Solutions For All Chapters – संस्कृत Class 8
अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका
(छोटी-छोटी वस्तुओं की एकता भी कार्य को सिद्ध करती है)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत –
(१. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें -)
(क) मित्राणि ग्रीष्मावकाशे कुत्र गच्छन्ति? (मित्र ग्रीष्मावकाश में कहाँ जाते हैं?)
उत्तरम्: उत्तराखण्डं (उत्तराखण्ड)
(ख) सर्वत्र कः प्रसृतः? (हर जगह क्या फैला हुआ है?)
उत्तरम्: अन्धकारः। (अंधकार)
(ग) कः सर्वान् प्रेरयन् अवदत्? (सबको प्रेरित करते हुए किसने कहा?)
उत्तरम्: सुधीरः (नायकः)| (सुधीर (नायक))
(घ) कः हितोपदेशस्य कथां श्रावयति? (हितोपदेश की कहानी कौन सुनाता है?)
उत्तरम्: नायकः (सुधीर)। (नायक (सुधीर))
(ङ) कपोतराजस्य नाम किम्? (कबूतरों के राजा का नाम क्या है?)
उत्तरम्: चित्रग्रीवः। (चित्रग्रीव)
(च) व्याधः कान् विकीर्य जालं प्रसारितवान्? (शिकारी ने किन्हें बिखेरकर जाल फैलाया?)
उत्तरम्: तण्डुलकणान्। (चावल के दाने)
(छ) विपत्काले विस्मयः कस्य लक्षणम्? (विपत्ति के समय घबराना किसका लक्षण है?)
उत्तरम्: कापुरुषस्य। (कायर पुरुष का)
(ज) चित्रग्रीवस्य मित्रं हिरण्यकः कुत्र निवसति? (चित्रग्रीव का मित्र हिरण्यक कहाँ रहता है?)
उत्तरम्: चित्रवने। (चित्रवन में)
(झ) चित्रग्रीवः हिरण्यकं कथं सम्बोधयति? (चित्रग्रीव हिरण्यक को किस तरह संबोधित करता है?)
उत्तरम्: सखे!। (मित्र!)
(ञ) पूर्वं केषां पाशान् छिनत्तु इति चित्रग्रीवः वदति? (चित्रग्रीव सबसे पहले किनके बंधन काटने को कहता है?)
उत्तरम्: मदाश्रितानाम्। जो मेरे आश्रित हैं (मेरे साथियों के)
२. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत –
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखें)
(क) प्रश्न: यदा केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन् किम् अभवत्?
हिंदी अनुवाद: जब वे लोग केदार क्षेत्र की ओर चढ़ रहे थे, तब क्या हुआ था?
उत्तरम्: यदा केदारक्षेत्रम् आरोहन्तः आसन् तदा वेगेन वृष्टिः आरब्धा।
हिंदी अनुवाद: जब वे केदारक्षेत्र पर चढ़ रहे थे, तब तेज़ वर्षा शुरू हो गई।
(ख) प्रश्न: सर्वे उच्चस्वरेण किं प्रार्थयन्त?
हिंदी अनुवाद: सभी लोग ऊँचे स्वर में क्या प्रार्थना कर रहे थे?
उत्तरम्: सर्वे उच्चस्वरेण प्रार्थयन्त — “हे भगवन्! रक्ष अस्मान्, रक्ष।”
हिंदी अनुवाद: सब लोग ऊँचे स्वर में प्रार्थना कर रहे थे— “हे भगवान! हमारी रक्षा करो।”
(ग) प्रश्न: असम्भवं कार्यं कथं कर्तुं शक्यते इति नायकः उक्तवान्?
हिंदी अनुवाद: असंभव कार्य को कैसे किया जा सकता है — ऐसा किसने कहा?
उत्तरम्: असम्भवं कार्यं कर्तुं शक्यते इति सुरेशः उक्तवान्।
हिंदी अनुवाद:असंभव कार्य को भी किया जा सकता है—यह बात सुरेश ने कही।
(घ) प्रश्न: निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा चित्रग्रीवः किं निरूपयति?
हिंदी अनुवाद: निर्जन वन में चावल के दानों को देखकर चित्रग्रीव क्या बताता है?
