Notes For All Chapters – संस्कृत Class 8
गीता सुगीता कर्तव्या
(गीता और सुगीता का पालन करना आवश्यक है)
परिचयः
श्रीमद्भगवद्गीता भगवतः श्रीकृष्णस्य अर्जुनाय प्रदत्तानां जीवनमूल्यसम्बद्धानाम् उपदेशानां संकलनात्मकः ग्रन्थः अस्ति। कुरुक्षेत्रे कौरव-पाण्डवयोः संग्रामे युद्धपराङ्मुखम् अर्जुनं कर्तव्यमार्गे प्रेरयितुं श्रीकृष्णेन उपदिष्टं ज्ञानं गीतायां समाविष्टम्। गीतायां जीवनस्य सर्वं सुखदुःखयोः समदृष्ट्या, कर्तव्यपालनेन, श्रद्धया च जीवनं संनादति।
पाठनामः — गीता सुगीता कर्तव्या
प्रकारः — धार्मिक-शिक्षाप्रधान गद्यांशः।
मुख्यविषयः — श्रीमद्भगवद्गीतायाः महत्त्वम्, तस्याः अभ्यासस्य आवश्यकता, श्लोकानां जीवनोपयोगिता च।
सन्दर्भः — कुरुक्षेत्रे गीता-जयन्ती-महोत्सवे कथावाचकः गीतायाः उत्पत्तिं, महत्वं, व्यवहारिकोपयोगं च श्रोतृजनाय वर्णयति।
Hindi Translate
परिचय
श्रीमद्भगवद्गीता भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए जीवनमूल्य से संबंधित उपदेशों का संकलन है। कुरुक्षेत्र में कौरव-पांडव युद्ध के समय अर्जुन युद्ध से विमुख हो गए थे। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्तव्य पालन का उपदेश दिया, जो गीता के रूप में जाना जाता है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं, जिन्हें वेदव्यास ने महाभारत के भीष्मपर्व में वर्णित किया।
पाठ का नाम — गीता सुगीता कर्तव्या
प्रकार — धार्मिक और शिक्षाप्रधान गद्य
मुख्य विषय — श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व, उसका अध्ययन और जीवन में उसका अनुपालन।
संदर्भ — कुरुक्षेत्र में गीता जयंती महोत्सव में गीता के उपदेशों की महत्ता का वर्णन।
2. मुख्यकथासारः (विस्तृतः)
(क) प्रस्तावना —
कुरुक्षेत्रक्षेत्रे प्रतिवर्षं गीता-जयन्ती महोत्सवः आचर्यते। रमेशः स्वपित्रा सह तत्र गत्वा, महाभारतयुद्धकाले श्रीकृष्णार्जुनयोः संवादरूपे प्रदत्तां गीता-शिक्षाम् कथावाचकात् शृणोति।
Hindi Translate
प्रस्तावना —
कुरुक्षेत्र में गीता जयंती के अवसर पर मेले का आयोजन होता है। रमेश अपने पिता के साथ वहाँ जाता है और कथावाचक से गीता की महिमा सुनता है।
(ख) गीतायाः उत्पत्तिः —
महाभारतयुद्धे, अर्जुनः स्वबान्धवान् पितृपैतामहान् च दृष्ट्वा मोहग्रस्तः जातः। युद्धं न इच्छन् सः शस्त्रं चापं च परित्यक्तवान्।
तदा श्रीकृष्णः तं उपदिशत् — कर्तव्यं युद्धं धर्माय, जीवनं अस्थिरम्, आत्मा अमरः। एष उपदेशसमूहः श्रीमद्भगवद्गीता इति नाम्ना प्रसिद्धः।
Hindi Translate
गीता की उत्पत्ति —
महाभारत युद्ध में अर्जुन अपने संबंधियों को देखकर युद्ध से विमुख हो गया। उसने शस्त्र रख दिए।
तब श्रीकृष्ण ने उसे कर्तव्य पालन के लिए उपदेश दिया। धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना तुम्हारा कर्तव्य है, जीवन अस्थिर है और आत्मा अमर है। इन्हीं उपदेशों का यह समूह “श्रीमद्भगवद्गीता” नाम से प्रसिद्ध है।
