Notes For All Chapters – संस्कृत Class 8
प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः
(यह गोपबन्धु, महान मन वाला देशभक्त, वंदन के योग्य है।)
१. पाठपरिचयः (पाठ परिचय)
पाठनामः — प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः
लेखकः / स्रोतः — जीवनचरितप्रधान गद्यांशः, ओडिशायाः महापुरुषस्य चरितम्।
विषयः — उत्कलमणि गोपबन्धुदासस्य समाजसेवा, देशभक्ति, त्यागभावना च।
सन्दर्भः — ओडिशाराज्ये जलप्लावपीडितानाम् साहाय्यार्थं आचार्यः छात्रैः सह गोपबन्धोः आदर्शकथा चर्चायाम्।
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पाठ का नाम — प्रणम्य देशभक्त गोपबन्धु महान।
लेखक / स्रोत — जीवन-चरित प्रधान गद्यांश, ओडिशा के एक महान व्यक्ति का जीवन-चरित्र।
विषय — उत्कलमणि गोपबन्धु दास की समाजसेवा, देशभक्ति और त्यागभावना।
संदर्भ — ओडिशा राज्य में बाढ़ पीड़ितों की सहायता के विषय में आचार्य ने छात्रों के साथ गोपबन्धु के आदर्श जीवन की चर्चा की।
२. मुख्यकथासारः
प्रस्तावना —
- ओडिशाराज्यस्य केन्द्रापडा-जनपदे महानद्यां भयानकः जलप्लावः।
- वासगृहाणि नष्टानि, जनाः रोगपीडिताः, अनाहारेण दुःखिता:, पशवो मृताः।
- आचार्यः छात्रान् उपदेशयति — दुःखितानाम् सहायता करणीया, यथा गोपबन्धुदासेन कृता।
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- ओडिशा के केन्द्रापड़ा जिले में महानदी में भयानक बाढ़।
- घर बह गए, लोग बीमार, भूख से पीड़ित, पशु मरे।
- आचार्य — हमें इनकी सहायता करनी चाहिए, जैसे गोपबन्धु ने की थी।
गोपबन्धोः करुणा —
- एकदा सत्यवादि-वनविद्यालये आचार्यहरिहरदासेन भोजनाय आमन्त्रितः।
- स्वादिष्टं भोजनं परोक्ष्य बाह्यतः करुणध्वनिः — भिक्षुकः दिनत्रयं न भुक्तवान्, अन्नं याचते।
- दयाविगलितहृदयः गोपबन्धुः स्वभोजनं तस्मै दत्तवान्।
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- एक बार सत्यवादि वनविद्यालय में आचार्य हरिहरदास ने गोपबन्धु को भोजन के लिए आमंत्रित किया।
- स्वादिष्ट भोजन परोसा ही गया था कि बाहर से करुण पुकार सुनाई दी — एक भिक्षुक कह रहा था कि उसने तीन दिन से अन्न नहीं खाया और अन्न मांग रहा था।
- दया से पिघलकर गोपबन्धु ने अपना भोजन उसी भिक्षुक को दे दिया।
जीवनचरितम् (जीवन परिचय)
- जन्म — ९ अक्टूबर १८७७, सुआण्डो-ग्रामे, पुरी-जनपदः, ओडिशा।
- बाल्ये एव दरिद्रसेवा, रोगिणां उपचारः, शिक्षायाः प्रसारः।
- सत्यवादि-वनविद्यालये निःशुल्कशिक्षा।
- स्वदेशवस्त्रवस्तूनाम् उपयोगः।
- महात्मा गान्धेः प्रेरणया स्वतन्त्रतान्दोलने सहभागः, द्विवर्षीय कारावासः।
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- जन्म — 9 अक्टूबर 1877, सुआण्डो ग्राम, पुरी ज़िला, ओडिशा।
- बचपन से ही गरीबों की सेवा, रोगियों का उपचार और शिक्षा का प्रसार करते थे।
- सत्यवादि वनविद्यालय में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की।
- स्वदेशी वस्त्र और वस्तुओं का प्रयोग करते थे।
- महात्मा गाँधी से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, जिसके कारण दो वर्ष का कारावास भोगा।
साहित्यरचना (साहित्यिक रचनाएँ )
‘बन्दीर आत्मकथा’, ‘कारा-कविता’, ‘धर्मपद’, ‘गो-माहात्म्य’, ‘नचिकेता-उपाख्यान’ इत्यादीनि प्रेरणादायीनि ग्रन्थाः ओडिआभाषायाम्।
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‘बन्दीर आत्मकथा’, ‘कारा-कविता’, ‘धर्मपद’, ‘गो-माहात्म्य’, ‘नचिकेता-उपाख्यान’ — ये सभी ओड़िया भाषा में लिखी गई प्रेरणादायक रचनाएँ हैं।
त्यागभावना (त्याग भावना)
मरणासन्नं स्वपुत्रं विहाय जलप्लावपीडितानाम् उद्धारणार्थं गृहेभ्यः निर्गतः।
प्रसिद्धं वचनम् —
“स्वदेशभूमौ मम लीयतां तनुः,
स्वदेशलोकास्तदनु प्रयान्तु नु।
स्वराज्यमार्गे यदि गर्तमालिका,
ममास्थिमांसैः परिपूरितास्तु सा॥”
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जब उनका पुत्र मृत्युशैया पर था, तब भी उन्होंने उसे छोड़कर बाढ़ पीड़ितों को बचाने के लिए घर से निकलने का निश्चय किया।
उनका प्रसिद्ध वचन —
“मेरी देह स्वदेश की भूमि में लीन हो जाए,
मेरे देशवासी मेरे साथ आगे बढ़ें,
स्वराज्य के मार्ग में यदि गड्ढे हों,
तो वे मेरी हड्डियों और मांस से भर दिए जाएँ।”
प्रतिष्ठा व सम्मानः —
- सत्यवादि-वनविद्यालयस्य, दरिद्रनारायणसेवासंघस्य, ‘समाजः’ दिनपत्रिकायाः च संस्थापकः।
- प्रफुल्लचन्द्ररायेन ‘उत्कलमणिः’ इति उपाधिना सम्मानितः।
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- सत्यवादि वनविद्यालय, दरिद्र नारायण सेवा संघ, और ‘समाज’ नामक दैनिक पत्र के संस्थापक।
- प्रफुल्ल चन्द्र राय ने उन्हें ‘उत्कलमणि’ की उपाधि प्रदान की।
अन्त्यकालः (अंतिम समय)
स्वर्गारोहणम् — १७ जून १९२८, साक्षी-गोपाले।
३. मुख्यशिक्षाः (शिक्षा)
- परोपकारेणैव जीवनस्य सार्थकता।
- करुणा, त्यागः, देशभक्ति, स्वावलम्बनस्य महत्त्वम्।
- संकटे अपि लोकसेवा अग्रे स्थापनीया।
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- सच्चा देशभक्त अपने जीवन को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित करता है।
- करुणा और त्याग से ही समाज में अमरता मिलती है।
- स्वावलम्बन और स्वदेशी भावना को अपनाना चाहिए।
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