Notes For All Chapters – संस्कृत Class 8
अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका
(छोटी-छोटी वस्तुओं की एकता भी कार्य को सिद्ध करती है)
१. पाठपरिचयः
पाठनामः — अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका।
ग्रन्थस्रोतः — हितोपदेशात्, मित्रलाभप्रकरणम्।
लेखकः — पण्डितः नारायणशर्मा।
पाठस्य विषयः — संकटकाले धैर्यं, एकता, आत्मविश्वासः, संघटनस्य बलम्।
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१. पाठ परिचय
पाठ का नाम — अल्प वस्तुओं की एकता ही कार्यसिद्धि करती है।
स्रोत — हितोपदेश, मित्रलाभ प्रकरण।
लेखक — पण्डित नारायण शर्मा।
विषय — विपत्ति में धैर्य, एकता का महत्व, आत्मविश्वास, संगठन का बल।
२. कथा-सारः (कथा सारांश)
1. घटना-परिस्थितिः (घटना और परिस्थिति )
ग्रीष्मावकाशे मित्राणि देवभूमिं उत्तराखण्डं गत्वा गौरीकुण्डं प्राप्तवन्तः।
वर्षारम्भे वेगेन वृष्टिः, अन्धकारः, नदीसेतुः भग्नः, पर्वतस्खलनम्।
सर्वे भयभीताः “हे भगवन् रक्ष” इति प्रार्थयन्ति।
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ग्रीष्मावकाश में मित्र देवभूमि उत्तराखंड घूमने गए।
गौरीकुंड पहुँचे, वर्षा शुरू, अंधकार, नदी का पुल टूटा, भूस्खलन।
सभी भयभीत होकर भगवान से रक्षा की प्रार्थना करते हैं।
2. नायकस्य धैर्यम् (नेता का धैर्य)
नायकः सुधीरः सर्वान् सांत्वयति — “धैर्येण उपायं चिन्तयामः”।
वर्षा शान्ता सति पुनः सेतुं निर्माय गन्तव्यम्।
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नेता सुधीर सभी को सांत्वना देकर कहता है — “धैर्य रखकर उपाय सोचें”।
वर्षा रुकने पर मिलकर पुल बनाकर आगे बढ़ना होगा।
3. सन्देहः व आत्मविश्वासः (संदेह और आत्मविश्वास)
दिनेशः, सुरेशः — कार्यं असम्भवमिति मन्यन्ते।
नायकः — “संघबलेन असम्भवम् अपि सम्भवम्”।
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दिनेश, सुरेश — काम असंभव मानते हैं।
नेता — “संगठन से असंभव भी संभव”।
4. हितोपदेशकथा (हितोपदेश कथा)
स्थानम् — गोदावरीतीरे शाल्मलीतरुः।
चित्रग्रीवः नाम कपोतराजः, तस्य परिवारः च।
व्याधः तण्डुलकणान् विकीर्य जालं विस्तीर्य प्रच्छन्नः।
लोभवशात् कपोताः अविचार्य भूमौ अवतीर्य तण्डुलान् भक्षितवन्तः।
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गोदावरी तट पर शाल्मली का पेड़।
चित्रग्रीव कपोतराज और उसका परिवार।
शिकारी चावल के दाने बिखेरकर जाल फैलाकर छिपा।
कपोत लोभवश नीचे उतरकर दाने खाने लगे और जाल में फँस गए।
5. उपायविचारः (उपाय)
चित्रग्रीवः — “दोषः न एकस्मिन्, उपायः आवश्यकः”।
“अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका” — संघटनम् एव रक्षा।
सर्वे एकचित्तीभूय जालमादाय उड्डीयन्ति।
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चित्रग्रीव — “यह दोष एक का नहीं, अब उपाय जरूरी”।
“अल्प वस्तुओं की एकता कार्य सिद्ध करती है” — मिलकर जाल उठाकर उड़ो।
सब एक मन होकर जाल समेत उड़ गए।
6. मित्रसहाय्यम् (मित्र की सहायता)
व्याधः अनुगच्छति, परं पक्षिणः दूरं गत्वा गण्डकीतीरे चित्रवने हिरण्यकं मूषकराजं गत्वा।
हिरण्यकः पाशच्छेदनं करोति — प्रथमं प्रजाः, अनन्तरं राजः।
सर्वे मुक्ताः, चित्रग्रीवः नीतिशिक्षायाः उदाहरणम्।
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शिकारी पीछा करता है, लेकिन पक्षी दूर जाकर गंडकी तट पर चित्रवन में हिरण्यक मूषकराज के पास पहुँचे।
हिरण्यक ने पहले प्रजा, फिर राजा का बंधन काटा।
सब मुक्त हुए, चित्रग्रीव नीति का उदाहरण बना।
7. कथोपसंहारः (कथोपसंहार)
नायकः कथा श्रावयित्वा — “संघटनबलात् आत्मसंरक्षणम्”।
प्रेरणायुक्तवाक्यानि श्रुत्वा सर्वे मित्राणि सेतुनिर्माणे प्रवृत्ताः।
प्रयत्नेन सेतुर्निर्मितः, सर्वे सुरक्षिताः अभवन्।
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नेता — “संगठन से आत्मरक्षा”।
प्रेरणा पाकर सभी पुल निर्माण में लग गए और सफलता पाई।
३. मुख्यनीतिवचनानि (मुख्य नीतिवचन)
1. “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका। तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥”
भावार्थः — निर्बलाः अपि यदि संघबद्धाः सन्ति, ते महान् कार्यं साधयन्ति।
2. “विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा…”
भावार्थः — महात्मनां स्वभावसिद्धाः गुणाः — संकटे धैर्यम्, उन्नतौ क्षमा, सभायां वाक्पटुता, युधि विक्रमः, यशसि रुचिः, श्रुतौ अनुरागः।
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“अल्प वस्तुओं की एकता कार्य सिद्ध करती है” — घास की रस्सी से हाथी भी बंधता है।
“संकट में धैर्य, उन्नति में क्षमा” — महात्माओं का स्वभाव।
४. पात्राणि (पात्र)
नायकः सुधीरः — धैर्यवान्, प्रेरकः।
दिनेशः, सुरेशः, कपिलः — प्रारम्भे भयभीताः।
चित्रग्रीवः — बुद्धिमान् कपोतराजः।
हिरण्यकः — मूषकराजः, मित्रवत्सलः।
व्याधः — लोभी, कपोतबन्धकः।
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नेता सुधीर — धैर्यवान, प्रेरक।
दिनेश, सुरेश, कपिल — पहले भयभीत।
चित्रग्रीव — समझदार कपोतराज।
हिरण्यक — मूषकराज, सच्चा मित्र।
शिकारी — लोभी, क्रूर।
५. शिक्षाः (शिक्षा)
- संकटे धैर्यम् अवश्यं धार्यम्।
- संघटनस्य बलं महत्त्वपूर्णम्।
- अविचारितं कर्म संकटकारणम्।
- सच्च मित्रं संकटे सहायं करोति।
- नीतिवचनानि व्यवहार्याणि।
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- संकट में घबराना नहीं, धैर्य रखना चाहिए।
- एकता में अद्भुत शक्ति है।
- बिना सोचे-समझे कदम नहीं उठाना चाहिए।
- सच्चा मित्र हमेशा कठिन समय में मदद करता है।
- नीति वचन जीवन में अपनाने चाहिए।
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