(ग) “सुगीता कर्तव्या” इत्यस्य अर्थः —
- केवलं गीता-पाठः न पर्याप्तः, अपि तु तस्याः भावार्थस्य जीवनान्वयः अपेक्षितः।
- श्रद्धाभक्तियुक्तः अभ्यासः करणीयः।
Hindi Translate
सुगीता कर्तव्य का अर्थ —
- गीता का केवल पाठ न करके, उसके अर्थ को जीवन में अपनाना चाहिए।
- श्रद्धा और भक्ति के साथ अभ्यास करना आवश्यक है।
(घ) प्रमुखश्लोकाः व भावार्थाः —
1. स्थितधीः लक्षणम् —
“दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥”
भावार्थः — जो व्यक्ति दुःख में विचलित न हो, सुख में लोभ रहित हो, और राग, भय, क्रोध से मुक्त हो, वही स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
क्रोधदोषः —
“क्रोधाद्भवति सम्मोहः…”
भावार्थः — क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, स्मृति नष्ट होती है, बुद्धि का नाश होता है और अंत में मनुष्य का पतन हो जाता है।
गुरुसेवा —
“तद्विद्धि प्रणिपातेन…”
भावार्थः — ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु के पास जाकर विनम्रता, प्रश्न और सेवा से तत्त्वज्ञान प्राप्त करो।
श्रद्धाफलम् —
“श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं…”
भावार्थः — श्रद्धावान, संयमी, और इन्द्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति शीघ्र ही ज्ञान और शांति प्राप्त करता है।
भगवत्प्रिय भक्तः —
“अद्वेष्टा सर्वभूतानां…”
भावार्थः — जो किसी से द्वेष नहीं करता, सभी का मित्र और करुणावान है, ममता और अहंकार से रहित है, सुख-दुख में समान है, और क्षमाशील है — वह भगवान का प्रिय भक्त है।
योगीप्रियः —
“सन्तुष्टः सततं योगी…”
भावार्थः — जो सदा संतुष्ट, संयमी, दृढ़ निश्चयी है और अपने मन-बुद्धि को ईश्वर को अर्पित करता है, वह योगी भगवान को प्रिय है।
प्रियवाक्यस्य महत्त्वम् —
“अनुद्वेगकरं वाक्यं…”
भावार्थः — जो वाणी उद्वेग न उत्पन्न करे, सत्य हो, प्रिय और हितकारी हो — वही वाणी का तप है।
3. गीता-स्वरूपम्
- महाभारतस्य भीष्मपर्वणि वर्णिता।
- अध्यायाः — १८
- श्लोकसंख्या — ७००
- विषयाः — अर्जुनविषादयोगः, सांख्ययोगः, कर्मयोगः, भक्तियोगः, ज्ञानयोगः, मोक्षसंन्यासयोगः इत्यादयः।
Hindi Translate
- महाभारत के भीष्म पर्व में वर्णित।
- अध्याय — 18
- श्लोक — 700
- मुख्य विषय — अर्जुन विषाद योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, मोक्ष संन्यास योग आदि।
4. शिक्षाः
- दुःखसुखेषु समत्वं धारयेत्।
- क्रोधं त्यजेत्, संयमं धारयेत्।
- श्रद्धाभक्तियुक्तः अभ्यासः फलदायकः।
- गुरुसेवा विनयेन करणीयम्।
- प्रियवाक्यप्रयोगेन सर्वे जनाः प्रसन्नाः भवन्ति।
Hindi Translate
- सुख-दुःख में समान रहना चाहिए।
- क्रोध का त्याग करना चाहिए।
- श्रद्धा और भक्ति से किया गया अभ्यास फलदायक होता है।
- गुरु से विनम्रता से ज्ञान लेना चाहिए।
- मीठी और हितकारी वाणी सभी को प्रसन्न करती है।
Leave a Reply