उत्तरम्: निर्जने वने तण्डुलकणान् दृष्ट्वा चित्रग्रीवः निरूपयति यत् कश्चित् व्याधः अत्र भवेत्। सर्वथा अविचारितं कर्म न कर्तव्यम्।
हिंदी अनुवाद: निर्जन वन में चावल के दाने देखकर चित्रग्रीव यह निष्कर्ष निकालता है कि यहाँ कोई शिकारी अवश्य होगा। बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।
(ङ) प्रश्न: किं नीतिवचनं प्रसिद्धम्?
हिंदी अनुवाद: कौन-सा नीतिवचन प्रसिद्ध है?
उत्तरम्: लघूनाम् अपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका भवति इति नीतिवचनं लोकसिद्धम्।
हिंदी अनुवाद: छोटी-छोटी वस्तुओं का भी संगठन कार्य को सिद्ध कर देता है—यह नीतिवचन प्रसिद्ध है।
(च) प्रश्न: व्याधात् रक्षां प्राप्तुं चित्रग्रीवः कम् आदेशं दत्तवान्?
हिंदी अनुवाद: शिकारी से बचने के लिए चित्रग्रीव ने किसे आदेश दिया?
उत्तरम्: चित्रग्रीवः हिरण्यकं आदेशं दत्तवान् यत् सः व्याधस्य जालं छिन्तु।
हिंदी अनुवाद: चित्रग्रीव ने हिरण्यक को यह आदेश दिया कि वह शिकारी के जाल को काटे।
(छ) प्रश्न: हिरण्यकः किमर्थं तूष्णीं स्थितः?
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक चुपचाप क्यों खड़ा रहा?
उत्तरम्: हिरण्यकः कपोतानाम् अवपातभयात् चकितः तूष्णीं स्थितः।
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक कबूतरों के गिरने के भय से डरकर चुपचाप खड़ा रहा।
(ज) प्रश्न: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं कथं प्रशंसति?
हिंदी अनुवाद: पुलकित हिरण्यक चित्रग्रीव की कैसे प्रशंसा करता है?
उत्तरम्: पुलकितः हिरण्यकः चित्रग्रीवं प्रशंसति — “साधु मित्र! साधु! अनेन आश्रितवात्सल्येन त्वं त्रैलोक्यस्यापि स्वामित्वं प्राप्तुं योग्योऽसि।”
हिंदी अनुवाद: प्रसन्न हिरण्यक चित्रग्रीव की प्रशंसा करते हुए कहता है— “शाबाश मित्र! शाबाश! अपने आश्रितों के प्रति इस स्नेह से तुम तीनों लोकों के स्वामी बनने योग्य हो।”
(झ) प्रश्न: कपोताः कथं आत्मरक्षणं कृतवन्तः?
हिंदी अनुवाद: कबूतरों ने आत्मरक्षा कैसे की?
उत्तरम्: कपोताः बुद्धिबलेन संघटनसामर्थ्येन च आत्मरक्षणं कृतवन्तः।
हिंदी अनुवाद: कबूतरों ने बुद्धि और संगठन की शक्ति से अपनी रक्षा की।
(ञ) प्रश्न: नायकस्य प्रेरकवचनैः सर्वेऽपि किम् अकुर्वन्?
हिंदी अनुवाद: नायक के प्रेरक वचनों से सभी ने क्या किया?
