Solutions For All Chapters – संस्कृत Class 8
सुभाषितस्सं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु
(सुंदर वचनों (सुभाषितों) का सेवन करके अपना जीवन सफल बनाओ।)
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत –
(पाठ के आधार पर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें)
(क) गीतानि के गायन्ति ? (गीत कौन गाते हैं?)
उत्तर: देवाः (देवता)
(ख) कः बलं न वेत्ति ? (कौन बल को नहीं जानता?)
उत्तर: निर्बल (कमज़ोर व्यक्ति)
(ग) कः वसन्तस्य गुणं वेत्ति ? (वसंत ऋतु का गुण कौन जानता है?)
उत्तर: पिकः (कोयल)
(घ) मषूकः कस्य बलं न वेत्ति ? (मच्छर किसके बल को नहीं जानता?)
उत्तर: सिंहस्य (सिंह का)
(ङ) फलोद्गमैः के नम्राः भवन्ति ? (फलों के भार से कौन झुक जाते हैं?)
उत्तर: तरवः (वृक्ष)
(च) केन समसख्यं न करणीयम् ? (किसके साथ मित्रता नहीं करनी चाहिए?)
उत्तर: दुर्जनेन (दुर्जन (बुरे व्यक्ति) के साथ)
(छ) केन विना दैवं न सिध्यति ? (किसके बिना भाग्य भी सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषार्थ (परिश्रम) के बिना
२. पाठस्य आधारेण अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत –
(पाठ के आधार पर नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर पूर्ण वाक्य में लिखें।)
(क) तरवः कदा नम्राः भवन्ति ? (वृक्ष कब झुक जाते हैं?)
उत्तर: तरवः फलोद्गमैः नम्राः भवन्ति। (वृक्ष फलों के भार से झुक जाते हैं।)
(ख) समृद्धिभिः के अनुद्धताः भवन्ति ? (समृद्धि (संपन्नता) के बाद कौन घमंडी नहीं होते?)
उत्तर: समृद्धिभिः सत्पुरुषाः अनुद्धताः भवन्ति। (सज्जन व्यक्ति समृद्धि पाकर भी घमंडी नहीं होते।)
(ग) सत्पुरुषाणां स्वभावः कीदृशः भवति ? (सज्जनों का स्वभाव कैसा होता है?)
उत्तर: सत्पुरुषाणां स्वभावः सज्जनता-पूरितः, दयालुः च भवति। (सज्जनों का स्वभाव विनम्र और दयालु होता है।)
(घ) सत्यम् कदा सत्यम् न भवति ? (सत्य कब सत्य नहीं होता?)
उत्तर: यत् छलम् अभ्युपैति सत्यं तत् सत्यं न भवति । (जो बात धोखे से सच मानी जाए, वह असली सच नहीं होती।)
(ङ) दैवं कदा न सिध्यति ? (दैव (भाग्य) कब सफल नहीं होता?)
