Notes For All Chapters – संस्कृत Class 8
सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः)
अनुकूल अवसर पर श्रेष्ठता का त्याग (भाग-ख)
१. पाठस्य परिचयः
- अस्मिन् पाठे हितोपदेशग्रन्थातः ‘वीरवर’ नाम राजपुत्रस्य कथा वर्ण्यते।
- सः राजभक्तः, कर्तव्यनिष्ठः, राष्ट्रसमर्पितः च आसीत्।
- कथायाः मुख्यसन्देशः – “कर्तव्यपालनं, त्यागः, देशभक्ति च जीवनस्य आदर्शाः सन्ति।”
हिन्दी अनुवाद
१. पाठ का परिचय
- इस पाठ में हितोपदेश से ली गई कथा दी गई है। इसमें वीरवर नामक राजपुत्र का जीवन-वृत्तांत है।
- वह राजा का सच्चा सेवक, कर्तव्यनिष्ठ और राष्ट्रनिष्ठ था।
- मुख्य संदेश है – कर्तव्यपालन, त्याग और परोपकार जीवन की महानता के आधार हैं।
२. पात्राणि
राजा शूद्रकः – महापराक्रमी, नानाशास्त्रवित्, पूतचरित्रः।
वीरवरः – राजपुत्रः, सेवापरायणः, कर्तव्यनिष्ठः।
पत्नी – वेदरता।
पुत्रः – शक्तिधरः।
कन्या – वीरवती।
मन्त्री – बुद्धिमान्, परीक्षणप्रस्तावकर्ता।
राजलक्ष्मीः – राजसमृद्धेः प्रतीकस्वरूपा।
हिन्दी अनुवाद
२. पात्र
राजा शूद्रक – पराक्रमी, शास्त्रज्ञ, पवित्र चरित्र वाला।
वीरवर – राजपुत्र, कर्तव्यनिष्ठ और त्यागी।
पत्नी – वेदरता।
पुत्र – शक्तिधर।
कन्या – वीरवती।
मंत्री – बुद्धिमान, जिसने राजा को वीरवर की परीक्षा करने की सलाह दी।
राजलक्ष्मी – राजसमृद्धि और वैभव की प्रतीक।
३. कथासारः
- शोभावती नाम नगरे शूद्रकः नाम राजा निवसति स्म।
- वीरवरः आजीविकायै राजद्वारम् आगच्छत्।
- राजा प्रथमं तस्य वृत्त्यर्थं प्रार्थनां न स्वीकृतवान्, किन्तु मन्त्रिणः सूचनया परीक्षायै नियोजितः।
- वीरवरः प्रतिदिनं प्राप्तं वेतनं – अर्धं देवभ्यः, अर्धं दरिद्रभ्यः दत्त्वा, शेषं स्वगृहाय ददाति स्म।
- सः दिनरात्रं शस्त्रसहितः राजद्वारे सेवां करोति।
- एकदा राजा करुणरोदनं श्रुत्वा वीरवरं प्रेषितवान्।
- वीरवरः राजलक्ष्मीं दृष्ट्वा तस्य दुःखस्य कारणं ज्ञातवान्।
- राजलक्ष्मीः उपायं प्रदर्शयति – “यदि स्वप्रियतमं वस्तु त्यजसि तर्हि राजा शतवर्षपर्यन्तं जीविष्यति।”
- एषः प्रसङ्गः कथायाः मुख्यविषयः – कर्तव्यनिष्ठा तथा त्यागस्य महत्त्वम्।
हिन्दी अनुवाद
३. कथासार
- शोभावती नामक नगर में शूद्रक नाम का राजा रहता था।
- वीरवर नाम का युवक आजीविका हेतु राजसभा में पहुँचा।
- पहले तो राजा ने उसकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी, परन्तु मंत्री की सलाह पर उसे सेवा में रखा।
- वीरवर प्रतिदिन अपने वेतन का आधा भाग देवताओं को, आधा गरीबों को और शेष अपने घर पर देता था।
- वह दिन-रात राजा की सेवा करता था और सदैव शस्त्र साथ रखता था।
- एक दिन राजा ने करुण रुदन सुना और वीरवर को भेजा।
- वहाँ वीरवर ने राजलक्ष्मी को देखा।
- राजलक्ष्मी ने बताया कि रानी के अपराध के कारण राजा शीघ्र मृत्यु को प्राप्त होगा।
- उपाय यह था – यदि कोई अपना प्रियतम वस्तु त्याग देगा तो राजा सौ वर्ष तक जीवित रहेगा।
- वीरवर इस संकट को स्वीकार करता है और त्याग के लिए आगे आता है।
४. शिक्षाः (उपदेशाः)
- कर्तव्यनिष्ठा जीवनस्य शोभा अस्ति।
- त्यागेन एव महान् लक्ष्यसिद्धिः भवति।
- राजभक्ति तथा राष्ट्रनिष्ठा प्रेरणादायिनी।
- आहारविभागः – देव, दरिद्र, परिवार, स्वयम् – समाजिकसन्तुलनस्य प्रतीकः।
- कठिनकालः अपि धैर्येण पारयितुं शक्यते।
हिन्दी अनुवाद
४. शिक्षाएँ (उपदेश)
- कर्तव्यपालन ही मनुष्य का सच्चा आभूषण है।
- त्याग से ही महान कार्य पूरे होते हैं।
- राजा और राष्ट्र के प्रति निष्ठा प्रेरणादायी होती है।
- धन का उचित वितरण समाज में संतुलन का प्रतीक है।
- कठिन परिस्थितियों में धैर्य और संयम आवश्यक है।
५. व्याकरणोपयोगी अंशाः
- मुक्तः पदविन्यासः – संस्कृते वाक्ये पदक्रमः स्वेच्छया परिवर्त्यते।
- भूतकालप्रयोगः – लङ्-लकारः, स्म-युक्त-लट् प्रयोगः, क्त-प्रत्ययः।
- उपागच्छत्, अनयत्, श्रुतवान्, प्रतिवसति स्म, नियोजितः इत्यादयः।
हिन्दी अनुवाद
५. भाषा-व्याकरण
- संस्कृत भाषा में वाक्य क्रम लचीला होता है।
- भूतकाल दर्शाने के लिए लङ्-लकार, स्म के साथ लट् और क्त-प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
- जैसे – गया, सुना, देखा, नियुक्त किया, रहा था इत्यादि।
६. श्लोक-सन्देशः
- “सन्निमित्ते वरं त्यागः” – सज्जनः उचितकारणाय स्वप्रियं त्यजेत्।
- परोपकाराय वृक्षाः, नद्यः, गावः च जीवनं यापयन्ति।
- मनुष्यस्य शरीरस्य मुख्य प्रयोजनम् – परोपकारः।
हिन्दी अनुवाद
६. श्लोक-संदेश
- “सन्निमित्ते वरं त्यागः” – उचित अवसर पर किया गया त्याग श्रेष्ठ है।
- वृक्ष, नदियाँ, गायें आदि सब परोपकार के लिए ही जीवन जीती हैं।
- मनुष्य जीवन का भी उद्देश्य दूसरों का कल्याण करना है।
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