Summary For All Chapters – संस्कृत Class 8
सुभाषितस्सं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु
📘 Summary in Sanskrit
अस्य तृतीयस्य पाठस्य नाम “सुभाषितरसं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु” अस्ति। अस्य पाठे सुभाषितानि वर्णिता येषु भारतभूमेः महिमा, गुणीजनस्य गुणज्ञानं, सत्पुरुषस्य नम्रता च प्रदर्शिता। प्रथमसुभाषिते देवाः भारतभूमेः गुणगानं कुर्वन्ति, यत्र स्वर्गापवर्गमार्गभूते मानवाः धन्याः, देवाः अपि मनुष्यरूपेण जन्माभिलाषन्ति। द्वितीयसुभाषिते गुणी गुणं, बली बलं वेत्ति, निर्गुणः निर्बलः तु न वेत्ति; पिकः वसन्तस्य गुणं, करी सिंहस्य बलं जानाति, वायसः मूषकः तु न जानति। तृतीयसुभाषिते फलोद्गमैः तरवः, समृद्धिभिः सत्पुरुषाः नम्राः भवन्ति, परोपकारिणां स्वभावः एषः। चतुर्थसुभाषिते सत्यं शीलेन, दैवं पुरुषकारेण सिध्यति। पञ्चमसुभाषिते सुवर्णं चतुर्भिः परीक्ष्यते, पुरुषं अष्टभिः गुणैः। षष्ठसुभाषिते दुरात्मनः सङ्गं त्याज्यं, दैवं प्रयत्नविना न सिध्यति। अभ्यासे प्रश्नोत्तरं, मेलनं, रिक्तस्थानपूरणं च सम्मिलितम्।
📗 Summary in Hindi
इस तृतीय पाठ का नाम “सुभाषितरसं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु” है। इस पाठ में सुभाषितों के माध्यम से भारतभूमि का महिमा, गुणी व्यक्ति का गुण-ज्ञान और सत्पुरुष की नम्रता प्रदर्शित की गई है। प्रथम सुभाषित में देवता भारतभूमि की प्रशंसा करते हैं, जहाँ स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग है, मानव धन्य हैं, और देवता भी मनुष्य रूप में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। द्वितीय सुभाषित में गुणी गुण को, बलवान् बल को जानता है, परन्तु निर्गुण और निर्बल नहीं जानते; कोयल वसंत का गुण, हाथी सिंह का बल जानता है, पर काग और चूहा नहीं जानते। तृतीय सुभाषित में फल उत्पन्न होने पर वृक्ष, समृद्धि में सत्पुरुष नम्र होते हैं, यह परोपकारी का स्वभाव है। चतुर्थ सुभाषित में सत्य चरित्र से, भाग्य पुरुषार्थ से फलता है। पंचम सुभाषित में सोना चार तरीकों से, पुरुष आठ गुणों से परखा जाता है। षष्ठ सुभाषित में दुरात्मा का साथ त्यागना चाहिए, भाग्य बिना प्रयत्न के नहीं फलता। अभ्यास में प्रश्न-उत्तर, मेलन और रिक्त स्थान भरना शामिल है।
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