सुभाषितस्सं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) गीतानि के गायन्ति ? (गीत कौन गाते हैं?)
उत्तर: देवाः (देवता)
(ख) कः बलं न वेत्ति ? (कौन बल को नहीं जानता?)
उत्तर: मषूकः (मच्छर)
(ग) कः वसन्तस्य गुणं वेत्ति ? (वसंत ऋतु का गुण कौन जानता है?)
उत्तर: कविः (कवि)
(घ) मषूकः कस्य बलं न वेत्ति ? (मच्छर किसके बल को नहीं जानता?)
उत्तर: अनिलस्य (वायु का)
(ङ) फलोद्गमैः के नम्राः भवन्ति ? (फलों के भार से कौन झुक जाते हैं?)
उत्तर: वृक्षाः (वृक्ष)
(च) केन समसख्यं न करणीयम् ? (किसके साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए?)
उत्तर: दुष्टैः (दुष्टों के साथ)
(छ) केन विना दैवं न सिध्यति ? (किसके बिना दैव सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषेण (पुरुष के बिना)
२. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत-
(क) तरवः कदा नम्राः भवन्ति ? (वृक्ष कब झुक जाते हैं?)
उत्तर: तरवः फलोद्गमैः नम्राः भवन्ति। (वृक्ष फलों के भार से झुक जाते हैं।)
(ख) समृद्धिभिः के अनुद्धताः भवन्ति ? (समृद्धि (संपन्नता) के बाद कौन घमंडी नहीं होते?)
उत्तर: सत्पुरुषाः समृद्धिभिः अनुद्धताः भवन्ति। (सज्जन व्यक्ति समृद्धि पाकर भी घमंडी नहीं होते।)
(ग) सत्पुरुषाणां स्वभावः कीदृशः भवति ? (सज्जनों का स्वभाव कैसा होता है?)
उत्तर: सत्पुरुषाणां स्वभावः सज्जनता-पूरितः, दयालुः च भवति। (सज्जनों का स्वभाव विनम्र और दयालु होता है।)
(घ) सत्यम् कदा सत्यम् न भवति ? (सत्य कब सत्य नहीं होता?)
उत्तर: हितं विना उक्तं सत्यम् सत्यम् न भवति। (जो सत्य हितकारी नहीं होता, वह सत्य नहीं माना जाता।)
(ङ) दैवं कदा न सिध्यति ? (दैव (भाग्य) कब सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषकारं विना दैवं न सिध्यति। (पुरुषार्थ (प्रयास) के बिना दैव (भाग्य) सफल नहीं होता।)
३. स्तम्भयोः मेलनंकुरुत —
संख्या | (अ) उक्तिः (संस्कृत में) | (आ) भावार्थः (संस्कृत में) | हिंदी अनुवाद |
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१ | गायन्ति देवाः किल गीतकानि | भारतभूमेः माहात्म्यवर्णनम् | देवता इस भारतभूमि के गीत गाते हैं – भारत की महिमा का वर्णन। |
२ | गुणी गुणं वेत्ति | सज्जनः एव गुणानां मर्मज्ञः | गुणों की पहचान सिर्फ गुणी व्यक्ति ही कर सकता है। |
३ | भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः | सत्पुरुषाणां स्वाभाविकी नम्रता | जैसे वृक्ष फल आने पर झुक जाते हैं, वैसे ही सज्जनों में स्वाभाविक नम्रता होती है। |
४ | यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते | सुवर्णं चतुर्भिः प्रकारैः परीक्ष्यते | जैसे सोने की परीक्षा चार तरीकों से होती है। |
५ | अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति | प्रज्ञा, दमः, दानं, कृतज्ञता इत्यादयः | आठ गुण (जैसे बुद्धि, संयम, दान, कृतज्ञता आदि) मनुष्य को चमकाते हैं। |
