गीता सुगीता कर्तव्या
संस्कृत:
कुरुक्षेत्रे श्रीगीता-जयन्ती-महोत्सवः आचरितः। तत्र बहवः जनाः अगच्छन्। रमेशः अपि स्वजनकेन सह तत्र गतवान्। कथावाचकः गीतायाः विषये वर्णयति स्म –
हिंदी अनुवाद: कुरुक्षेत्र में श्रीगीता-जयंती-महोत्सव मनाया गया। वहाँ बहुत से लोग गए। रमेश भी अपने परिवार के साथ वहाँ गया। कथावाचक गीता के विषय में बता रहे थे –
संस्कृत: गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता॥
हिंदी अनुवाद: गीता को सुगीता करना चाहिए, अन्य शास्त्रों के विस्तार की क्या आवश्यकता है। जो स्वयं पद्मनाभ (श्रीकृष्ण) के मुख कमल से निकली है।
संस्कृत:
इदं श्रुत्वा रमेशः पितरम् अपृच्छत् – “पितः! गीता का? कथं सुगीता कर्तव्या?”
पिता –
पुत्र! बहुभ्यः वर्षेभ्यः पूर्वं कुरुक्षेत्रे कौरवाणां पाण्डवानां च मध्ये सङ्ग्रामः अभवत्। तस्मिन् युद्धे स्वबान्धवान् दृष्ट्वा अर्जुनः युद्धं कर्तुं न इच्छति स्म। तदा भगवान् श्रीकृष्णः युद्धपराङ्मुखम् अर्जुनं कर्तव्यपालनार्थम् उपदिष्टवान्। श्रीकृष्णस्य उपदेशः एव श्रीमद्भगवद्गीता अस्ति। गीतायाम् अमृततुल्याः उपदेशाः सन्ति।
हिंदी अनुवाद: यह सुनकर रमेश ने अपने पिता से पूछा – “पिताजी! गीता क्या है? इसे सुगीता कैसे करना चाहिए?”
पिता – “पुत्र! बहुत समय पहले कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ था। उस युद्ध में अपने रिश्तेदारों को देखकर अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध से मुंह मोड़ने वाले अर्जुन को कर्तव्यपालन के लिए उपदेश दिया। श्रीकृष्ण का वही उपदेश श्रीमद्भगवद्गीता है। गीता में अमृत जैसे उपदेश हैं।”
संस्कृत:
रमेशः – तर्हि सुगीता कर्तव्या इत्यस्य कः आशयः?
पिता – अस्य आशयः अस्ति यत् गीतायाः अभ्यासः सम्यक् रूपेण करणीयः। गीता उत्तमभावेन पठितव्या। कार्यक्षेत्रे जीवनक्षेत्रे च गीतायाः उपदेशाः अनुपालनीयाः। अस्मिन् पाठे वयं श्रीमद्भगवद्गीतायाः काँश्चन श्लोकान् पठामः। वयं श्लोकान् मिलित्वा गायामः अपि।
हिंदी अनुवाद: रमेश – “फिर सुगीता कर्तव्या का क्या अर्थ है?”