उत्तर: पुरुषकारं विना दैवं न सिध्यति। (पुरुषार्थ (प्रयास) के बिना दैव (भाग्य) सफल नहीं होता।)
३. स्तम्भयोः मेलनंकुरुत -
(दोनों स्तम्भों का मिलान करें)
| संख्या | (अ) उक्तिः (संस्कृत में) | (आ) भावार्थः (संस्कृत में) | हिंदी अनुवाद |
|---|---|---|---|
| १ | गायन्ति देवाः किल गीतकानि | भारतभूमेः माहात्म्यवर्णनम् | देवता इस भारतभूमि के गीत गाते हैं – भारत की महिमा का वर्णन। |
| २ | गुणी गुणं वेत्ति | सज्जनः एव गुणानां मर्मज्ञः | गुणों की पहचान सिर्फ गुणी व्यक्ति ही कर सकता है। |
| ३ | भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः | सत्पुरुषाणां स्वाभाविकी नम्रता | जैसे वृक्ष फल आने पर झुक जाते हैं, वैसे ही सज्जनों में स्वाभाविक नम्रता होती है। |
| ४ | यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते | सुवर्णं चतुर्भिः प्रकारैः परीक्ष्यते | जैसे सोने की परीक्षा चार तरीकों से होती है। |
| ५ | अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति | प्रज्ञा, दमः, दानं, कृतज्ञता इत्यादयः | आठ गुण (जैसे बुद्धि, संयम, दान, कृतज्ञता आदि) मनुष्य को चमकाते हैं। |
| ६ | दुर्जनेन समं सख्यं न कारयेत् | दुष्टसङ्गः उष्णाङ्गारसदृशः | दुष्टों की संगति जलते अंगारे के समान होती है, इसलिए उनसे मित्रता न करें। |
| ७ | एकेन चक्रेण न रथस्य गतिः | केवलं दैवं प्रयत्नं विना असिद्धम् | जैसे रथ एक पहिए से नहीं चल सकता, वैसे ही प्रयत्न के बिना केवल भाग्य से सफलता नहीं मिलती। |
४. अधः प्रदत्तमञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
(नीचे दी गई मंजूषा से शब्द चुनकर रिक्त स्थान भरें)
फलोद्गमैः = फलों से / परिणामों से
गुणं = गुण / विशेषता
कृतज्ञता = आभार / उपकार की पहचान
सिध्यति = सिद्ध होता है / पूर्ण होता है
श्रुतम् = सुना हुआ / शिक्षा / विद्या
शीलेन = अच्छे आचरण से / सद्गुण से
(क) गुणी ———— वेत्ति, न वेत्ति निर्गुणः ।
उत्तर: गुणं
हिंदी अनुवाद: गुणी व्यक्ति गुण को पहचानता है, निर्गुण व्यक्ति नहीं।
(ख) भवन्ति नम्राः तरवः ————— ।
उत्तर: फलोद्गमैः
हिंदी अनुवाद: वृक्ष फलों से लदकर नम्र हो जाते हैं।
(ग) पुरुषः परीक्ष्यते कुलेन, —————-, गुणेन, कर्मणा ।
उत्तर: शीलेन
हिंदी अनुवाद: मनुष्य की परीक्षा उसके कुल, आचरण, गुण और कर्म से होती है।
(घ) गुणाः पुरुषं दीपयन्ति – प्रज्ञा, कौल्यं, दमः, ————– ।
उत्तर: श्रुतम्
हिंदी अनुवाद: गुण मनुष्य को प्रकाशित करते हैं – बुद्धि, शील, संयम, और श्रवण से प्राप्त विद्या।
(ङ) दानं यथाशक्ति —————- च।
उत्तर: कृतज्ञता
हिंदी अनुवाद: दान अपनी शक्ति के अनुसार करना और कृतज्ञता (आभार) रखना।
(च) एवं पुरुषकारेण विना दैवं न —————।
उत्तर: सिध्यति
हिंदी अनुवाद: इस प्रकार प्रयत्न के बिना केवल दैव (भाग्य) से सफलता नहीं मिलती।
५. समुचितं विकल्पं चिनुत –
(उचित विकल्प चुनें)
(क) “गायन्ति देवाः किल गीतकानि” – इत्यस्य श्लोकस्य मुख्यविषयः कः ? (“गायन्ति देवाः किल गीतकानि” – इस श्लोक का मुख्य विषय क्या है?)
(i) वसन्तस्य सौन्दर्यम् (वसंत का सौंदर्य)
(ii) भारतभूमेः गौरवम् (भारतभूमि का गौरव)
(iii) कर्मणां फलम् (कर्मों का फल)
(iv) दानस्य प्रभावः (दान का प्रभाव)
उत्तरम्: (ii) भारतभूमेः गौरवम्
🔹 हिंदी अनुवाद: इस श्लोक का मुख्य विषय भारत भूमि का गौरव है।
(ख) “गुणी गुणं वेत्ति” – इत्यत्र कः गुणं न जानाति ? (“गुणी गुणं वेत्ति” – यहाँ कौन गुण को नहीं जानता?)
