प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः
Summary in Sanskrit
अस्य चतुर्थस्य पाठस्य नाम “प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः” अस्ति। अयं पाठः देशभक्त गोपबन्धुदासस्य जीवनचरितं, समाजसेवां, शिक्षाप्रसारं च वर्णयति। पाठे ओडिशाराज्यस्य केन्द्रापडा-जनपदे जलप्लावहानेः चर्चा प्रारभ्यते। छात्राः शिक्षकाश्च जलप्लावेन वासगृहाणां नाशं, अस्वस्थानां मृत्युयुद्धं, अनाहारेण कष्टं, पशुहानिं च वदन्ति। नायकः सुधीरः सहायता-प्रयोजनं उल्लिखति, गोपबन्धुदासस्य सेवाप्रेरणां प्रदर्शति। गोपबन्धुः सत्यवादिवनविद्यालयस्य अध्यापकः आसीत्, येन भोजनस्य महत्त्वं श्लोकेन उक्तम् – “भोजनस्यातिदौर्लभ्यं जीवनाय सुखप्रदम्। तदर्थं भोजनं कुर्याः मा शरीरे दयां कुरु॥”। एकदा भोजनसमये भिक्षुकस्य करुणध्वनिं श्रुत्वा स्वकीयं भोजनं तस्मै दत्तवान्, दीनबन्धोः स्वरूपं प्रदर्शितवान्।
गोपबन्धुदासस्य जीवनपरिचयः – जन्म ०९/१०/१८७७ सुआण्डो-ग्रामे, पिता दैत्यारिदासः, माता स्वर्णमयी देवी, पत्नी मोती देवी। एफ्.ए. १९०० रेभेन्सामहाविद्यालये, बी.एल्. १९०६ कलकत्ताविश्वविद्यालये उत्तीर्णः। सत्यवादिवनविद्यालयस्य प्रतिष्ठा १९०९, बिहार-ओडिशा सभासद् १९१७, समाजपत्रिकाप्रकाशनं १९१९, स्वातन्त्र्यसहायता १९२०, उत्कलमणिः उपाधिः १९२४ प्राप्तवान्। रचनाः – अवकाशचिन्ता, बन्दीरआत्मकथा, काराकविता, धर्मपद, गोमाहात्म्य, नचिकेतोपाख्यान। स्वर्गारोहणं १७/०६/१९२८।
सत्यवादिवनविद्यालयः भारतस्य प्रथमः निःशुल्कविश्वविद्यालयः, १९०९ साक्षीगोपाले प्रतिष्ठितः। पञ्चसखा – गोपबन्धुदासः, नीलकण्ठदासः, गोदावरीशमिश्रः, कृपासिन्धुमिश्रः, लिङ्गराजमिश्रः – समाजसेवां, शिक्षाविकासं, स्वाधीनताप्रेरणां कृतवन्तः। अभ्यासे घटनाक्रमेण वाक्यलेखनं, योग्यताविस्तरः श्लोकविश्लेषणं च सम्मिलितम्। परियोजनायां स्वतन्त्रतासेनानी-जीवनी, जलप्लावसाहाय्य-योजनां च लिखितव्यम्।
Summary in Hindi
इस चतुर्थ पाठ का नाम “प्रणम्यो देशभक्तोऽयं गोपबन्धुर्महामनाः” है। यह पाठ देशभक्त गोपबन्धु दास के जीवनचरित्र, समाजसेवा और शिक्षा-प्रसार को वर्णन करता है। पाठ में ओडिशा राज्य के केन्द्रापड़ा जिले में बाढ़ की हानि पर चर्चा शुरू होती है। छात्र और शिक्षक बाढ़ से घरों के नष्ट होने, बीमारों के मृत्यु से संघर्ष, भूख से कष्ट, और पशुहानि की बात करते हैं। नायक सुधीर सहायता की आवश्यकता बताता है और गोपबन्धु दास की सेवा-प्रेरणा को प्रस्तुत करता है। गोपबन्धु सत्यवादी वनविद्यालय के शिक्षक थे, जिन्होंने भोजन के महत्व को श्लोक में कहा – “भोजनस्यातिदौर्लभ्यं जीवनाय सुखप्रदम्। तदर्थं भोजनं कुर्याः मा शरीरे दयां कुरु॥”। एक बार भोजन के समय भिक्षुक की करुण पुकार सुनकर अपने भोजन को उसे दे दिया, दीनबन्धु का स्वरूप दिखाया।
गोपबन्धु दास का जीवनपरिचय – जन्म 09/10/1877 सुआण्डो ग्राम में, पिता दैत्यारी दास, माता स्वर्णमयी देवी, पत्नी मोती देवी। एफ.ए. 1900 में रेवेन्सा कॉलेज कटक, बी.एल. 1906 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण। सत्यवादी वनविद्यालय की स्थापना 1909, बिहार-ओडिशा सभा सदस्य 1917, समाज पत्रिका प्रकाशन 1919, स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान 1920, उत्कलमणि उपाधि 1924 प्राप्त की। रचनाएँ – अवकाशचिंता, बन्दीर आत्मकथा, कारा-कविता, धर्मपद, गो-माहात्म्य, नचिकेता-उपाख्यान। स्वर्गारोहण 17/06/1928।
सत्यवादी वनविद्यालय भारत का प्रथम निःशुल्क विद्यालय था, 1909 में साक्षीगोपाल में स्थापित। पंचसखा – गोपबन्धु दास, नीलकण्ठ दास, गोदावरीश मिश्र, कृपासिंधु मिश्र, लिंगराज मिश्र – समाजसेवा, शिक्षा-विकास, और स्वाधीनता-प्रेरणा में सहयोग किया। अभ्यास में घटनाक्रम के अनुसार वाक्य-लेखन और श्लोक-विश्लेषण शामिल है। परियोजना में स्वतंत्रता सेनानी की जीवनी और बाढ़ पीड़ितों की सहायता योजना लिखनी है।
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