पिता – “इसका अर्थ है कि गीता का अध्ययन ठीक तरह से करना चाहिए। गीता को उत्तम भाव से पढ़ना चाहिए। कार्यक्षेत्र और जीवनक्षेत्र में गीता के उपदेशों का पालन करना चाहिए। इस पाठ में हम श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक पढ़ेंगे। हम श्लोकों को मिलाकर गाएँगे भी।”
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥ १ ॥
हिंदी अनुवाद:
“जो व्यक्ति दुःखों में मन को विचलित नहीं होने देता, सुखों में जिसकी स्पृहा (लालसा) समाप्त हो चुकी है, और जो राग, भय तथा क्रोध से रहित है — वह स्थितप्रज्ञ मुनि कहलाता है।”
पदच्छेद: – दुःखेषु अनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः वीत-राग-भय-क्रोधः स्थितधीः मुनिः उच्यते।
पदच्छेद: in hindi – दुखों में अविचलित मन वाला, सुखों में इच्छारहित, राग-भय-क्रोध से मुक्त, वह मुनि स्थितप्रज्ञ (इति) कहलाता है।
अन्वय: – दुःखेषु अनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः वीत-राग-भय-क्रोधः मुनिः स्थितधीः (इति) उच्यते।
अन्वयः in hindi – दुखों में अविचलित मन वाला, सुखों में इच्छारहित, राग-भय-क्रोध से मुक्त मुनि स्थितप्रज्ञ (इति) कहलाता है।
भावार्थ: – यः मनुष्यः आपत्कालेषु उद्वेगं न अनुभवति। यः सुखप्राप्तये अपि निस्पृहः (इच्छारहितः) भवति। यः इच्छा, आसक्तिः, भयः, क्रोधः, इत्येतेभ्यः मुक्तः भवति । सः मौनी पुरुषः स्थितप्रज्ञः भवति ।
भावार्थ: in hindi : – जो मनुष्य कठिन समय में उद्वेग नहीं अनुभव करता, जो सुख पाने में भी इच्छारहित होता है, जो राग, आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त होता है, वही मौनी पुरुष स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥ २ ॥
हिंदी अनुवाद:
“क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति का भ्रम (भूल) होता है। स्मृति के नष्ट होने से बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि के नष्ट हो जाने पर मनुष्य का पतन हो जाता है।”
पदच्छेद: – क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।
पदच्छेद: in hindi – क्रोध से होता है मोह, मोह से स्मृति का भ्रम, स्मृति के नाश से बुद्धि नष्ट, बुद्धि के नाश से प्राणी विनाश को प्राप्त होता है।
अन्वय: – क्रोधात् सम्मोहः भवति। सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः (भवति)। स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः (भवति)। बुद्धिनाशात् (जनः) प्रणश्यति।
अन्वयः in hindi – क्रोध से मोह होता है, मोह से स्मृति का भ्रम (होता है), स्मृति के नाश से बुद्धि नष्ट (होती है), बुद्धि के नाश से (मनुष्य) विनाश को प्राप्त होता है।
भावार्थ: – मानवस्य यदा क्रोधः भवति तदा क्रोधात् अविवेकः उत्पद्यते । अविवेकात् आत्मानं विस्मरति। किं योग्यं किञ्च अयोग्यम् इति अविचिन्त्य क्रोधात् व्यामोहं प्राप्नोति। यदा अधिकः व्यामोहः भवति तदा मनुष्यस्य स्मृतिः निष्क्रिया नष्टा च भवति । स्मृतेः नाशात् बुद्धिः नश्यति । बुद्धेः नाशात् सः मनुष्यः विनाशं प्राप्नोति ।
