वर्णोच्चारण-शिक्षा १
(अक्षरों का उच्चारण-अभ्यास १)
प्रश्नः / उत्तरः
१. प्रश्नः – वर्णस्य सम्यक् उच्चारणाय कति तत्त्वानि आवश्यकानि भवन्ति? (अक्षर के सही उच्चारण के लिए कितने तत्त्व आवश्यक हैं?)
👉 उत्तरम् – त्रीणि तत्त्वानि आवश्यकानि भवन्ति – स्थानम्, करणम्, आभ्यन्तर-प्रयत्नः। (अक्षर के सही उच्चारण के लिए तीन तत्त्व आवश्यक हैं – स्थान, करण और आभ्यन्तर प्रयत्न।)
२. प्रश्नः – स्थानं किम्? (स्थान किसे कहते हैं?)
👉 उत्तरम् – यत्र वायुः वर्णरूपेण प्रकटीभवति तत् ‘स्थानम्’। (जहाँ वायु वर्ण (अक्षर) के रूप में प्रकट होती है, उसे स्थान कहते हैं।)
३. प्रश्नः – करणं किम्? (करण किसे कहते हैं?)
👉 उत्तरम् – वर्णस्य उच्चारणे स्थानं स्पृशति वा समीपं याति यः भागः, सः करणम्। (अक्षर के उच्चारण में जो अंग स्थान को स्पर्श करता है या उसके निकट पहुँचता है, उसे करण कहते हैं।)
४. प्रश्नः – आस्ये कति स्थानानि सन्ति? (मुख में कितने स्थान होते हैं?)
👉 उत्तरम् – आस्ये षट् स्थानानि सन्ति। (मुख में छह उच्चारण-स्थान होते हैं।)
५. प्रश्नः – स्थानस्य कार्यं कस्य उदाहरणेन दर्श्यते? (स्थान का कार्य किस उदाहरण से समझाया जाता है?)
👉 उत्तरम् – मुरलीस्य अङ्गुलिच्छिद्रैः। ( स्थान का कार्य बाँसुरी के छिद्रों से समझाया जाता है।)
६. प्रश्नः – तालव्य, मूर्धन्य, दन्त्य वर्णानाम् करणं किम्? (तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य वर्णों का करण क्या है?)
👉 उत्तरम् – जिह्वा करणं भवति। (तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य वर्णों का करण जीभ है।)
७. प्रश्नः – कण्ठ्य, ओष्ठ्य, नासिक्य वर्णानाम् करणं किम्? (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों का करण क्या है?)
👉 उत्तरम् – स्वस्थानमेव करणं भवति। (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों का करण स्वयं उनका स्थान ही होता है।)
८. प्रश्नः – नाभिप्रदेशे स्थिताः मांसपेश्यः किं कुर्वन्ति? (नाभि-प्रदेश की मांसपेशियाँ क्या करती हैं?)
👉 उत्तरम् – उरः नोदयन्ति। (नाभि-प्रदेश की मांसपेशियाँ छाती को ऊपर उठाती हैं।)
९. प्रश्नः – उरः किं करोति? (छाती क्या करती है?)
👉 उत्तरम् – उरः श्वासकोशस्थितं वायुम् ऊर्ध्वं निःसारयति। (छाती फेफड़ों में स्थित वायु को ऊपर की ओर निकाल देती है।)
१०. प्रश्नः – वर्णस्य उच्चारणे मुरलीदृष्टान्तः कथं प्रयुज्यते? (वर्ण के उच्चारण में बाँसुरी का दृष्टान्त कैसे दिया गया है?)
