विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते हैं। इस पाठ में ऋग्वेद के दशम मंडल के एकनवतितम सूक्त से “संज्ञान-सूक्त” नामक तीन मंत्रों का समावेश है। मंत्र हैं – “संगच्छध्वं संवदध्वं”, “समानो मंत्रः”, और “समानी व आकूतिः”। ये मंत्र एकता, समन्वय और सौहार्द को प्रोत्साहित करते हैं। इनके पदच्छेद, अन्वय और भावार्थ स्पष्ट रूप से दिए गए हैं। भावार्थ में मनुष्यों को एक-दूसरे के साथ मिलकर, एक स्वर में बोलने, मन का भेद त्यागने और अपने कर्तव्यों को सुचारु रूप से निभाने की सलाह दी गई है। ऋग्वेद में दस हज़ार, पांच सौ और बावन (10,552) मंत्र हैं, जो मंडल और आष्टक क्रम में विभाजित हैं। अभ्यास में वाक्यों की सत्यता जांच, रिक्त स्थान भरना, शब्द जोड़ना, और लट्-लकार से लोट्-लकार में परिवर्तन करना शामिल है। परियोजना में मित्रों के साथ चर्चा, पांच सूक्तों के नाम लिखना, और एकता स्थापित करने के उपायों पर विचार-विमर्श सम्मिलित है।
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