भावार्थ: in hindi : – जब मनुष्य में क्रोध उत्पन्न होता है, तब क्रोध से अविवेक पैदा होता है। अविवेक से वह अपने आपको भूल जाता है। उचित-अउचित पर विचार न करके क्रोध से व्यामोह में पड़ता है। जब अधिक व्यामोह होता है, तब मनुष्य की स्मृति नष्ट और निष्क्रिय हो जाती है। स्मृति के नाश से बुद्धि नष्ट होती है और बुद्धि के नाश से वह मनुष्य विनाश को प्राप्त होता है।
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥ ३ ॥
हिंदी अनुवाद:
इसे प्रणाम, प्रश्न और सेवा से जानो,
तत्त्वदर्शी ज्ञानी तुम्हें ज्ञान देंगे।
पदच्छेद: तद् विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानम् ज्ञानिनः तत्त्वदर्शिनः।
पदच्छेद: in hindi – इसे प्रणाम से, प्रश्न से, सेवा से जानो, तत्त्वदर्शी ज्ञानी तुम्हें ज्ञान देंगे।
अन्वय: तद् प्रणिपातेन सेवया परिप्रश्नेन विद्धि, ते तत्त्वदर्शिनः ज्ञानिनः ज्ञानम् उपदेक्ष्यन्ति।
अन्वयः in hindi – इसे प्रणाम, सेवा और प्रश्न से जानो, तत्त्वदर्शी ज्ञानी तुम्हें ज्ञान देंगे।
भावार्थ: भगवान् श्रीकृष्णः अर्जुनम् उपदिशति – हे अर्जुन ! भवान् गुरोः समीपं गत्वा यथार्थज्ञानं प्राप्तुं प्रयासं करोतु । भवान् विनीतः जिज्ञासुः च भूत्वा गुरोः सेवां करोतु। तत्त्वज्ञानी गुरुः भवते ज्ञानं प्रदास्यति । यतः ये सत्यस्य दर्शनं कृतवन्तः ते एव यथार्थज्ञानिनः भवन्ति ।
भावार्थ: in hindi : – भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं – हे अर्जुन! तुम गुरु के पास जाकर यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करो। तुम विनम्र और जिज्ञासु बनकर गुरु की सेवा करो। तत्त्वज्ञानी गुरु तुम्हें ज्ञान देंगे, क्योंकि जो सत्य का दर्शन कर चुके हैं, वही यथार्थज्ञानी होते हैं।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ ४ ॥
हिंदी अनुवाद:
श्रद्धा वाला, इंद्रियों को वश में रखने वाला, तत्पर मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है,
और ज्ञान प्राप्त कर शीघ्र ही परम शांति को प्राप्त होता है।
पदच्छेद: श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् तत्परः संयतेन्द्रियः ज्ञानम् लब्ध्वा पराम् शान्तिम् अचिरेण अधिगच्छति।
पदच्छेद: in hindi – श्रद्धा वाला लभता है ज्ञान, तत्पर, इंद्रियों को वश में रखने वाला, ज्ञान प्राप्त कर परम शांति को शीघ्र प्राप्त होता है।
अन्वय: संयतेन्द्रियः तत्परः श्रद्धावान् (मनुष्यः) ज्ञानं लभते। तथा ज्ञानं लब्ध्वा (सः) अचिरेण परां शान्तिम् अधिगच्छति।
अन्वयः in hindi – इंद्रियों को वश में रखने वाला, तत्पर, श्रद्धा वाला (मनुष्य) ज्ञान प्राप्त करता है, और ज्ञान प्राप्त कर (वह) शीघ्र ही परम शांति को प्राप्त होता है।
भावार्थ: यः श्रद्धालुः मनुष्यः दिव्यज्ञानं प्राप्तुं निरन्तरं प्रयासं करोति । तथैव यः मनुष्यः इन्द्रियाणि स्ववशे कृतवान्। सः मनुष्यः दिव्यज्ञानं प्राप्स्यति । तादृशं दिव्यं ज्ञानं प्राप्य सः पुरुषः जीवने अनन्तम् आनन्दं प्राप्नोति ।
भावार्थ: in hindi : – जो श्रद्धालु मनुष्य दिव्यज्ञान प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता है और जो अपने इंद्रियों को वश में रखता है, वह मनुष्य दिव्यज्ञान प्राप्त करता है। ऐसा दिव्यज्ञान प्राप्त करने पर वह पुरुष जीवन में अनंत आनंद और शांति प्राप्त करता है।