उत्तरम्: नायकस्य प्रेरकवचनैः उत्साहिताः सर्वेऽपि भयं शोकं सन्देहं च विहाय सेतुनिर्माणकार्ये संलग्नाः जाताः।
हिंदी अनुवाद: नायक के प्रेरक वचनों से उत्साहित होकर सभी लोग भय, शोक और संदेह छोड़कर सेतु-निर्माण के कार्य में लग गए।
३. अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा ल्यप् प्रत्ययान्तेषु परिवर्तयत –
(“नीचे लिखे वाक्यों को पढ़कर उन्हें ल्यप् प्रत्यय (तुमुन् / ल्यप् ) में परिवर्तित कीजिए।”)
(क) छात्रः कक्षां प्रविशति । संस्कृतं पठति । “कक्ष प्रविश्य संस्कृतं पठति ।
(ख) भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति । ——————-
(ग) माता भोजनं निर्माति । पुत्राय ददाति । ——————-
(घ) सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति । ——————-
(ङ) रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। ——————-
(च) अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। ——————-
(छ) तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। ——————-
(ज) व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति । ——————–
उत्तरम्:
ल्यप् प्रत्यय के साथ संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद
मूल संस्कृत | परिवर्तित संस्कृत |
|---|---|
छात्रः कक्षां प्रविशति। संस्कृतं पठति। (छात्र कक्षा में प्रवेश करता है। संस्कृत पढ़ता है।) | कक्षां प्रविश्य संस्कृतं पठति। (कक्षा में प्रवेश करके संस्कृत पढ़ता है।) |
भक्तः मन्दिरम् आगच्छति। पूजां करोति। (भक्त मंदिर में आता है। पूजा करता है।) | भक्तः मन्दिरम् आगत्य पूजां करोति। (भक्त मंदिर में आकर पूजा करता है।) |
माता भोजनं निर्माति। पुत्राय ददाति। (माता भोजन बनाती है। पुत्र को देती है।) | माता भोजनं निर्माय पुत्राय ददाति। (माता भोजन बनाकर पुत्र को देती है।) |
सुरेशः प्रातः उत्तिष्ठति। देवं नमति। (सुरेश प्रातः उठता है। देव को नमस्कार करता है।) | सुरेशः प्रातः उत्थाय देवं नमति ।। (सुरेश प्रातः उठकर देव को नमस्कार करता है।) |
रमा पुस्तकं स्वीकरोति। विद्यालयं गच्छति। (रमा पुस्तक स्वीकार करती है। विद्यालय जाती है।) | रमा पुस्तकं स्वीकृत्य विद्यालयं गच्छति। (रमा पुस्तक स्वीकार करके विद्यालय जाती है।) |
अहं गृहम् आगच्छामि। भोजनं करोमि। (मैं घर आता हूँ। भोजन करता हूँ।) | अहं गृहम् आगत्य भोजनं करोमि। (मैं घर आकर भोजन करता हूँ।) |
तण्डुलकणान् विकिरति। जालं विस्तारयति। (वह चावल के दाने बिखेरता है। जाल फैलाता है।) | तण्डुलकणान् विकीर्य जालं विस्तारयति। (चावल के दाने बिखेरकर जाल फैलाता है।) |
व्याधः तण्डुलकणान् अवलोकते। भूमौ अवतरति। (शिकारी चावल के दानों को देखता है। भूमि पर उतरता है।) | तण्डुलकणान् अवलोक्य भूमौ अवतरति। (शिकारी चावल के दानों को देखकर भूमि पर उतरता है।) |
४. उदाहरणानुसारम् उपसर्गयोजनेन क्त्वा–स्थाने ल्यप्–प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा पदानि परिवर्तयत —
(उदाहरण के अनुसार उपसर्ग जोड़कर क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग करके पदों को परिवर्तित करें।)
सम्, आ, उप, उत्, वि, प्र
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति । “छात्रः गृहम् आगत्य (आ+ गम् + ल्यप्) भोजनं करोति ।
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। ———————————-