६ | दुर्जनेन समं सख्यं न कारयेत् | दुष्टसङ्गः उष्णाङ्गारसदृशः | दुष्टों की संगति जलते अंगारे के समान होती है, इसलिए उनसे मित्रता न करें। |
७ | एकेन चक्रेण न रथस्य गतिः | केवलं दैवं प्रयत्नं विना असिद्धम् | जैसे रथ एक पहिए से नहीं चल सकता, वैसे ही प्रयत्न के बिना केवल भाग्य से सफलता नहीं मिलती। |
४. अधः प्रदत्तमञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत —
फलोद्गमैः, गुणं, कृतज्ञता, सिध्यति, श्रुतम्, शीलेन
(क) गुणी ———— वेत्ति, न वेत्ति निर्गुणः ।
उत्तर: गुणं
हिंदी अनुवाद: गुणी व्यक्ति गुण को पहचानता है, निर्गुण व्यक्ति नहीं।
(ख) भवन्ति नम्राः तरवः ————— ।
उत्तर: फलोद्गमैः
हिंदी अनुवाद: वृक्ष फलों से लदकर नम्र हो जाते हैं।
(ग) पुरुषः परीक्ष्यते कुलेन, —————-, गुणेन, कर्मणा ।
उत्तर: शीलेन
हिंदी अनुवाद: मनुष्य की परीक्षा उसके कुल, आचरण, गुण और कर्म से होती है।
(घ) गुणाः पुरुषं दीपयन्ति – प्रज्ञा, कौल्यं, दमः, ————– ।
उत्तर: कृतज्ञता
हिंदी अनुवाद: गुण मनुष्य को प्रकाशित करते हैं – बुद्धि, शील, संयम, और कृतज्ञता।
(ङ) दानं यथाशक्ति —————- च।
उत्तर: श्रुतम्
हिंदी अनुवाद: सामर्थ्यानुसार दान और अध्ययन (श्रवण/ज्ञान) करना चाहिए।
(च) एवं पुरुषकारेण विना दैवं न —————।
उत्तर: सिध्यति
हिंदी अनुवाद: इस प्रकार प्रयत्न के बिना केवल दैव (भाग्य) से सफलता नहीं मिलती।
५. समुचितं विकल्पं चिनुत-
(क) “गायन्ति देवाः किल गीतकानि” – इत्यस्य श्लोकस्य मुख्यविषयः कः ?
उत्तरम्: (ii) भारतभूमेः गौरवम्
🔹 हिंदी अनुवाद: इस श्लोक का मुख्य विषय भारत भूमि का गौरव है।
(ख) “गुणी गुणं वेत्ति” – इत्यत्र कः गुणं न जानाति ?
उत्तरम्: (ii) निर्गुणः
🔹 हिंदी अनुवाद: ‘गुणी गुण को पहचानता है’, इस कथन में निर्गुण व्यक्ति गुण नहीं जानता।
(ग) “पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः” – इत्यस्य तात्पर्यं किम् ?
उत्तरम्: (ii) सुजन एव गुणं जानाति
🔹 हिंदी अनुवाद: इस कथन का तात्पर्य है कि सज्जन व्यक्ति ही गुणों को पहचानता है।
(घ) “भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः” – इत्यस्य अर्थः कः?
उत्तरम्: (iii) फलयुक्ताः वृक्षाः नम्राः भवन्ति
🔹 हिंदी अनुवाद: फलों से लदे वृक्ष झुक जाते हैं।
(ङ) “न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः ” – इत्यत्र सभायाः महत्त्वं किम् ?
उत्तरम्: (iii) धर्मोपदेशाय ज्ञानवृद्धाः जनाः आवश्यकाः
🔹 हिंदी अनुवाद: सभा में धर्म का उपदेश देने के लिए ज्ञानी वृद्ध जन आवश्यक होते हैं।
(च) दुर्जनेन सह सख्यं किमर्थं न कार्यम् ?
उत्तरम्: (iv) सः उष्णाङ्गारवद् हानिकरः भवति
🔹 हिंदी अनुवाद: दुष्ट व्यक्ति जलते अंगारे की तरह हानिकारक होता है, इसलिए उससे मित्रता नहीं करनी चाहिए।
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