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥ ५ ॥
हिंदी अनुवाद:
जो सभी प्राणियों से बैर नहीं रखता, मित्रता और करुणा वाला,
ममत्व और अहंकार से रहित, सुख-दुख में समभाव और क्षमाशील होता है।
पदच्छेद: अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुणः एव च निर्ममः निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।
पदच्छेद: in hindi – जो सभी प्राणियों से बैर नहीं रखता, मित्रता और करुणा वाला, ममत्व और अहंकार से रहित, सुख-दुख में समभाव और क्षमाशील (होता है)।
अन्वय: (यः) सर्वभूतानाम् अद्वेष्टा मैत्रः च करुणः एव निर्ममः निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी (अस्ति, सः एव मम प्रियः भवति)।
अन्वयः in hindi – (जो) सभी प्राणियों से बैर नहीं रखता, मित्रता और करुणा वाला, ममत्व और अहंकार से रहित, सुख-दुख में समभाव और क्षमाशील (होता है, वही मेरा प्रिय भक्त होता है)।
भावार्थ: हे अर्जुन ! यः कस्यामपि परिस्थितौ विचलितः न भवति । यः ईर्ष्यारहितः समस्तप्राणिनां कृते मित्रभावयुतः दयालुः च भवति। यः ममत्वरहितः, अहङ्कारविहीनः, सुखदुःखेषु समभावयुतः क्षमाशीलः च भवति तादृशः पुरुषः भगवतः अत्यन्तं प्रियः भक्तः भवति।
भावार्थ: in hindi : –
हे अर्जुन! जो किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होता, जो ईर्ष्या से मुक्त होकर सभी प्राणियों के प्रति मित्रभाव और दया रखता है, जो ममत्व और अहंकार से रहित, सुख-दुख में समभाव रखने वाला और क्षमाशील होता है, वह पुरुष भगवान के अत्यंत प्रिय भक्त होता है।
सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥ ६ ॥
हिंदी अनुवाद:
जो सदा संतुष्ट योगी, आत्मा को वश में रखने वाला, दृढ़ निश्चयी,
मुझमें मन-बुद्धि समर्पित, मेरा भक्त है, वही मेरा प्रिय है।
पदच्छेद: सन्तुष्टः सततम् योगी यतात्मा दृढनिश्चयः मयि अर्पितमनोबुद्धिः यः मद्भक्तः सः मे प्रियः।
पदच्छेद: in hindi – जो सदा संतुष्ट, योगी, आत्मा को वश में रखने वाला, दृढ़ निश्चयी, मुझमें मन-बुद्धि समर्पित, मेरा भक्त, वही मेरा प्रिय (है)।
अन्वय: यः योगी सततं सन्तुष्टः यतात्मा दृढनिश्चयः मयि (च) अर्पितमनोबुद्धिः (भवति) सः मद्भक्तः मे प्रियः (भवति)।
अन्वयः in hindi – जो योगी सदा संतुष्ट, आत्मा को वश में रखने वाला, दृढ़ निश्चयी, मुझ में (च) मन-बुद्धि समर्पित (होता है), वही मेरा भक्त मेरा प्रिय (होता है)।
भावार्थ: हे पार्थ ! यः निरन्तरं सन्तुष्टः भवति । अर्थात् कस्यापि वस्तुनः अभावात् कदापि असन्तुष्टः न भवति। यः मनः इन्द्रियाणि च विजित्य संयमी भवति । यः स्वबुद्ध्या परमेश्वरस्य स्वरूपं स्थिरीकरोति । यश्च मनः बुद्धिं च ईश्वरे समर्पयति। सः मनुष्यः मम अतीव प्रियतमः भक्तः भवति ।
भावार्थ: in hindi : – हे पार्थ! जो निरंतर संतुष्ट रहता है, अर्थात किसी वस्तु के अभाव से कभी असंतुष्ट नहीं होता, जो मन और इंद्रियों को वश में रखकर संयमी होता है, जो अपनी बुद्धि से परमेश्वर के स्वरूप को स्थिर करता है और जो मन-बुद्धि को ईश्वर में समर्पित करता है, वह मनुष्य मेरा अत्यंत प्रिय भक्त होता है।
