अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका
(छोटी-छोटी वस्तुओं की एकता भी कार्य को सिद्ध करती है)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) मित्राणि ग्रीष्मावकाशे कुत्र गच्छन्ति? (मित्र ग्रीष्मावकाश में कहाँ जाते हैं?)
उत्तरम्: ग्रामम्। (गाँव)
(ख) सर्वत्र कः प्रसृतः? (हर जगह कौन फैला हुआ है?)
उत्तरम्: वृक्षः। (वृक्ष)
(ग) कः सर्वान् प्रेरयन् अवदत्? (सबको प्रेरित करते हुए किसने कहा?)
उत्तरम्: शिक्षकः। (शिक्षक)
(घ) कः हितोपदेशस्य कथां श्रावयति? (हितोपदेश की कहानी कौन सुनाता है?)
उत्तरम्: शिक्षकः। (शिक्षक)
(ङ) कपोतराजस्य नाम किम्? (कबूतरों के राजा का नाम क्या है?)
उत्तरम्: चित्रग्रीवः। (चित्रग्रीव)
(च) व्याधः कान् विकीर्य जालं प्रसारितवान्? (शिकारी ने किस पर जाल फैलाया?)
उत्तरम्: कपोतान्। (कबूतरों पर)
(छ) विपत्काले विस्मयः कस्य लक्षणम्? (विपत्ति के समय चकित हो जाना किसका लक्षण है?)
उत्तरम्: मूर्खस्य। (मूर्ख का)
(ज) चित्रग्रीवस्य मित्रं हिरण्यकः कुत्र निवसति? (चित्रग्रीव का मित्र हिरण्यक कहाँ रहता है?)
उत्तरम्: वने। (जंगल में)
(झ) चित्रग्रीवः हिरण्यकं कथं सम्बोधयति? (चित्रग्रीव हिरण्यक को किस तरह संबोधित करता है?)
उत्तरम्: प्रियसख। (प्रिय मित्र)
(ञ) पूर्वं केषां पाशान् छिनत्तु इति चित्रग्रीवः वदति? (चित्रग्रीव सबसे पहले किनके बंधन काटने को कहता है?)
उत्तरम्: शिशूनाम्। (बच्चों के)
२. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत –
(क) प्रश्न: यदा केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन् किम् अभवत्?
हिंदी अनुवाद: जब वे लोग केदार क्षेत्र की ओर चढ़ रहे थे, तब क्या हुआ था?
उत्तरम्: यदा ते केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन्, तदा पर्वतेषु हिमवृष्टिः अभवत्।
हिंदी अनुवाद: जब वे लोग केदार क्षेत्र की ओर चढ़ रहे थे, तब पर्वतों पर बर्फ़ गिरने लगी थी।
(ख) प्रश्न: सर्वे उच्चस्वरेण किं प्रार्थयन्त?
हिंदी अनुवाद: सभी लोग ऊँचे स्वर में क्या प्रार्थना कर रहे थे?
उत्तरम्: सर्वे जनाः उच्चस्वरेण “ईश्वरः रक्षतु” इति प्रार्थयन्त।
हिंदी अनुवाद: सभी लोग ऊँचे स्वर में “ईश्वर रक्षा करें” ऐसा प्रार्थना कर रहे थे।
(ग) प्रश्न: असम्भवं कार्यं कथं कर्तुं शक्यते इति नायकः उक्तवान्?
हिंदी अनुवाद: असंभव कार्य को कैसे किया जा सकता है — ऐसा नायक ने क्या कहा?
उत्तरम्: नायकः उक्तवान् – “यत्र इच्छा तत्र मार्गः”, इत्यनेन असम्भव कार्यं अपि सम्भवम् भवति।
हिंदी अनुवाद:नायक ने कहा – “जहाँ इच्छा है, वहाँ रास्ता है”, जिससे असंभव कार्य भी संभव हो सकता है।
(घ) प्रश्न: निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा चित्रग्रीवः किं निरूपयति?
हिंदी अनुवाद: निर्जन वन में चावल के दानों को देखकर चित्रग्रीव क्या बताता है?
उत्तरम्: चित्रग्रीवः निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा तान् जालस्य संकेतः इति निरूपयति।
हिंदी अनुवाद: चित्रग्रीव चावल के दानों को देखकर उन्हें जाल का संकेत बताता है।
(ङ) प्रश्न: किं नीतिवचनं प्रसिद्धम्?
