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हिन्दी वसंत आया Questions Answer Class 12 Chapter 5 Antra CBSE

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तोड़ो वसंत आया

Question 1:
वसंत आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?

ANSWER:
कवि फुटपाथ पर चलते हुए प्रकृति में आए परिवर्तनों को देखता है, तब उसे ज्ञात होता है कि वसंत आ गया है। उसे चिड़िया के कूक, पेड़ों से गिरे पीले पत्ते तथा गुनगुनी ताज़ा हवा वसंत के आगमन की सूचना देते हैं। प्रकृति में हुए यह परिवर्तन उसे वसंत के आने का आभास कराते हैं तथा घर पर जाकर कैलेंडर इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि कर देता है।

Question 2:
‘कोई छः बजे सुबह…….फिरकी सी आई, चली गई’- पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।

ANSWER:
वसंत के आने से पहले वायु में अधिक ठंडक विद्यमान होती है, इसमें मनुष्य सिहर उठता है। परन्तु वसंत के आगमन के साथ यह हवा गुनगुनी हो जाती है मानो कोई युवती गर्म पानी से स्नान करके आयी हो। यह हवा फिरकी की भांति गोल-गोल घुमती है और अचानक रूक जाती है। इसमें सिहरन पैदा करने वाली ठंडक विद्यमान नहीं होती है। वसंत की हवा में ठंडक समाप्त हो जाती है और गरमाहट हृदय को आनंदित कर देती है।

Question 3:
अलंकार बताइए:

(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते

(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो

(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई

(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल

ANSWER:
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते- प्रस्तुत पंक्ति में ‘ब’ तथा ‘प’ वर्ण की दो से अधिक बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है तथा ‘बड़े’ शब्द की उसी रूप में पुन: आवृत्ति के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो- प्रस्तुत पंक्ति में मानवीकरण अलंकार है।
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई- प्रस्तुत पंक्ति में हवा की तुलना फिरकी से की गयी है। अत: यहाँ उपमा अलंकार है। इसी के साथ इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार भी है क्योंकि ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है।
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल- प्रस्तुत पंक्ति में ‘द’ वर्ण की दो से अधिक बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है तथा ‘दहर’ शब्द की उसी रूप में पुन: आवृत्ति के कारण पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

Question 4:
किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य की अनुभूति से वंचित है?

ANSWER:

नीचे दी गई पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति की अनुभूति से वंचित है।-
कल मैंने जाना कि वसंत आया।
और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी
दफ़्तर में छुट्टी थी- यह था प्रमाण
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे

Question 5:
‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।

ANSWER:
यह बात सत्य है कि ‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’। जबसे मनुष्य का अस्तित्व इस पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ है प्रकृति ने सहचरी की भांति उसका साथ निभाया है। उसने मनुष्य की हर सुख-सुविधा का ख्याल रखा है और उसके अस्तित्व को पृथ्वी पर पनपने के लिए सभी साधन दिए हैं। प्रकृति के सानिध्य में रहकर ही मनुष्य सभ्य बना है तथा ज्ञान प्राप्त किया है। आज वह चाँद तक जा पहुँचा है। अत्याधुनिक साधन उसके पास उपलब्ध हैं। उसके पास जो छोटी से लेकर बड़ी वस्तु है, वे प्रकृति की देन हैं। मनुष्य का अपना कुछ भी नहीं है। उसने जो पाया है, वह इसी प्रकृति रूपी सहचरी से पाया है। आरंभ में पूरी पृथ्वी पर प्रकृति का साम्राज्य था। परन्तु जबसे मनुष्य ने पृथ्वी पर अपने पैर पसारने आरंभ किए, उसने इसके साम्राज्य पर कब्ज़ा ही कर लिया है। आज चारों तरफ उसने अपने आसपास सीमेंट के ऐसे जंगल खड़े कर दिए हैं कि जिसके कारण उसकी सहचरी सिमटकर रह गई है। उसने प्रकृति से सदैव लिया ही है। उसने लगातार सदियों से उसका दोहन ही किया है। उसने अपनी सहचरी के धैर्य और प्रेम को धोखा ही दिया है। आज प्रकृति ने भी अपने सहचरी रूप को छोड़कर विकराल रूप धारण कर लिया है। मनुष्य ने उसकी सीमाओं का इतना अतिक्रमण कर लिया है कि वह स्वयं अपने असितत्व को बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास कर रही है।

Question 6:
‘वसंत आया’ कविता में कवि की चिंता क्या है? उसका प्रतिपाद्य लिखिए?