यस्मान्नोद्विजते लोकः लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः॥ ७ ॥
हिंदी अनुवाद:
जिससे लोक उद्विग्न नहीं होता, जो लोक से उद्विग्न नहीं होता,
जो हर्ष, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से मुक्त है, वही मेरा प्रिय है।
पदच्छेद: यस्मात् न उद्विजते लोकः लोकात् न उद्विजते च यः हर्ष-अमर्ष-भय-उद्वेगैः मुक्तः यः सः च मे प्रियः।
पदच्छेद: in hindi – जिससे लोक उद्विग्न नहीं होता, जो लोक से उद्विग्न नहीं होता, जो हर्ष-ईर्ष्या-भय-उद्वेग से मुक्त है, वही मेरा प्रिय (है)।
अन्वय: यस्मात् लोकः न उद्विजते, यः च लोकात् न उद्विजते, यः च हर्ष-अमर्ष-भय-उद्वेगैः मुक्तः सः मे प्रियः (भवति)।
अन्वयः in hindi – जिससे लोक उद्विग्न नहीं होता, जो लोक से उद्विग्न नहीं होता, जो हर्ष-ईर्ष्या-भय-उद्वेग से मुक्त है, वही मेरा प्रिय (होता है)।
भावार्थ: हे अर्जुन ! यस्मात् मनुष्यात् कोऽपि मनुष्यः प्राणी वा उद्विग्नः न भवति । यश्च मनुष्यः अन्यस्मात् जनात् प्राणिनः वा उद्विग्नः न भवति । यश्च हर्षेण, ईर्ष्यया, भीत्या, चिन्तया च रहितः भवति । सः मम अतीव प्रियः भक्तः भवति।
भावार्थ: in hindi : – हे अर्जुन! जिस मनुष्य से कोई भी प्राणी या मनुष्य उद्विग्न नहीं होता और जो स्वयं अन्य जनों या प्राणियों से उद्विग्न नहीं होता, जो हर्ष, ईर्ष्या, भय और चिंता से मुक्त होता है, वह मेरा अत्यंत प्रिय भक्त होता है।
अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते॥ ८ ॥
हिंदी अनुवाद:
जो वचन उद्वेगहीन, सत्य, प्रिय और हितकारी हो,
और स्वाध्याय-अभ्यास भी, वह वाणी का तप कहलाता है।
पदच्छेद: अनुद्वेगकरम् वाक्यम् सत्यम् प्रियहितम् च यत् स्वाध्यायाभ्यसनम् च एव वाङ्मयम् तपः उच्यते।
पदच्छेद: in hindi – जो वचन उद्वेगहीन, सत्य, प्रिय और हितकारी हो, और स्वाध्याय-अभ्यास भी, वही वाणी का तप (कहलाता है)।
अन्वय: यद् वाक्यम् अनुद्वेगकरं सत्यं प्रियहितं च (तथा) स्वाध्यायाभ्यसनं च एव वाङ्मयं तपः उच्यते।
अन्वयः in hindi – जो वचन उद्वेगहीन, सत्य, प्रिय और हितकारी हो, और स्वाध्याय-अभ्यास भी, वही वाणी का तप कहलाता है।
भावार्थ: यत् अनुद्वेगकरं (भषणम् उद्वेगं न जनयेत्), सत्यं, प्रियकरं, हितकरं, च भाषणं स्यात्, तत् वाङ्मयं तपः इति कथ्यते । शास्त्रादीनां स्वाध्यायः, तेषाम् अभ्यासः च वाचिकं तपः कथ्यते। तथा स्वाध्यायः अभ्यासश्चापि यथाविधि वाङ्मयं तपः इति उच्यते। अतः विद्यार्थिभिः स्मरणीयं यत् |
भावार्थ: in hindi : – जो वचन उद्वेग पैदा नहीं करता, जो सत्य, प्रिय और हितकारी होता है, वह वाणी का तप कहा जाता है। शास्त्रों का स्वाध्याय और उनका अभ्यास भी वाचिक तप माना जाता है।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः,
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचनेन का दरिद्रता।
भावार्थ हिंदी: प्रिय वचनों के द्वारा सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं,
इसलिए हमें वही कहना चाहिए, वचन में क्या दरिद्रता है।
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