प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः
यह गोपबन्धु, महान मन वाला देशभक्त, वंदन के योग्य है।
Sanskrit:
नमस्ते छात्राः ! ह्यस्तनीं वार्तां श्रुतवन्तः किम् ?
Hindi Translation:
नमस्ते छात्रों! कल की खबर सुनी क्या?
Sanskrit:
नमो नमः आचार्य !
ओडिशा-राज्यस्य केन्द्रापडा-जनपदे महानद्यां भयङ्करः जलप्लावः सम्भूतः। जलप्लावेन तत्र महती हानिः सञ्जाता।
Hindi Translation:
नमो नमः आचार्य!
उड़ीसा राज्य के केंद्रपाड़ा जिले में महानदी में भयंकर बाढ़ आई है। बाढ़ के कारण वहाँ बहुत हानि हुई है।
Sanskrit:
आम्, हिमानि ! त्वं सत्यं वदसि ।
जलप्लावेन वासगृहाणि नष्टानि, केचित् अस्वस्थाः चिकित्सालये मृत्युना सह युध्यन्ते। अन्ये च अनाहारेण कष्टं सहन्ते । बहवः गृहपालिताः पशवोऽपि नदीस्रोतसा प्रवाहिताः मृताश्च।
Hindi Translation:
हाँ, हिमानी! तुम सच कहती हो।
बाढ़ के कारण आवास-गृह नष्ट हो गए, कुछ लोग अस्वस्थ होकर चिकित्सालय में मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं। अन्य लोग भोजन के अभाव में कष्ट सह रहे हैं। बहुत से पालतू पशु भी नदी के प्रवाह में बह गए और मर गए।
Sanskrit:
महोदय ! ते सम्प्रति अतिदुःखिताः भवेयुः खलु?
Hindi Translation:
महोदय! वे लोग अब बहुत दुखी होंगे, निश्चय ही?
Sanskrit:
सत्यम्, अशोक ! ते सर्वे अतिदुःखेन जीवन्ति ।
अस्माभिः एतादृशानां दुःखितानां सहायता करणीया । यथा उत्कलमणिः गोपबन्धुः जलप्लावपीडितानाम् अकुण्ठं सेवां कृत्वा अद्यापि जनमानसेषु समादृतोऽस्ति ।
Hindi Translation:
सच, अशोक! वे सभी बहुत दुख में जी रहे हैं।
हमें ऐसे दुखी लोगों की सहायता करनी चाहिए। जैसे उत्कलमणि गोपबंधु ने बाढ़ से पीड़ित लोगों की निस्संकोच सेवा करके आज भी जनमानस में सम्मानित हैं।
Sanskrit:
महोदय ! एषः गोपबन्धुः कः ?
Hindi Translation:
महोदय! यह गोपबंधु कौन हैं?
Sanskrit:
भवन्तः सर्वे एतत् चित्रं पश्यन्तु। एषः अस्ति दीनबन्धुः गोपबन्धुः ।
सम्प्रति वयं तस्य विषये जानीमः ।
Hindi Translation:
सभी इस चित्र को देखो। यह हैं दीनबंधु गोपबंधु।
अब हम उनके बारे में जानते हैं।
Sanskrit:
एकदा आचार्यहरिहरदासः सत्यवादि-वनविद्यालयस्य सर्वान् अध्यापकान् भोजनाय आमन्त्रितवान्। आमन्त्रिताः सर्वे अतिथयः हस्तपादं क्षालयित्वा आसनेषु उपविष्टवन्तः । बहूनि सुस्वादूनि व्यञ्जनानि कदलीपत्रेषु परिवेषितानि । हसन् गोपबन्धुरवदत् –
Hindi Translation:
एक बार आचार्य हरिहरदास ने सत्यवादी वन-विद्यालय के सभी शिक्षकों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। सभी आमंत्रित अतिथि हाथ-पैर धोकर आसनों पर बैठ गए। बहुत से स्वादिष्ट व्यंजन केले के पत्तों पर परोसे गए। हँसते हुए गोपबंधु ने कहा:
“भोजन का अत्यधिक अभाव जीवन के लिए सखा प्रदान करता है।
