गीता सुगीता कर्तव्या
अभ्यासात् जायते सिद्धिः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् एकपदेन उत्तरं लिखत—
(क) श्रद्धावान् जनः किं लभते? (श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति क्या प्राप्त करता है?)
उत्तरम्: ज्ञानम् (ज्ञान)
(ख) कस्मात् सम्मोहः जायते? (मोह (भ्रम) किससे उत्पन्न होता है?)
उत्तरम्: क्रोधात् (क्रोध से)
(ग) सम्मोहात् किं जायते? (भ्रम (मोह) से क्या उत्पन्न होता है? )
उत्तरम्: स्मृतिविभ्रमः (स्मृति का भ्रम)
(घ) अर्जुनाय गीतां कः उपदिष्टवान्? (अर्जुन को गीता किसने उपदेश दी?)
उत्तरम्: श्रीकृष्णः (भगवान श्रीकृष्ण ने)
(ङ) हर्षामर्षभयोद्वेगैः मुक्तः नरः कस्य प्रियः भवति? (जो व्यक्ति हर्ष, क्रोध, भय और चिंता से मुक्त होता है वह किसको प्रिय होता है?)
उत्तरम्: भगवतः (भगवान को)
२. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत –
(क) कीदृशं वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते ?
उत्तरम्: अनुद्वेगकरं, सत्यं, प्रियहितं च वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते।
हिन्दी अनुवाद:
प्रश्न: किस प्रकार का वाक्य वाणी का तप कहलाता है?
उत्तर: जो वाक्य उद्वेग उत्पन्न न करे, सत्य हो, प्रिय और हितकारी हो — वह वाणी का तप कहलाता है।
(ख) कीदृशः जनः स्थितधीः उच्यते ?
उत्तरम्: यः दुःखेषु अनुद्विग्नमनाः, सुखेषु विगतस्पृहः, वीतरागभयक्रोधः च भवति, सः स्थितधीः उच्यते।
हिन्दी अनुवाद:
प्रश्न: किस प्रकार का व्यक्ति स्थिर बुद्धि (स्थितधी) वाला कहा जाता है?
उत्तर: जो व्यक्ति दुःख में विचलित नहीं होता, सुख में स्पृहा (लालच) नहीं करता, और राग, भय, क्रोध से मुक्त होता है — वह स्थितप्रज्ञ (स्थिर बुद्धि वाला) कहलाता है।
(ग) जनः कथं प्रणश्यति ?
उत्तरम्: क्रोधात् सम्मोहः, सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः, स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।
हिन्दी अनुवाद:
प्रश्न: मनुष्य कैसे नष्ट हो जाता है?
उत्तर: क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति का भ्रम, उससे बुद्धि का नाश और फिर बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का विनाश हो जाता है।
(घ) जनः कथम् उत्तमां शान्तिं प्राप्नोति ?
उत्तरम्: श्रद्धावान्, तत्परः, संयतेन्द्रियः जनः ज्ञानं लभते, ततः सः उत्तमां शान्तिं प्राप्नोति।
हिन्दी अनुवाद:
प्रश्न: मनुष्य उत्तम शांति कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर: श्रद्धावान, तत्पर तथा संयमित इन्द्रियों वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान के द्वारा वह उत्तम शांति को प्राप्त करता है।
(ङ) उपदेशप्राप्तये त्रयः उपायाः के भवन्ति ?
उत्तरम्: प्रणिपातः, परिप्रश्नः, सेवया — एते त्रयः उपायाः भवन्ति।
हिन्दी अनुवाद:
प्रश्न: उपदेश (ज्ञान) प्राप्त करने के तीन उपाय कौन-कौन से हैं?