हिंदी अनुवाद: कौन-सा नीतिवचन प्रसिद्ध है?
उत्तरम्: “विपत्तौ विवेकः आवश्यकः” इति नीतिवचनं प्रसिद्धम्।
हिंदी अनुवाद: “विपत्ति के समय विवेक आवश्यक होता है” यह नीति-वचन प्रसिद्ध है।
(च) प्रश्न: व्याधात् रक्षां प्राप्तुं चित्रग्रीवः कम् आदेशं दत्तवान्?
हिंदी अनुवाद: शिकारी से बचने के लिए चित्रग्रीव ने किसे आदेश दिया?
उत्तरम्: चित्रग्रीवः हिरण्यकं आदेशं दत्तवान् यत् सः व्याधस्य जालं छिन्तु।
हिंदी अनुवाद: चित्रग्रीव ने हिरण्यक को यह आदेश दिया कि वह शिकारी के जाल को काटे।
(छ) प्रश्न: हिरण्यकः किमर्थं तूष्णीं स्थितः?
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक चुपचाप क्यों खड़ा रहा?
उत्तरम्: हिरण्यकः दुःखितं मित्रं दृष्ट्वा करुणया तूष्णीं स्थितः।
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक अपने दुःखी मित्र को देखकर करुणा से चुपचाप खड़ा रहा।
(ज) प्रश्न: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं कथं प्रशंसति?
हिंदी अनुवाद: पुलकित हिरण्यक चित्रग्रीव की कैसे प्रशंसा करता है?
उत्तरम्: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं साहसी, धैर्यशीलः इति प्रशंसति।
हिंदी अनुवाद: पुलकित होकर हिरण्यक चित्रग्रीव को साहसी और धैर्यवान कहकर उसकी प्रशंसा करता है।
(झ) प्रश्न: कपोताः कथं आत्मरक्षणं कृतवन्तः?
हिंदी अनुवाद: कबूतरों ने आत्मरक्षा कैसे की?
उत्तरम्: कपोताः एकत्र मिलित्वा समवेतबलस्य उपयोगेन आत्मरक्षणं कृतवन्तः।
हिंदी अनुवाद: कबूतरों ने मिलकर, सामूहिक बल का उपयोग करके आत्मरक्षा की।
(ञ) प्रश्न: नायकस्य प्रेरकवचनैः सर्वेऽपि किम् अकुर्वन्?
हिंदी अनुवाद: नायक के प्रेरक वचनों से सभी ने क्या किया?
उत्तरम्: नायकस्य प्रेरकवचनैः प्रेरिताः सर्वेऽपि कठिन कार्ये अपि साहसं कृतवन्तः।
हिंदी अनुवाद: नायक के प्रेरणादायक वचनों से सभी ने कठिन कार्य में भी साहस किया।
३. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा ल्यप् प्रत्ययान्तेषु परिवर्तयत –
(क) छात्रः कक्षां प्रविशति । संस्कृतं पठति । “कक्ष प्रविश्य संस्कृतं पठति ।
(ख) भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति । ——————-
(ग) माता भोजनं निर्माति । पुत्राय ददाति । ——————-
(घ) सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति । ——————-
(ङ) रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। ——————-
(च) अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। ——————-
(छ) तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। ——————-
(ज) व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति । ——————–
उत्तरम्:
ल्यप् प्रत्यय के साथ संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद
मूल संस्कृत | परिवर्तित संस्कृत |
---|---|
छात्रः कक्षां प्रविशति। संस्कृतं पठति। (छात्र कक्षा में प्रवेश करता है। संस्कृत पढ़ता है।) | कक्षां प्रविश्य संस्कृतं पठति। (कक्षा में प्रवेश करके संस्कृत पढ़ता है।) |
भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति। (भक्त मंदिर में आता है। पूजा करता है।) | मन्दिरम् आगम्य पूजां करोति। (मंदिर में आकर पूजा करता है।) |
माता भोजनं निर्माति। पुत्राय ददाति। (माता भोजन बनाती है। पुत्र को देती है।) | भोजनं निर्माय पुत्राय ददाति। (भोजन बनाकर पुत्र को देती है।) |
सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति। (सुरेश प्रातः उठता है। देव को नमस्कार करता है।) | प्रातः उत्थाय देवं नमति। (प्रातः उठकर देव को नमस्कार करता है।) |
रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। (रमा पुस्तक स्वीकार करती है। विद्यालय जाती है।) | पुस्तकं स्वीकृत्य विद्यालयं गच्छति। (पुस्तक स्वीकार करके विद्यालय जाती है।) |
अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। (मैं घर आता हूँ। भोजन करता हूँ।) | गृहम् आगम्य भोजनं करोमि। (घर आकर भोजन करता हूँ।) |
तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। (वह चावल के दाने बिखेरता है। जाल फैलाता है।) | तण्डुलकणान् विकीर्य जालं विस्तारयति। (चावल के दाने बिखेरकर जाल फैलाता है।) |
व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति। (शिकारी चावल के दानों को देखता है। भूमि पर उतरता है।) | तण्डुलकणान् अवलोक्य भूमौ अवतरति। (चावल के दानों को देखकर भूमि पर उतरता है।) |
४. उदाहरणानुसारम् उपसर्गयोजनेन क्त्वा–स्थाने ल्यप्–प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा पदानि परिवर्तयत—
सम्, आ, उप, उत्, वि, प्र
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति । “छात्रः गृहम् आगत्य (आ+ गम् + ल्यप्) भोजनं करोति ।
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। ———————————-
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति । ———————————-
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति । ———————————-
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति । ———————————-
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति ।———————————-
ल्यप् प्रत्यय और उपसर्ग के साथ संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद
मूल संस्कृत (Original Sanskrit) | परिवर्तित संस्कृत (Converted Sanskrit) |
---|---|
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति। (छात्र घर जाकर भोजन करता है।) | छात्रः गृहम् आगत्य (आ + गम् + ल्यप्) भोजनं करोति। (छात्र घर आकर भोजन करता है।) |
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। (माता वस्त्र धोकर भोजन बनाती है।) | माता वस्त्राणि प्रक्षाल्य (प्र + क्षल् + ल्यप्) पचति। (माता वस्त्र प्रक्षालन करके भोजन बनाती है।) |
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति। (शिक्षक श्लोक लिखकर पढ़ाता है।) | शिक्षकः श्लोकं संलिख्य (सम् + लिख् + ल्यप्) पाठयति। (शिक्षक श्लोक संकलन करके पढ़ाता है।) |
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति। (रमा खड़े होकर गीत गाती है।) | रमा उपस्थाय (उप + स्था + ल्यप्) गीतं गायति। (रमा उपस्थित होकर गीत गाती है।) |
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति। (शिष्य हमेशा गुरु को नमस्कार करके पढ़ता है।) | शिष्यः सर्वदा गुरुं प्रणम्य (प्र + नम् + ल्यप्) पठति। (शिष्य हमेशा गुरु को प्रणाम करके पढ़ता है।) |
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति। (लेखक आलोचना करके लिखता है।) | लेखकः आलोचनं विकृत्य (वि + कृ + ल्यप्) लिखति। (लेखक आलोचना विश्लेषण करके लिखता है।) |
५. पाठे प्रयुक्तेन उपयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत–
(क) सर्वैः एकचित्तीभूय———————उड्डीयताम्।
उत्तर: आकृष्टाः (आकर्षित होकर)
हिंदी अनुवाद: सभी एक मन होकर आकर्षित होकर उड़ चले।
(ख) जालापहारकान् तान् ——————— पश्चाद् अधावत्।
उत्तर: दृष्ट्वा (देखकर)
हिंदी अनुवाद: जाल ले जा रहे उन कबूतरों को देखकर वह पीछे दौड़ा।
(ग) अस्माकं मित्रं ——————— नाम मूषकराजः गण्डकीतीरे चित्रवने निवसति ।
उत्तर: हिरण्यकः (चूहे का नाम)
हिंदी अनुवाद: हमारा मित्र हिरण्यक नामक मूषकराज गण्डकी नदी के तट पर चित्रवन में रहता है।