(i) गुणी (गुणी)
(ii) निर्गुण: (निर्गुण)
(iii) पिक: (पक्षी)
(iv) बली (बलवान)
उत्तरम्: (ii) निर्गुणः
🔹 हिंदी अनुवाद: ‘गुणी गुण को पहचानता है’, इस कथन में निर्गुण व्यक्ति गुण नहीं जानता।
(ग) “पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः” – इत्यस्य तात्पर्यं किम् ? (“पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः” – इसका तात्पर्य क्या है?)
(i) पिक: मधुरं गायति न वायसः (पक्षी मधुर गीत गाता है, न कि वायसः)
(ii) सुजन एव गुणं जानाति (केवल सज्जन ही गुण को जानता है)
(iii) वायसः अपि सरसं गानं करोति (वायसः भी मधुर गीत करता है)
(iv) वसन्तः निर्गुणः अस्ति (वसंत निर्गुण है)
उत्तरम्: (ii) पिक: मधुरं गायति न वायसः
🔹 हिंदी अनुवाद: इस कथन का तात्पर्य है कि “जैसे कौए में वसंत के गुण नहीं होते, वैसे ही बुरे इंसान में अच्छे गुण नहीं होते।”
(घ) “भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः” – इत्यस्य अर्थः कः? (“भवन्ति नम्राः तरवः फलोद्गमैः” – इसका अर्थ क्या है?)
(i) वृक्षाणां कठोरता (वृक्षों की कठोरता)
(ii) सत्पुरूषाणाम् उन्नतिः (अच्छे पुरुषों की उन्नति)
(iii) फलयुक्ताः वृक्षाः नम्राः भवन्ति (फलयुक्त वृक्ष नम्र होते हैं)
(iv) परोपकारिणां दुर्बलता (परोपकारी दुर्बल होते हैं)
उत्तरम्: (iii) फलयुक्ताः वृक्षाः नम्राः भवन्ति
🔹 हिंदी अनुवाद: फलों से लदे वृक्ष झुक जाते हैं।
(ङ) “न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः ” – इत्यत्र सभायाः महत्त्वं किम् ? (“न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः” – इसका महत्त्व क्या है?)
(i) सभा मनोरञ्जनाय भवति इत्यत्र सभायाः (सभा मनोरंजन के लिए होती है)
(ii) सभा धनसम्पत्तिं प्रदातुं शक्नोति (सभा धन संपत्ति दे सकती है)
(iii) धर्मोपदेशाय ज्ञानवृद्धाः जनाः आवश्यकाः (धर्मोपदेश के लिए ज्ञानी वृद्ध लोग आवश्यक हैं)
(iv) सभा केवलं राजकार्यार्थं भवति (सभा केवल राजनीति के लिए होती है)
उत्तरम्: (iii) धर्मोपदेशाय ज्ञानवृद्धाः जनाः आवश्यकाः
🔹 हिंदी अनुवाद: सभा में धर्म का उपदेश देने के लिए ज्ञानी वृद्ध जन आवश्यक होते हैं।
(च) दुर्जनेन सह सख्यं किमर्थं न कार्यम् ? (दुर्जन के साथ मित्रता क्यों नहीं करनी चाहिए?)
(i) सः मित्रं भवति (वह मित्र बनता है)
(ii) सः धनं ददाति (वह धन देता है)
(iii) स: शिक्षां ददाति (वह शिक्षा देता है)
(iv) स: उष्णाङ्गारवद् हानिकरः भवति (वह हानिकारक होता है जैसे गरम अंगार)
उत्तरम्: (iv) सः उष्णाङ्गारवद् हानिकरः भवति
🔹 हिंदी अनुवाद: दुष्ट व्यक्ति जलते अंगारे की तरह हानिकारक होता है, इसलिए उससे मित्रता नहीं करनी चाहिए।


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