इसलिए भोजन करो, शरीर पर दया मत करो।”
Sanskrit:
एतच्छ्रुत्वा सर्वे उच्चैः हसितवन्तः। तदानीमेव बहिः कश्चन करुणध्वनिः गोपबन्धोः कर्णयोः अगुञ्जत्
“मातः, मातः ! बुभुक्षितोऽस्मि, कृपया किञ्चित् भोजनं देहि। दिनत्रयात् किमपि न भुक्तम्। भोजनं देहि मातः ! भोजनं देहि । आँ आँ …” इति क्रन्दनध्वनिं श्रुत्वैव दयाविगलितहृदयः गोपबन्धुः अश्रुपूर्णनयनोऽभवत् । किमपि अविचिन्त्य झटिति स्वस्मै परिवेषितं भोजनं हस्ते गृहीत्वा बहिरागतवान् भिक्षुकञ्च तद्भोजितवान्।
Hindi Translation:
यह सुनकर सभी जोर से हँसे। उसी समय बाहर से एक करुण ध्वनि गोपबंधु के कानों में गूँजी:
“माँ, माँ! मैं भूखा हूँ, कृपया थोड़ा भोजन दे दो। तीन दिन से कुछ नहीं खाया। भोजन दे दो, माँ! भोजन दे दो। आँ आँ…”
इस रोने की आवाज सुनकर ही दयालु हृदय वाले गोपबंधु की आँखें आँसुओं से भर गईं। बिना कुछ सोचे-विचारे उन्होंने तुरंत अपने लिए परोसा गया भोजन हाथ में लिया, बाहर आए और भिखारी को खाना खिलाया।
Sanskrit:
असौ महान् समाजसेवकः आसीत् गोपबन्धुदासः। असौ सत्यवादि-वनविद्यालयस्य अध्यापकः, प्रसिद्धेषु पञ्चमित्रेषु अन्यतमः स्वतन्त्रतासङ्ग्रामी चासीत्। ओडिशाराज्यस्य पुरीजनपदस्य साक्षीगोपालसमीपे सुआण्डो-ग्रामे जन्म लब्धवान्। अध्ययनकालादेव स दरिद्राणां रोगिणां च सेवामकरोत्। सत्यवादि-वनविद्यालये स छात्रान् निःशुल्कम् अपाठयत्। निरक्षरतादूरीकरणाय सः सततं यतते स्म। कार्पासवस्त्रनिर्माणाय सः स्वयमेव सूत्रप्रस्तुतिमकरोत् । जन्मभूमेः दुर्दशामवलोक्य स सर्वदा चिन्ताकुलो भवति स्म। महात्मगान्धेः प्रेरणया भारतीयस्वतन्त्रतान्दोलने गोपबन्धुः भागं गृहीतवान्। सः वर्षद्वयं यावत् कारावासं प्राप्तवान्।
Hindi Translation:
वे महान समाजसेवी थे, गोपबंधु दास। वे सत्यवादी वन-विद्यालय के शिक्षक, प्रसिद्ध पंचमित्रों में से एक और स्वतंत्रता संग्रामी थे। उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के साक्षीगोपाल के समीप सुआंडो ग्राम में उनका जन्म हुआ। पढ़ाई के समय से ही उन्होंने गरीबों और रोगियों की सेवा की। सत्यवादी वन-विद्यालय में उन्होंने छात्रों को निःशुल्क पढ़ाया। निरक्षरता दूर करने के लिए वे निरंतर प्रयास करते थे। सूती वस्त्र निर्माण के लिए उन्होंने स्वयं सूत काता। अपनी जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर वे सदा चिंतित रहते थे। महात्मा गांधी की प्रेरणा से गोपबंधु ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्हें दो वर्ष तक कारावास हुआ।
Sanskrit:
कारागारेनिवसन्सः ‘बन्दीर आत्मकथा’, ‘कारा-कविता’, ‘धर्मपद’, ‘गो-माहात्म्य’, ‘नचिकेता-उपाख्यान’ इत्यादीनि बहुप्रेरणादायीनि पुस्तकानि ओडिआभाषया विरचितवान् । सर्वदा स्वदेशस्यैव वस्त्राणां वस्तूनां च उपयोगं कृतवान्। मरणासन्नं स्वपुत्रमपि विहाय जलप्लावपीडितान् भारतमातुः सहस्रशः पुत्रान् उद्धर्तुं गृहात् बहिः निर्गतः समाजमसेवत च। देशसेवातत्परस्य गोपबन्धुवर्यस्य प्रसिद्धं प्रेरणादायकं वचनमधुनापि जनमानसेषु राष्ट्रभक्तिं जागरयति।