ANSWER:
आज के मनुष्य का प्रकृति से संबंध टूट गया है। उसने प्रगति और विकास के नाम पर प्रकृति को इतना नुकसान पहुँचाया है कि अब प्रकृति का सानिध्य सपनों की बात लगती है। महानगरों में तो प्रकृति के दर्शन ही नहीं होते हैं। चारों ओर इमारतों का साम्राज्य है। ऋतुओं का सौंदर्य तथा उसमें हो रहे बदलावों से मनुष्य परिचित ही नहीं है। कवि के लिए यही चिंता का विषय है। प्रकृति जो कभी उसकी सहचरी थी, आज वह उससे कोसों दूर चला गया है। मनुष्य के पास अत्यानुधिक सुख-सुविधाओं युक्त साधन हैं परन्तु प्रकृति के सौंदर्य को देखने और उसे महसूस करने की संवेदना ही शेष नहीं बची है। उसे कार्यालय में मिले अवकाश से पता चलता है कि आमुक त्योहार किस ऋतु के कारण है। अपने आसपास हो रहे परिवर्तन उसे अवगत तो कराते हैं परन्तु वह मनुष्य के हृदय को आनंदित नहीं कर पाते हैं। मनुष्य और प्रकृति का प्रेमिल संबंध आधुनिकता की भेंट चढ़ चुका है। आने वाला भविष्य इससे भी भयानक हो सकता है।

तोड़ो

Question 1:
‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं?

ANSWER:
तोड़ो कविता में ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ बंधनों तथा बाधाओं के प्रतीक हैं। बंधन और बाधाएँ मनुष्य को आगे बढ़ने से रोकती है इसलिए कवि मनुष्य को इनको हटाने के लिए प्रेरित करता है। उसके अनुसार यदि इनसे पार पाना है, तो इन्हें तोड़कर अपने रास्ते से हटाना पड़ेगा। तभी मंजिल पायी जा सकती है।

Question 2:
भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो

ANSWER:
भाव यह है कि मिट्टी का उपजाऊपन ही बीज का पोषण करता है और उसे फसल रूप में आकार देता है। मिट्टी में यदि उपजाऊपन (रस) नहीं होगा, तो वह बीज का पोषण नहीं कर पाएगी। ऐसे ही मन की स्थिति भी होती है। जब तक उसके अंदर खीझ विद्यमान रहेगी, उसकी सृजन शक्ति उससे प्रभावित होती रहेगी। अत: सृजन के लिए खीझ को मन से बाहर निकाल करना होगा। इन पंक्तियों में कवि धरती के माध्यम से मनुष्य की खीझ को बाहर निकालने के लिए प्रेरित करता है।

Question 3:
कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?

ANSWER:
ऐसा करने के पीछे कवि का विशेष उद्देश्य है, ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से कविता आरंभ करके कवि मनुष्य को विघ्न, बाधाएँ, खीझ इत्यादि को चकनाचूर करने के लिए प्रेरित करता है। इस तरह मनुष्य संकट से बाहर आ जाता है और उसके मन की सोचने-समझने की शक्ति का विकास होता है। विघ्न-बाधाएँ तथा खीझ मनुष्य के विचारों को प्रभावित किए रहती हैं और वह कुछ भी करने में असमर्थ होता है। ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से वह मन को मज़बूत बनाकर सृजन शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। जैसे धरती के अंदर व्याप्त चट्टान और पत्थरों को तोड़ने से उसका बंजरपन समाप्त होता है तथा गुड़ाई करके उसे खेती करने योग्य बनाया जाता है। ऐसे ही इन शब्दों के द्वारा कवि मन को विशेष बल देने का प्रयास करता है ताकि वह अपने सम्मुख खड़ी कठिनाइयों से लड़ सके तथा सृजन शक्ति को और बलशाली बना सके। इस प्रकार ही मनुष्य का विकास संभव है।

Question 4:

ये झूठे बंधन टूटें

तो धरती को हम जानें

यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय हैं?

ANSWER:
कवि का निम्नलिखित पंक्ति में झूठे बंधनों से अभिप्राय है कि झूठे बंधन मनुष्य को अपने मार्ग से विचलित करते हैं। उसकी शक्ति को जकड़ देते हैं। जैसे धरती में व्याप्त पत्थर तथा चट्टानें उसे बंजर बना देते हैं, वैसे ही मन में व्याप्त झूठे बंधन उसकी सृजन शक्ति को विकसित नहीं होने देते।
धरती को जानने से अभिप्राय है कि धरती में इतनी शक्ति होती है कि वह समस्त संसार का भरण-पोषण कर सके। परन्तु उसमें व्याप्त पत्थर और चट्टानें उसे बंजर बना देती हैं। अतः हमें उसकी शक्ति तथा उसके महत्व को समझकर उसे खेती योग्य बनाने की आवश्यकता है। मनुष्य का मन भी इसी धरती के समान है, यदि वह शंकाओं, झूठे बंधनों के जाल में फंसा रहेगा, तो अपनी सृजन शक्ति का नाश ही करेगा। अत: अपने मन का अवलोकन कर उसे अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए और सभी प्रकार की बांधाओं को उखाड़ फेंकना चाहिए।