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति । ———————————-
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति । ———————————-
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति । ———————————-
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति ।———————————-
ल्यप् प्रत्यय और उपसर्ग के साथ संस्कृत वाक्यों का हिंदी अनुवाद
मूल संस्कृत (Original Sanskrit) | परिवर्तित संस्कृत (Converted Sanskrit) |
|---|---|
(क) छात्रः गृहं गत्वा भोजनं करोति। (छात्र घर जाकर भोजन करता है।) | छात्रः गृहम् आगत्य (आ + गम् + ल्यप्) भोजनं करोति। (छात्र घर आकर भोजन करता है।) |
(ख) माता वस्त्राणि क्षालयित्वा पचति। (माता वस्त्र धोकर भोजन बनाती है।) | माता वस्त्राणि प्रक्षाल्य (प्र + क्षल् + ल्यप्) पचति। (माता वस्त्र प्रक्षालन करके भोजन बनाती है।) |
(ग) शिक्षकः श्लोकं लिखित्वा पाठयति। (शिक्षक श्लोक लिखकर पढ़ाता है।) | शिक्षकः श्लोकं संलिख्य (सम् + लिख् + ल्यप्) पाठयति। (शिक्षक श्लोक संकलन करके पढ़ाता है।) |
(घ) रमा स्थित्वा गीतं गायति। (रमा खड़े होकर गीत गाती है।) | रमा उपस्थाय (उप + स्था + ल्यप्) गीतं गायति। (रमा उपस्थित होकर गीत गाती है।) |
(ङ) शिष्यः सर्वदा गुरुं नत्वा पठति। (शिष्य हमेशा गुरु को नमस्कार करके पढ़ता है।) | शिष्यः सर्वदा गुरुं प्रणम्य (प्र + नम् + ल्यप्) पठति। (शिष्य हमेशा गुरु को प्रणाम करके पढ़ता है।) |
(च) लेखकः आलोचनं कृत्वा लिखति। (लेखक आलोचना करके लिखता है।) | लेखकः आलोचनं विकृत्य (वि + कृ + ल्यप्) लिखति। (लेखक आलोचना विश्लेषण करके लिखता है।) |
५. पाठे प्रयुक्तेन उपयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत –
(पाठ में प्रयुक्त उपयुक्त पद से रिक्त स्थान को पूरा करें।)
(क) सर्वैः एकचित्तीभूय———————उड्डीयताम्।
उत्तर: सर्वै एकचित्तीभूय जालमादाय उड्डीयताम्।
हिंदी अनुवाद: सभी एक मन होकर जाल को उठाकर उड़ चलें।
(ख) जालापहारकान् तान् ——————— पश्चाद् अधावत्।
उत्तर: जालापहारकान् तान् अवलोक्य पश्चाद अधावत् ।
हिंदी अनुवाद: जाल चुराने वालों को देखकर वह उनके पीछे दौड़ा।
(ग) अस्माकं मित्रं ——————— नाम मूषकराजः गण्डकीतीरे चित्रवने निवसति ।
उत्तर: अस्माकं मित्रं हिरण्यको नाम मूषकराजः गण्डकीतीरे चित्रवने निवसति।
हिंदी अनुवाद: हमारा मित्र हिरण्यक नाम का चूहे का राजा गंडकी नदी के तट पर स्थित चित्रवन में रहता है।
(घ) हिरण्यकः कपोतानाम् ——————— चकितस्तूष्णीं स्थितः ।
उत्तर: हिरण्यकः कपोतानाम् अवपातभयात् चकितस्तूष्णीं स्थितः।
हिंदी अनुवाद: हिरण्यक कबूतरों के गिर पड़ने के भय से चकित होकर चुपचाप खड़ा रहा।
(ङ) यतोहि विपत्काले ———————एव कापुरुषलक्षणम्।
उत्तर: यतोहि विपत्काले विस्मयः एव कापुरुषलक्षणम्।
हिंदी अनुवाद: क्योंकि विपत्ति के समय घबरा जाना ही कायर पुरुष का लक्षण होता है।
६. पाठे प्रयुक्तेन ल्यप्प्रत्ययान्तपदेन सह उपयुक्तं पदं योजयत –
(पाठ में प्रयुक्त ल्यप्-प्रत्ययान्त (ल्यप् प्रत्यय से बने) शब्द के साथ उपयुक्त शब्द को मिलाइए।)
(क) विकीर्य (बिखरा हुआ) जालम् (जाल)
(ख) विस्तीर्य (विस्तारित) जालापहारकान् (जाल ले जा रहे पक्षियों की ओर)
(ग) अवतीर्य (उतरकर) उड्डीयताम् (आओ उड़ें)
(घ) अवलोक्य (ध्यान से देखना) तद्वचनम् (यही शब्द है)