(घ) हिरण्यकः कपोतानाम् ——————— चकितस्तूष्णीं स्थितः ।
उत्तर: अवस्थाम् (स्थिति / अवस्था)
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक कबूतरों की अवस्था देखकर चकित होकर चुपचाप खड़ा रहा।
(ङ) यतोहि विपत्काले ———————एव कापुरुषलक्षणम्।
उत्तर: विस्मयः (चकित होना / आश्चर्य करना)
हिंदी अनुवाद: क्योंकि विपत्ति के समय चकित रह जाना ही कायर व्यक्ति का लक्षण होता है।
६. पाठे प्रयुक्तेन ल्यप्प्रत्ययान्तपदेन सह उपयुक्तं पदं योजयत –
(क) विकीर्य जालम्
(ख) विस्तीर्य जालापहारकान्
(ग) अवतीर्य उड्डीयताम्
(घ) अवलोक्य तद्वचनम्
(ङ) एकचित्तीभूय भूमौ
(च) प्रत्यभिज्ञाय तण्डुलकणान्
संस्कृत (ल्यप् पद) | उपयुक्त पदम् | हिंदी अनुवाद |
---|---|---|
(क) विकीर्य | जालम् | जाल को बिखेरकर |
(ख) विस्तीर्य | जालापहारकान् | जाल ले जा रहे पक्षियों की ओर फैलकर |
(ग) अवतीर्य | भूमौ | भूमि पर उतरकर |
(घ) अवलोक्य | तद्वचनम् | उस कथन को देखकर |
(ङ) एकचित्तीभूय | उड्डीयताम् | एक मन होकर उड़ चलो |
(च) प्रत्यभिज्ञाय | तण्डुलकणान् | चावल के दानों को पहचानकर |
७. समासयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत –
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम् तस्मिन् = गण्डकीतीरे
(ख) तण्डुलानां कणाः = ——————- तान् = ——————-
(ग) जालस्य अपहारकाः = —————— तान् = ——————-
(घ) अवपाताद् भयम् = ——————– तस्मात् = ——————-
(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् = ——————– तस्मिन् = ———————
उत्तरम्:
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम्
तस्मिन् = गण्डकीतीरे
हिंदी : गण्डकी नदी का तट = गण्डकीतीरम्, उसमें = गण्डकीतीरे
(ख) तण्डुलानां कणाः = तण्डुलकणाः
तान् = तण्डुलकणान्
हिंदी : चावल के कण = तण्डुलकणाः, उन्हें = तण्डुलकणान्
(ग) जालस्य अपहारकाः = जालापहारकाः
तान् = जालापहारकान्
हिंदी : जाल के चोर/ले जाने वाले = जालापहारकाः, उन्हें = जालापहारकान्
(घ) अवपाताद् भयम् = अवपातभयम्
तस्मात् = अवपातभयात्
हिंदी : गिरने का डर = अवपातभयम्, उस डर से = अवपातभयात्
(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् = कापुरुषलक्षणम्
तस्मिन् = कापुरुषलक्षणे
हिंदी : कायरों का लक्षण = कापुरुषलक्षणम्, उसमें = कापुरुषलक्षणे
८. सार्थकपदं ज्ञात्वा सन्धिविच्छेदं कुरुत–
(क) इत्याकर्ण्य = इति + आकर्ण्य ।
(ख) चित्रग्रीवोऽवदत् = चित्रग्रीवः + अवदत् ।
(ग) बालकोऽत्र = ————– + ————— +
(घ) धैर्यमथाभ्युदये = ————– + ————— + —————–
(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् = ————– + ————— + —————–
(च) नमस्ते =—————- + ——————
(छ) उपायश्चिन्तनीयः =————— + ——————
(ज) व्याधस्तत्र =————— + ——————
(झ) हिरण्यकोऽप्याह = ————— + ———— + ——————
(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे = ————— + – ———— + ——————
(ट) अतस्त्वाम् = ————— + ————
(ठ) कश्चित् = ————– + ————
उत्तरम्:
(क) इत्याकर्ण्य = इति + आकर्ण्य
(ख) चित्रग्रीवोऽवदत् = चित्रग्रीवः + अवदत्
(ग) बालकोऽत्र = बालकः + अत्र
(घ) धैर्यमथाभ्युदये = धैर्यम् + अथ + अभ्युदये
(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् = भोजने + अपि + अप्रवर्तनम्
(च) नमस्ते = नमः + ते
(छ) उपायश्चिन्तनीयः = उपायः + चिन्तनीयः
(ज) व्याधस्तत्र = व्याधः + तत्र
(झ) हिरण्यकोऽप्याह = हिरण्यकः + अपि + आह
(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे = मूषकराजः + गण्डकी + तीरे
(ट) अतस्त्वाम् = अतः + त्वाम्
(ठ) कश्चित् = कः + चित्
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