Question 5:
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

ANSWER:
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मनुष्य जब तक अपने मन में व्याप्त खीझ तथा ऊब को बाहर निकाल नहीं करता, तब तक उसका गान अधूरा ही रहेगा। मन जब उल्लास तथा आनंद को महसूस करेगा तभी वह पूरा गाना गा सकता है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि मन के अंदर खीझ तथा ऊबाउपन नहीं होगा, तो वह सृजन करने में सक्षम होगा। इस तरह ही उसका कल्याण संभव है।

योग्यता विस्तार

Question 2:
भारत में ऋतुओं का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिखिए।

ANSWER:
भारत ऋतुओं का देश कहा जाता है। भारत में ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद् ऋतु, हेमंत ऋतु, शिशिर ऋतु व वसंत ऋतु मिलाकर कुल छ: ऋतुएँ होती हैं। इन ऋतुओं का समय दो-दो महीने का होता है। हिन्दी तिथि के अनुसार वैशाख व जेठ का महीना ग्रीष्म ऋतु का कहलाता है। वर्षा ऋतु का आषाढ़ व सावन का महीना होता है। शरद् ऋतु का भाद्र व आश्विन का महीना होता है। हेमंत का कार्तिक व अगहन। पूस व माघ का शिशिर का महीना होता है। फाल्गुन व चैत्र का महीना वसंत ऋतु का माना जाता है।
ग्रीष्म ऋतु अपने नाम के अनुसार गर्म व तपन से भरी मानी जाती है। इस ऋतु में रातें छोटी व दिन लम्बे होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मौसमी फलों; जैसे- जामुन, शहतूत, आम, खरबूजे, तरबूज आदि फलों की बहार आई होती है।
ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होते-होते वर्षा ऋतु अपनी बौछारों के साथ प्रवेश करती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस ऋतु का महत्व अधिक देखने को मिलता है क्योंकि गरमी से बेहाल लोग इस ऋतु में आराम पाते हैं। वर्षा कि बौछार तपती धरती को शीतलता प्रदान करती है। जहाँ एक ओर लोगों के लिए यह मस्ती से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए बुआई का अवसर लाती है। चावलों की खेती के लिए तो यह उपयुक्त मानी जाती है। यह ऋतु प्रेम व रस की अभिव्यक्ति के लिए अच्छी मानी जाती है। इसे ऋतुओं की रानी कहा जाता है।

वर्षा ऋतु के समाप्त होते-होते शरद ऋतु अपना प्रभाव दिखाना आरंभ कर देती है। वातावरण में ठंडापन आने लगता है। इसमें करवाचौथ, नवरात्रें, दुर्गा-पूजा, दशहरा व दीपावली आदि त्यौहारों का ताँता लग जाता है। इस ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं।

शरद् के तुरंत बाद हेमंत ऋतु अपना रूप दिखाना आरंभ करती है। सरदी बढ़ने लगती है। दिन और छोटे होने लगते हैं।

हेमंत के समाप्त होते-होते शिशिर ऋतु का प्रकोप आरंभ हो जाता है। कड़ाके कि ठंड पड़ने लगती है। लोगों का सुबह-सवेरे काम पर निकलना कठिन होने लगता है। अत्यधिक ठंड से व कोहरे से जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है। इस ऋतु में धनिया, मेथी, पालक, मटर, गाजर, बैंगन, गोभी, मूली, सेब, अंगूर, अमरूद, संतरे इत्यादि सब्जियों व फलों की बहार आ जाती है। धूप का असली मज़ा इसी ऋतु में लिया जा सकता है।

शिशिर ऋतु के जाते ही सबके दरवाजों पर वसंत ऋतु दस्तक देने लगती है। इस ऋतु से वातारण मोहक व रमणीय बन जाता है। यह ऋतु रसिकों की ऋतु कहलाती है। प्राकृतिक की आभा इसी ऋतु में अपने चरम सौंदर्य पर देखी जा सकती है। चारों तरफ फल व फूलों की बहार देखते ही बनती है। यह ऋतु हर जन-मानस का मन हर लेती है। इसकी ऋतु की सुंदरता के कारण ही इस ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।

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