(ङ) एकचित्तीभूय (एक मन होकर) भूमौ (भूमि पर)
(च) प्रत्यभिज्ञाय (पहचानकर) तण्डुलकणान् (चावल के दाने)
| संस्कृत (ल्यप् पद) | उपयुक्त पदम् |
|---|---|
| (क) विकीर्य (बिखेरकर / फैलाकर) | (vi) तण्डुलकणान् (चावल के दाने) |
| (ख) विस्तीर्य (फैलाकर) | (i) जालम् (जाल) |
| (ग) अवतीर्य (उतरकर) | (v) भूमौ (भूमि पर / जमीन पर) |
| (घ) अवलोक्य (देखकर) | (ii) जालापहारकान् (जाल चुराने वालों को) |
| (ङ) एकचित्तीभूय (एकाग्र होकर / मन को एक करके) | (iii) उड्डीयताम् (उड़ जाओ / उड़ जाना चाहिए) |
| (च) प्रत्यभिज्ञाय (पहचानकर) | (iv) तद्वचनम् (उसके वचन को) |
७. समासयुक्तपदेन रिक्तस्थानं पूरयत –
(समासयुक्त शब्द से रिक्त स्थान को भरें।)
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम् तस्मिन् = गण्डकीतीरे
(ख) तण्डुलानां कणाः = ——————- तान् = ——————-
(ग) जालस्य अपहारकाः = —————— तान् = ——————-
(घ) अवपाताद् भयम् = ——————– तस्मात् = ——————-
(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् = ——————– तस्मिन् = ———————
उत्तरम्:
(क) गण्डक्याः तीरम् = गण्डकीतीरम् (गण्डकी नदी का तट)
तस्मिन् (उसमें / उस पर) = गण्डकीतीरे (गण्डकी नदी के तट पर)
(ख) तण्डुलानां कणाः = तण्डुलकणाः (चावल के दाने)
तान् (उन्हें) = तण्डुलकणान् (चावल के दानों को)
(ग) जालस्य अपहारकाः = जालापहारकाः (जाल चुराने वाले)
तान् (उन्हें) = जालापहारकान् (जाल चुराने वालों को)
(घ) अवपाताद् भयम् = अवपातभयम् (गिरने का डर)
तस्मात् (उससे) = अवपातभयात् (गिरने के डर से)
(ङ) कापुरुषाणां लक्षणम् = कापुरुषलक्षणम् (कायर का लक्षण)
तस्मिन् (उसमें) = कापुरुषलक्षणे (कायर के लक्षण में)
८. सार्थकपदं ज्ञात्वा सन्धिविच्छेदं कुरुत –
(अर्थपूर्ण शब्द को पहचानकर संधि-विच्छेद कीजिए।)
(क) इत्याकर्ण्य = इति + आकर्ण्य ।
(ख) चित्रग्रीवोऽवदत् = चित्रग्रीवः + अवदत् ।
(ग) बालकोऽत्र = ————– + ————— +
(घ) धैर्यमथाभ्युदये = ————– + ————— + —————–
(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् = ————– + ————— + —————–
(च) नमस्ते =—————- + ——————
(छ) उपायश्चिन्तनीयः =————— + ——————
(ज) व्याधस्तत्र =————— + ——————
(झ) हिरण्यकोऽप्याह = ————— + ———— + ——————
(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे = ————— + – ———— + ——————
(ट) अतस्त्वाम् = ————— + ————
(ठ) कश्चित् = ————– + ————
उत्तरम्:
(क) इत्याकर्ण्य = इति + आकर्ण्य (ऐसा कहकर सुनकर)
(ख) चित्रग्रीवोऽवदत् = चित्रग्रीवः + अवदत् (चित्रग्रीव ने कहा)
(ग) बालकोऽत्र = बालकः + अत्र (यहाँ बालक)
(घ) धैर्यमथाभ्युदये = धैर्यम् + अथ + अभ्युदये (धैर्य और फिर उन्नति में)
(ङ) भोजनेऽप्यप्रवर्तनम् = भोजने + अपि + अप्रवर्तनम् (भोजन में भी रुचि न होना)
(च) नमस्ते = नमः + ते (तुम्हें नमस्कार)
(छ) उपायश्चिन्तनीयः = उपायः + चिन्तनीयः (और उपाय पर विचार करने योग्य है)
(ज) व्याधस्तत्र = व्याधः + तत्र (वहाँ शिकारी)
(झ) हिरण्यकोऽप्याह = हिरण्यकः + अपि + आह (हिरण्यक ने भी कहा)
(ञ) मूषकराजो गण्डकीतीरे = मूषकराजः + गण्डकी + तीरे (गण्डकी नदी के तट पर मूषकराज)
(ट) अतस्त्वाम् = अतः + त्वाम् (इसलिए तुम्हें)
(ठ) कश्चित् = कः + चित् (कोई एक)


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