👉 उत्तरम् – मुरल्याः अङ्गुलयः करणानि इव, अङ्गुलिच्छिद्राणि स्थानानि इव। (वर्ण के उच्चारण में बाँसुरी की उँगलियाँ करण के समान और उसके छिद्र स्थान के समान माने गए हैं।)
रिक्तस्थानपूर्तिः
१. उरसि __________ तन्त्रं भवति।
👉 उत्तरम् – वायु-बल।
हिंदी अनुवाद : छाती में वायु-बल-तंत्र होता है।
२. नाभिप्रदेशे स्थिताः मांसपेश्यः __________ नोदयन्ति।
👉 उत्तरम् – उरः।
हिंदी अनुवाद : नाभि-प्रदेश में स्थित मांसपेशियाँ छाती को ऊपर उठाती हैं।
३. वर्णस्य उच्चारणे त्रयः तत्त्वानि आवश्यकानि – स्थानम्, करणम्, च __________।
👉 उत्तरम् – आभ्यन्तर-प्रयत्नः।
हिंदी अनुवाद : वर्ण के उच्चारण के लिए तीन तत्त्व आवश्यक हैं – स्थान, करण और आभ्यन्तर-प्रयत्न।
४. आस्ये __________ स्थानानि सन्ति।
👉 उत्तरम् – षट्।
हिंदी अनुवाद : मुँह में छः स्थान होते हैं।
५. तालु, मूर्धा, दन्तः – एतेषां स्थानेषु करणं भवति __________।
👉 उत्तरम् – जिह्वा।
हिंदी अनुवाद : तालु, मूर्धा और दाँत – इन स्थानों में जिह्वा करण होती है।
६. कण्ठः, ओष्ठः, नासिका – एतेषां स्थानेषु करणं भवति __________।
👉 उत्तरम् – स्वस्थानम्।
हिंदी अनुवाद : कण्ठ, ओष्ठ और नासिका – इन स्थानों में करण स्वस्थान होता है।
७. स्थानस्य कार्यनिदर्शनार्थं समुचितम् उदाहरणम् अस्ति __________।
👉 उत्तरम् – मुरली।
हिंदी अनुवाद : स्थान के कार्य का उचित उदाहरण है बांसुरी।
८. वर्णोच्चारणार्थं कण्ठ-बिलं प्राप्य वायुः पुनः __________ प्रविशति।
👉 उत्तरम् – आस्यम्।
हिंदी अनुवाद : वर्णोच्चारण के लिए कण्ठ से होकर वायु मुख में प्रवेश करती है।
९. तालव्यवर्णानाम् उच्चारणे करणं भवति जिह्वायाः __________।
👉 उत्तरम् – मध्य-भागः।
हिंदी अनुवाद : तालव्य वर्णों के उच्चारण में करण होता है जिह्वा का मध्य भाग।
१०. दन्त्यवर्णानाम् उच्चारणे करणं भवति जिह्वायाः __________।
👉 उत्तरम् – अग्र-भागः।
हिंदी अनुवाद : दन्त्य वर्णों के उच्चारण में करण होता है जिह्वा का अग्र भाग।
(सत्य / असत्य)
१. शब्दस्य शुद्धोच्चारणे केवलम् आस्यस्य एव उपयोगः भवति। (शब्द के शुद्ध उच्चारण में केवल मुँह का ही प्रयोग होता है।)
👉 उत्तरम् – न।
(अन्य अंगों का भी प्रयोग होता है)
२. वर्णोच्चारणे नाभि-प्रदेशः अपि कार्यं करोति। (वर्णों के उच्चारण में नाभि-प्रदेश भी कार्य करता है।)
👉 उत्तरम् – आम्।
३. उरः श्वासकोशस्थितं वायुं ऊर्ध्वं निःसारयति। (छाती (उरः) फेफड़ों की वायु को ऊपर की ओर निकालती है।)
👉 उत्तरम् – आम्।
४. वायुः आस्यं प्रविश्य तत्र वर्णरूपेण प्रकटः भवति। (वायु मुख में प्रवेश कर वर्ण के रूप में प्रकट होती है।)
👉 उत्तरम् – आम्।
५. आस्ये केवलं पञ्च उच्चारण-स्थानानि सन्ति। (मुँह में केवल पाँच उच्चारण स्थान होते हैं।)
👉 उत्तरम् – न। (छह स्थान होते हैं)
६. मुरली-नलिकायाः अङ्गुलिच्छिद्राणि आस्यस्य स्थानानि इव व्यवहरन्ति। (बांसुरी के छिद्र मुँह के स्थानों के समान माने गए हैं।)
👉 उत्तरम् – आम्।
७. वर्णस्य उच्चारणे करणस्य उपयोगः न भवति। (वर्ण के उच्चारण में करण का उपयोग नहीं होता।)
👉 उत्तरम् – न। (करण का प्रयोग होता है)
८. तालव्य, मूर्धन्य, दन्त्य वर्णानाम् उच्चारणे जिह्वा करणं भवति। (तालव्य, मूर्धन्य और दन्त्य वर्णों के उच्चारण में जिह्वा करण (साधन) होती है।)
👉 उत्तरम् – आम्।
९. ओष्ठ्यवर्णानाम् उच्चारणे जिह्वा सर्वदा सक्रियं भवति। (ओष्ठ्य वर्णों के उच्चारण में जीभ हमेशा सक्रिय रहती है।)
👉 उत्तरम् – न। (ओष्ठ ही करण होता है)
१०. कण्ठ्य, ओष्ठ्य, नासिक्य वर्णानाम् उच्चारणे स्वस्थानमेव करणं भवति। (कण्ठ्य, ओष्ठ्य और नासिक्य वर्णों के उच्चारण में उनका अपना स्थान ही करण होता है।)
👉 उत्तरम् – आम्।
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