उत्तर: प्रणाम करना (विनम्रता), उचित प्रश्न पूछना और सेवा करना — ये तीन उपाय हैं।
३. कोष्ठके दत्तानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत-
सेवया, स्मृतिविभ्रमः, योगी, वाङ्मयं, स्थितधीः
(क) अनुद्वेगकरं सत्यं प्रियहितं च वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते।
(जो वचन उद्वेगहीन, सत्य, प्रिय और हितकारी हो, वह वाचिक तप कहलाता है।)
(ख) सततं सन्तुष्टः दृढनिश्चयः च योगी भवति।
(जो सदा संतुष्ट और दृढ़ निश्चयी है, वह योगी होता है।)
(ग) अनुद्विग्नमनाः मुनिः स्थितधीः उच्यते।
(जो अविचलित मन वाला मुनि है, उसे स्थितप्रज्ञ कहा जाता है।)
(घ) तद् आत्मज्ञानं प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया च विद्धि।
(उस आत्मज्ञान को प्रणाम, प्रश्न और सेवा से जानो।)
(ङ) सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः भवति।
(मोह से स्मृति का भ्रम होता है।)
४. अधोलिखितानि पदानि उपयुज्य वाक्यानि रचयत
(क) उच्यते ————————————————-
(ख) च ——————————————————
(ग) न —————————————————–
(ङ) लब्ध्व ————————————————–
(ङ) कुर्यात् ————————————————–
उत्तरम्:
(क) उच्यते – सत्यं प्रियं हितं च वाक्यं वाङ्मयं तपः उच्यते।
(सत्य, प्रिय और हितकारी वाक्य को वाणी का तप कहा जाता है।)
(ख) च – अर्जुनः वीरः च ज्ञानी च आसीत्।
(अर्जुन वीर भी था और ज्ञानी भी।)
(ग) न – असत्यं न वदेत्।
(असत्य नहीं बोलना चाहिए।)
(घ) लब्ध्व – ज्ञानं लब्ध्व मानवः शान्तिं प्राप्नोति।
(ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य शांति को प्राप्त करता है।)
(ङ) कुर्यात् – स्वधर्मे स्थितः पुरुषः कार्यं यत्नेन कुर्यात्।
(अपने धर्म में स्थित मनुष्य को कार्य परिश्रमपूर्वक करना चाहिए।)
५. पाठानुसारं समुचितेन पदेन श्लोकं पूरयत
(क) श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः —————————————- ।
(ख) —————————————- चैव वाङ्मयं तप उच्यते ।
(ग) सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा ——————————- ।
(घ) ————————————————- भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।
(ङ) तद्विद्धि ————————————— परिप्रश्नेन सेवया ।
उत्तरम्:
(क) श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। (जो श्रद्धालु और इंद्रियों को वश में रखने वाला है, वह ज्ञान प्राप्त करता है।)
सन्दर्भ: श्लोक ४।
(ख) अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च चैव वाङ्मयं तप उच्यते। (जो वचन उद्वेगहीन, सत्य, प्रिय और हितकारी हो, वह वाचिक तप कहा जाता है।)
सन्दर्भ: श्लोक ८।
(ग) सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः। (जो सदा संतुष्ट, योगी, आत्मा को वश में रखने वाला और दृढ़ निश्चयी है।)
सन्दर्भ: श्लोक ६।
(घ) क्रोधात् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। (क्रोध से मोह होता है, मोह से स्मृति का भ्रम होता है।)
सन्दर्भ: श्लोक २।
(ङ) तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। (इसे प्रणाम, प्रश्न और सेवा से जानो।)
सन्दर्भ: श्लोक ३।
६. उदाहरणानुसारं पदानि स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयत
उदाहरणम्:
श्रद्धावान् = श्रद्धावती
बुद्धिमान् = बुद्धिमती
(क) गुणवान् = —————————————–
(ख) आयुष्मान् = —————————————–
(ग) क्षमावान् = ——————————————
(घ) ज्ञानवान् = —————————————–
(ङ) श्रीमान् = ——————————————
उत्तर
(क) गुणवान् = गुणवती
(ख) आयुष्मान् = आयुष्मती
(ग) क्षमावान् = क्षमावती
(घ) ज्ञानवान् = ज्ञानवती
(ङ) श्रीमान् = श्रीमती
७. समुचितेन पदेन सह स्तम्भौ मेलयत
अ (पद) | इ (मेल खाने वाला पद) | हिंदी अर्थ |
---|---|---|
(क) सर्वभूतानाम् | (ङ) सर्वेषां प्राणिनाम् | सभी प्राणियों का |
(ख) अनुद्विग्नमनाः | (घ) यस्य मनः विचलितं न भवति | जिसका मन विचलित नहीं होता |
(ग) स्थितधीः | (ख) स्थिरमतिमान् | स्थिर बुद्धिवाला |
(घ) परिप्रश्नेन | (क) पुनः पुनः प्रश्नकरणेन | बार-बार प्रश्न पूछने के द्वारा |
(ङ) संयतेन्द्रियः | (ग) इन्द्रियसंयमी | जिसकी इन्द्रियाँ संयमित हैं |
८: श्रीमद्भगवद्गीतायाः विषये पञ्च वाक्यानि लिखत
(क) —————————————————–
(ख) —————————————————–
(ग) —————————————————–
(घ) —————————————————–
(ङ) —————————————————–
उत्तर
(क) श्रीमद्भगवद्गीता भगवान् श्रीकृष्णस्य अर्जुनाय उपदेशः अस्ति।
(श्रीमद्भगवद्गीता भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को दिया हुआ उपदेश है।)
(ख) गीतायां सप्तशतं श्लोकाः सन्ति।
(गीता में सात सौ श्लोक हैं।)
(ग) अर्जुनस्य संशयं दूरं कर्तुं गीता लिखिता।
(अर्जुन के संदेह को दूर करने के लिए गीता लिखी गई।)
(घ) महाभारते भीष्मपर्वणि गीता वर्णिता।
(महाभारत के भीष्म पर्व में गीता का वर्णन है।)
(ङ) गीतायाः उपदेशाः जीवनं शोभयन्ति।
(गीता के उपदेश जीवन को सुशोभित करते हैं।)
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