Hindi Translation:
कारागार में रहते हुए उन्होंने ‘बंदी की आत्मकथा’, ‘कारा-कविता’, ‘धर्मपद’, ‘गो-माहात्म्य’, ‘नचिकेता-उपाख्यान’ इत्यादि अनेक प्रेरणादायी पुस्तकें उड़िया भाषा में रचीं। उन्होंने सदा स्वदेशी वस्त्रों और वस्तुओं का उपयोग किया। मरणासन्न अपने पुत्र को भी छोड़कर, बाढ़ से पीड़ित भारत माता के हजारों पुत्रों को बचाने के लिए घर से बाहर निकले और समाज की सेवा की। देशसेवा में तत्पर गोपबंधु के प्रसिद्ध प्रेरणादायक वचन आज भी जनमानस में राष्ट्रभक्ति जगाते हैं।
Sanskrit:
Hindi Translation:
स्वदेश की भूमि में मेरा शरीर विलीन हो जाए,
देशवासी मेरे पीछे चलें।
देश के स्वराज्य के मार्ग में जहाँ-जहाँ गड्ढे हों,
वे सभी गड्ढे मेरी हड्डियों और मांस से भर जाएँ।
Sanskrit:
मिशु मोर देह ए देश माटिरे,
देशवासी चालि जाआन्तु पिठिरे,
देशर स्वराज्य पथे जेते गाड,
पुरु तहिँ पडि मोर मांस हाड ॥
Hindi Translation:
मिशु मोर देह ए देश माटिरे,
देशवासी चालि जाआन्तु पिठिरे,
देशर स्वराज्य पथे जेते गाड,
पुरु तहिँ पडि मोर मांस हाड।
Sanskrit:
भावार्थः
स्वदेशस्य भूमिभागे मम शरीरं विलीनं भवतु । देशवासिनः मम अनुसरणं कुर्वन्तु । देशस्य स्वतन्त्रतानिमित्तं यत्र यत्र प्रतिबन्धकाः गर्ताः छन्, ते सर्वे गर्ताः मम अस्थिभिः मांसैश्च परिपूर्णाः भवन्तु ।
Hindi Translation:
भावार्थ:
स्वदेश की भूमि में मेरा शरीर विलीन हो जाए।
देशवासी मेरे पीछे चलें।
देश की स्वतंत्रता के लिए जहाँ-जहाँ बाधक गड्ढे हैं,
वे सभी गड्ढे मेरी हड्डियों और मांस से भर जाएँ।
Sanskrit:
असौ सत्यवादि-वनविद्यालयस्य, दरिद्रनारायणसेवा-सङ्घस्य, सत्यवादि-मुद्रणालयस्य, समाजः इति दैनिक-वार्तापत्रस्य च प्रतिष्ठाता आसीत्। समाजः इति दिनपत्रिका शताधिकवर्षेभ्यः अधुनापि प्रतिदिनं प्रकाश्यते। समाजसेवायै देशसेवायै च तस्य असीमं त्यागमनुभवन् वैज्ञानिकः आचार्यः प्रफुल्लचन्द्ररायः गोपबन्धुम् उत्कलमणिः इति उपाधिना सम्मानितवान् ।
Hindi Translation:
वे सत्यवादी वन-विद्यालय, दरीद्रनारायण सेवा संघ, सत्यवादी मुद्रणालय और समाज नामक दैनिक समाचार-पत्र के संस्थापक थे। समाज समाचार-पत्र सौ से अधिक वर्षों से आज भी प्रतिदिन प्रकाशित होता है। समाजसेवा और देशसेवा के लिए उनके असीम त्याग को देखकर वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय ने गोपबंधु को उत्कलमणि की उपाधि से सम्मानित किया।
Sanskrit:
Hindi Translation:
उत्कलमणि नाम से प्रसिद्ध लोकसेवक,
प्रणम्य देशभक्त यह गोपबंधु महामना।
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