अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका
संस्कृत में सारांश
अस्य द्वितीयस्य पाठस्य नाम “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका” अस्ति। कतिपय मित्राणि ग्रीष्मावकाशे उत्तराखण्डस्य देवभूमौ पुण्यक्षेत्रदर्शनाय गच्छन्ति। तत्र वर्षारम्भे श्रीकेदारक्षेत्रे आरोहणकाले वृष्टिः, सेतुभंगः, पर्वतस्खलनं च सञ्जायते। सर्वे भयभीताः ईश्वरं प्रार्थयन्ति। नायकः सुधीरः धैर्येन सांत्वयति – विपत्काले उपायं चिन्त्यं, सम्भूय सेतुं निर्माय लक्ष्यं प्रति गन्तव्यम्। हितोपदेशकथायां चित्रग्रीवकपोतराजः लोभात् जालबद्धकपोतान् दृष्ट्वा चेतयति – वृद्धवचनं अपत्काले ग्राह्यम्। कथार्थः – अल्पानां वस्तूनां संहति कार्यसाधिका, यथा तृणरज्जुना गजेन्द्रबन्धनम्। श्लोकः – “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका, तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः” इति। महापुरुषाः विपत्काले धैर्यं, सम्पत्तौ क्षमां, सभायां वाक्पटुतां, युद्धे विक्रमं, यशसि अभिरुचिं, श्रुतौ व्यसनं प्रकटयन्ति। ग्रन्थः हितोपदेशः नारायणशर्मणा रचितः, मित्रलाभादि चत्वारि प्रकरणानि च। परियोजनायां क्रियापदानां प्रयोगवाक्यानि रचनं, कथाशिक्षा-परिचर्चा च सम्मिलितम्।
हिंदी सारांश
इस द्वितीय पाठ का नाम “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका” है। कुछ मित्र ग्रीष्मावकाश में उत्तराखंड की देवभूमि पर पुण्यक्षेत्र दर्शन के लिए जाते हैं। वहाँ वर्षारंभ में श्रीकेदारक्षेत्र पर चढ़ाई के समय बारिश, सेतु टूटना और पहाड़ खिसकना होता है। सभी डरकर ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। नायक सुधीर धैर्य के साथ सांत्वना देता है – विपत्ति में उपाय सोचना, मिलकर सेतु बनाकर लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। हितोपदेश की कथा में चित्रग्रीव नामक कबूतरराज लोभ से जाल में फंसे कबूतरों को देखकर चेतावनी देता है – आपत्ति में वृद्धों की सलाह लेनी चाहिए। कथा का अर्थ है कि थोड़े-थोड़े वस्तुओं का संगठन कार्यसिद्ध करता है, जैसे तिनके की रस्सी से हाथी बंध जाता है। श्लोक है – “अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका, तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः”। महापुरुष विपत्ति में धैर्य, समृद्धि में क्षमा, सभा में वाक्पटुता, युद्ध में पराक्रम, यश में रुचि, और शास्त्र में लगन दिखाते हैं। ग्रंथ हितोपदेश नारायण शर्मा द्वारा रचित है, जिसमें मित्रलाभ आदि चार प्रकरण हैं। परियोजना में क्रिया-शब्दों के प्रयोग से वाक्य रचना और कथा की शिक्षा पर चर्चा शामिल है।
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